रक्षाबंधन का पावन पर्व श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन सेलीब्रेट किया जाता है. भाई-बहन के स्नेह के इस पर्व को ‘राखी पूर्णिमा’, ‘नारियल पूर्णिमा’ और ‘कजरी पूर्णिमा’ के नाम से भी जाना जाता है. रक्षाबंधन भाई-बहन के प्रेम और त्याग का सबसे बड़ा पर्व माना जाता है. सैकड़ों सालों से चली आ रही रक्षाबंधन के इस पर्व पर बहनें शुभ मुहूर्त में अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं. बदले में भाई बहन की सुरक्षा की जिम्मेदारी का संकल्प लेता है और बहन को ढेर सारे उपहार देता है.
रक्षाबंधन दो शब्दों से मिलकर बना है रक्षा और बंधन, जिसका आशय है रक्षा के बंधन में बंधना. यह पर्व केवल भाई-बहन के खून के रिश्ते तक ही सीमित नहीं रहता, बल्कि करीबी रिश्तों वाले भाई बहन के रिश्तों को भी उसी गरमाहट के साथ निभाता है. यानी भाई और बहन का रिश्ता खून का होना जरूरी नहीं होता. आइए जानें रक्षा सूत्र बांधने की पारंपरिक विधि क्या है.
रक्षा सूत्र बांधने की पारंपरिक विधि
रक्षाबंधन को खास बनाने के लिए बहनें राखी की थाली को बड़े कलात्मक तरीके से सजाती हैं. थाली में रोली- अक्षत, कुमकुम, मिठाई, घी का दीप और राखी रखें. अब जहां राखी बांधनी है, वहां रंगोली सजाकर उस पर मिट्टी का छोटा-सा कलश स्थापित करें. शुभ मुहूर्त के साथ ही दीप को प्रज्जवलित करें और भाई को चौक के पास बुलाकर उसे ऐसा बैठाएं की उसका मुख पूर्व अथवा उत्तर दिशा में हो. भाई के सर पर एक नया रूमाल रखें तथा हाथ में नारियल रखें. अब उसके माथे पर रोली और अक्षत का टीका लगाएं. अब भाई की कलाई में राखी बांधकर उसका मुंह मीठा कराएं. इसके पश्चात भाई की आरती उतारें. यहां एक बात ध्यान देने की है कि अगर बहन छोटी है तो भाई के चरण स्पर्श कर उसका आशीर्वाद प्राप्त करे और अगर बहन बड़ी है तो भाई को बहन का चरण स्पर्श करना चाहिए. यद्यपि मध्य प्रदेश में बहन छोटी हो या बड़ी चरण स्पर्श भाई को ही करना होता है. यही वहां की परंपरा है. इसके पश्चात भाई बहन को अपनी सामर्थ्यनुसार उपहार प्रदान करते हुए उसकी ताउम्र सुरक्षा का वचन देता है.
भाई को तिलक करते समय बहन को इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए.
ॐ येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।