जीवन में हर मंजिल पाने के लिए शिक्षक की आवश्यकता होती है. शिक्षक हमें सिर्फ किताबी शिक्षा ही नहीं देते बल्कि इसके साथ-साथ जीवन जीने की सही दिशा और मार्गदर्शन भी देते हैं. हर मोड़ पर हमें एक शिक्षक की जरुरत होती है. जो अपने ज्ञान को हमारे साथ बांटे और हमें भी योग्य बनाए. शिक्षक के ज्ञान की रोशनी से ही हमारे जीवन में प्रकाश आता है. आज के समय में निश्चित ही हमारे लिए शिक्षकों के मायने कुछ बदल गए हैं. शिक्षक और शिक्षा का शायद उतना मान नहीं रहा जो वास्तव में होना चाहिए था. शिक्षक का ज्ञान किताबी ज्ञान के रूप में तोला जाने लगा है. ज्ञान से ज्यादा धन का महत्व हो गया है, पर भारत में ऐसे भी गुरु शिष्य रहे हैं जिनकी मिसाल आज भी जमाना देता है. ऐसे शिष्य जिन्होंने गुरुओं के लिए अपना सब कुछ त्याग दिया.
आज के शिक्षक और छात्र का रिश्ता पहले गुरु-शिष्य के संबंधों से बिलकुल अलग है. पहले गुरु शिष्य रिश्ते में जो खास था वह था गुरु का ज्ञान, मौलिकता और नैतिक बल, उनका शिष्यों के प्रति स्नेह और ज्ञान बांटने का निःस्वार्थ भाव, और शिष्यों का अपने गुरु के प्रति पूर्ण श्रद्धा, गुरु की क्षमता में पूर्ण विश्वास तथा गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण. यह भी पढ़ें-Teachers Day 2018: शिक्षक दिवस पर इन खास Messages से करें अपने टीचर्स को विश
आज ऐसा नहीं है.शिक्षा के लिए अनेकों साधन सामने आ गए हैं. शिक्षा के क्षेत्र में आई तकनिकी सुविधा से शिक्षक और छात्र उस रिश्ते में नहीं बांध पाते हैं जो पहले हुआ करता था. आज के समय में शिक्षकों और छात्रों के बीच आपसी मनमुटाव और मतभेद भी खूब देखने को मिलते हैं.
इन गुरु-शिष्यों की दी जाती है मिसाल-
एकलव्य-द्रोणाचार्य
गुरु शिष्य की महान गाथाओं में जो नाम हमेशा सबसे ऊपर रहता है, वह है एकलव्य. जिसने अपने गुरु द्रोणाचार्य के कहने पर उन्हें गुरु दक्षिणा में अपना अंगूठा काट के दे दिया. यह जानते हुए भी कि अंगूठा नहीं होने पर वे अपनी उस विद्या का प्रयोग भी नहीं कर पाएंगे जो उन्होंने सीखी है. एकलव्य ने छुप-छुप कर गुरु द्रोणाचार्य से धनुष विद्या सीखी थी .
आरुणी- महर्षि आयोदधौम्य
एक ऐसा शिष्य जो गुरु द्वारा बोले वचन को आदेश मानकर टूटी मेड़ पर लेट गया. गुरु आयोदधौम्य ने आरुणी को आदेश दिया कि बरसात में वह खेत की मेड़ टूटने नहीं दे. आरुणी बरसात में खेत की मेड़ को बनाता रहा पर अधिक वर्षा के कारण वह कुछ ही देर में टूट जाती थी, जिसके बाद आरुणी मेड़ के स्थान पर मिट्टी लगाने के बजाय खुद ही लेट गया. यह भी पढ़ें- Teachers Day 2018: अगर आपका बजट है कम, तो आप इतने बजट में अपनी टीचर्स को कर सकतें हैं विश
कर्ण और परशुराम
गुरु परशुराम कर्ण के गोद पर सर रखकर आराम कर रहे थे, इसी बीच एक जहरीला कीड़ा कर्ण के पैर पर काटने लगा, कर्ण के पैर से इस वजह से बहुत खून भी बहा और पीड़ा का अनुभव भी, पर गुरु परशुराम की नींद खराब न हो इस कारण कर्ण पीड़ा सहते रहे.
गुरु शिष्य का रिश्ता आज भी वहीं है बस इसके प्रति हमारी सोच बदल गई है, जिसका समय के साथ बदलना जरूरी भी था, पर शिक्षकों के ज्ञान की तुलना किताबी ज्ञान और आधुनिक तकनीकों से करना कहीं से भी उचित नहीं है. शिक्षकों का स्थान हमेशा सबसे ऊपर ही होना चाहिए.