बैसाखी का पर्व संपूर्ण भारत में धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन पंजाब और हरियाणा में इस पर्व पर एक अलग जोश, जुनून और उत्साह देखने को मिलता है. इन्हीं दिनों रबी की फसलें काटी जाती हैं, जिसके कारण किसानों में विशेष उत्साह रहता है. 1699 में आनंदपुर साहिब में इसी दिन सिखों के दसवें एवं अंतिम गुरु गोविंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी, इसलिए इस दिन सिख लोग नववर्ष भी मनाते हैं. इसी दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है, इसलिए हिंदू समुदाय किसी पवित्र नदी में स्नान कर पुण्य लाभ अर्जित करते हैं. लेकिन इस बार संपूर्ण देश में लॉक डाउन होने के कारण कोई भी सार्वजनिक पर्व सेलीब्रेट नहीं किये जा रहे हैं, ऐसे में सोशल डिस्टेंसिंग रखते हुए घर में ही परिवार के साथ बैसाखी सेलीब्रेट कर स्वयं एवं देश की रक्षा करें. इस बार 13 अप्रैल 2020 को बैसाखी पर्व मनाया जायेगा.
संपूर्ण देश में विभिन्न नामों से मनाते हैं बैशाखी:
देश के अलग-अलग हिस्सों में बैसाखी विभिन्न नामों से मनाया जाता है. पंजाब में रबी की फसल कटने पर बैसाखी मनाई जाती है. असम के लोग इस दिन किसान फसल काटने के बाद ‘बिहू’ के नाम पर्व सेलीब्रेट करते हैं. बंगाल में इसे ‘पोइला बैसाख’ कहते हैं. इसे वे नये वर्ष के रूप में सेलीब्रेट करते हैं. केरल में यह पर्व ‘विशु’ कहलाता है. हिंदू धर्म में इसी दिन सूर्य मेष राशि में संक्रमण करता है इसलिए इसे मेष संक्रांति कहते हैं. मान्यता है कि हजारों सालों पूर्व इसी दिन पृथ्वी पर गंगा अवतरित हुई थीं. इसलिए इस दिन गंगा-स्नान का विशेष महत्व है, और वाराणसी में गंगा-आरती का भव्य आयोजन होता है.
खालसा पंथ की स्थापना:
ऐतिहासिक दृष्टिकोण से देखा जाये तो इसी दिन सिखों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह ने आनंदपुर साहिब में साल 1699 में खालसा पंथ की नींव रखी थी. खालसा पंथ की स्थापना का मकसद लोगों को तत्कालीन मुगल शासकों के अत्याचारों से मुक्ति दिलाते हुए उनके जीवन में सुख-शांति लानी थी. सिख धर्म के अनुयायियों के अनुसार गुरुनानक देव ने आध्यात्मिक साधना की दृष्टि से बैसाख महीने की काफी प्रशंसा की थी. सिख समुदाय इसी दिन नववर्ष मनाते हैं
कैसे करते हैं सेलीब्रेट:
बैशाखी के दिन पंज प्यारों का रूप धारण कर इस दिन का स्मरण किया जाता है. इस दिन पंजाब में जगह-जगह सिख समुदाय भांगड़ा नृत्य करते हैं. पूरे देश में श्रद्धालु गुरुद्वारों में अरदास के लिए इकट्ठे होते हैं. मुख्य समारोह आनंदपुर साहिब में सम्पन्न किया जाता है, जहां पंथ की नींव रखी गई थी. सुबह 4 बजे गुरु ग्रंथ साहिब को समारोहपूर्वक कक्ष से बाहर लाते हैं. दूध और जल से प्रतीकात्मक स्नान करवाने के बाद गुरु ग्रंथ साहिब को तख्त पर बिठाते हैं. इसके बाद 'पंचबानी' गाते हैं. दिन में अरदास के बाद गुरु को कड़ा प्रसाद का भोग लगाते हैं. इसके बाद सभी 'गुरु के लंगर' में शामिल होते हैं. श्रद्धालु कारसेवा करते हैं. दिन भर गुरु गोविंदसिंह और पंच प्यारों के सम्मान में शबद एवं कीर्तन कीर्तन गाए जाते हैं. इस दिन किसान अच्छी फसल के लिए ईश्वर को धन्यवाद देते हैं.