Navratri Kalash Sthapana Shubha Muhurat: हिंदू पंचांग के अनुसार प्रतिवर्ष कुल 4 नवरात्रियां पड़ती हैं, दो सार्वजनिक और दो गुप्त नवरात्रि. हम बात करेंगे शारदीय नवरात्रि की. आश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से शारदीय नवरात्रि शुरू हो जायेगी. यद्यपि अभी से हर घरों में तैयारियां होने लगी है. बाजार भी नवरात्रि की पूजा सामग्रियों से पटे पड़े हैं. नवरात्रि पूजा की प्रथम प्रक्रिया घट-स्थापना यानी कलश-स्थापना से होती है, जिसे मां शक्ति की प्रतिमूर्ति माना जाता है. नवरात्रि की शुरुआत यानी कलश स्थापना 26 सितंबर 2022 दिन सोमवार महज 48 मिनट के अभिजीत मुहूर्त में करना होगा. इसलिए इस दिन की सारी तैयारियां पहले से ही करना समझदारी होगी. जानें क्या-क्या करना है कलश स्थापना के लिए.
कलश स्थापना के लिए आवश्यक सामग्रियां (Kalash Sthapana Puja Samagri List)
नवरात्रि की प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना की जाती है, हिंदू मान्यताओं के अनुसार कलश में भगवान गणेश एवं विष्णु समेत 33 कोटि देवी-देवताओं एवं ग्रह-नक्षत्रों का वास होता है. लेकिन यह तभी होता है, जब कलश विधि-विधान से संपूर्ण सामग्रियों के साथ स्थापित की जाए. इसलिए पूजा से पूर्व कलश स्थापना की सारी सामग्रियां एकत्र कर लेनी चाहिए. आइये जानें क्या हैं आवश्यक सामग्रियां...
मिट्टी का कलश, मिट्टी का ढक्कन, थोड़ी-सी मिट्टी, मिट्टी का एक छोटा दीया, दुर्गा जी की प्रतिमा, एक जटा वाला नारियल, गंगाजल, सुपारी, जौ, हल्दी, पुष्प, रंगोली, चावल या गेहूं (ढक्कन में रखने के लिए), छोटी लाल चुनरी, पान का पत्ता, लाल रंग का सवा मीटर कपड़ा, सिक्का, आम के पत्ते, कलाई नारा, लकड़ी की एक छोटी चौकी. यह भी पढ़ें : (Navratri 2022 Do's And Don'ts: नवरात्रि व्रत एवं पूजा करने वालों के लिए जानें 10 महत्वपूर्ण नियम!)
घटस्थापना का शुभ मुहूर्त व संपूर्ण विधि-
प्रतिपदा तिथि
नवरात्रि प्रतिपदा प्रारंभः 03.23 AM (26 सितंबर 2022, सोमवार) से
नवरात्रि प्रतिपदा समाप्तः 03.08 A.M. (27 सितंबर 2022, मंगलवार) तक
घट स्थापना का शुभ मुहूर्त
घट स्थापना शुभ मुहूर्तः 06.11 A.M. से 07.51 A.M. तक (1 घंटा 40 मिनट)
घट स्थापना अभिजीत मुहूर्तः 11.48 A.M. से 12.36 P.M. ( कुल 48 मिनट)
कहां और कैसे करें कलश स्थापना
नवरात्रि प्रतिपदा के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ अथवा नया वस्त्र धारण करें. घर के मुख्यद्वार पर रंगोली बनाएं. वास्तु के अनुसार उत्तर पूर्व दिशा को ईशान कोण कहते हैं, जिसे देवी-देवताओं का वास क्षेत्र माना जाता है. कलश स्थापना भी उत्तर-पूर्व दिशा में किये जाने का विधान है. सर्वप्रथम एक साफ धुली ही चौकी रखें. इस पर गंगाजल छिड़कें. चौकी पर रोली से स्वास्तिक का निशान बनाएं. इस पर लाल रंग का वस्त्र बिछाएं, और चावल से अष्टदल बनाकर इस पर माँ दुर्गा की प्रतिमा अथवा तस्वीर रखकर लाल या हरे रंग की चुनरी ओढ़ाएं. इसके बगल में जमीन पर मिट्टी को फैलाकर रखें. मिट्टी में जौ छिड़क दें. अब कलश में गंगाजल, सुपारी, अक्षत, कुछ सिक्के, हल्दी की एक गांठ, दूर्वा डालें. कलश पर आम के सात पत्ते बिछाकर उस पर जटा वाला नारियल को लाल कपड़े में लपेटकर रखें. प्रतिमा के सामने अखण्ड दीप प्रज्वलित करें. अब हाथ में अक्षत एवं लाल पुष्प लेकर शैलपुत्री का ध्यान कर निम्न मंत्र का जाप करें.
ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे
यह मंत्र मंगल कामना के लिए होता है. गाय के घी से बना भोग शैलपुत्री को अर्पित करें. ज्योतिष शास्त्रियों के अनुसार शुद्ध घी से बने भोग अर्पित करने से घर में व्याप्त बीमारियां दूर होती हैं.