हिंदू धर्म के सबसे आध्यात्मिक पर्वों में एक है शरद पूर्णिमा, जो आश्विन माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है. इसे कोजागरी पूर्णिमा भी कहते हैं. इस दिन ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती है. मान्यता है कि शरद पूर्णिमा को देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की विशेष पूजा करने से आर्थिक बाधाएं दूर होती हैं, और जीवन में समृद्धि आती है. परंपराओं के अनुसार ऐसा माना जाता है कि इस रात आकाश से अमृत की बूंदें गिरती हैं, जो जातकों को स्वास्थ्य, धन और आध्यात्मिक ऊर्जा का आशीर्वाद देती हैं. इस वर्ष 6 फरवरी, 2025, मंगलवार को शरद पूर्णिमा का पर्व मनाया जाएगा. आइये जानते हैं, शरद पूर्णिमा पूजा का मुहूर्त, महत्व, पूजा-विधि इत्यादि के बारे में...
भगवान कृष्ण और शरद पूर्णिमा की कथा
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान कृष्ण ने शरद पूर्णिमा के दिन महा रास लीला की थी. इस रात श्रद्धालु चंद्र देव की भी पूजा करते हैं और खीर का प्रसाद चढ़ाते हैं. ज्योतिष शास्त्रियों के अनुसार इस पूर्णिमा की रात चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकटतम दूरी पर होता है, और सभी खगोलीय पिंडों से निकलने वाली सकारात्मक ऊर्जाएं चंद्रमा की रोशनी के माध्यम से अवशोषित होती हैं, जिससे खीर एक दिव्य, अमृततुल्य प्रसाद में बदल जाती है जो सेहत के लिए बहुत ही लाभकारी होती है. यह भी पढ़ें : विश्व शिक्षक दिवस पर इन हिंदी Wishes, Quotes, Messages, Greetings को भेजकर दें शुभकामनाएं
शरद पूर्णिमा 2025 के लिए शुभ मुहूर्त
आश्विन शरद पूर्णिमा प्रारंभः 12.23 PM (06 अक्टूबर 2025)
आश्विन शरद पूर्णिमा समाप्तः 09.06 PM (07 अक्टूबर 2025)
श्रद्धालुओं को चाहिए कि वे 6 अक्टूबर 2025 को व्रत तथा चांदनी रात में देवी लक्ष्मी की पूजा कर सकते हैं.
इस वर्ष शरद पूर्णिमा पर उत्तराभाद्रपद नक्षत्र और सर्वार्थ सिद्धि योग को दिव्य संयोग बन रह है, जो इस पर्व को विशेष रूप से शुभ और आध्यात्मिक रूप से फलदायी बनाता है.
शरद पूर्णिमा का महत्व
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार देवी लक्ष्मी का जन्म समुद्र-मंथन के दौरान शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था, जिससे यह दिन अत्यंत फलदायी माना जाता है. ऐसी भी मान्यता है कि इस रात देवी लक्ष्मी बैकुंठ लोक से पृथ्वी लोक पर विचरण करती हैं, जो भक्त रात्रि-जागरण कर उनकी पूजा करते हैं, उन्हें देवी धन और समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं. कुछ क्षेत्रों में इसे रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है,
शरद पूर्णिमा पूजा-विधि
शरद पूर्णिमा को ब्रह्म मुहूर्त में किसी पवित्र नदी में स्नान करें, अथवा स्नान के पानी में गंगाजल की बूंदें डालकर स्नान करें. एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं, इस पर गंगाजल छिड़कें. इस पर देवी लक्ष्मी एवं विष्णु जी की प्रतिमा स्थापित करें. धूप-दीप प्रज्वलित करें. निम्न मंत्र का 108 जाप करें.
‘ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं त्रिभुवन महालक्ष्म्यै अस्माकं दारिद्र्य नाशय प्रचुर धनं देहि देहि क्लीं ह्रीं श्रीं ॐ’
इस मंत्र के जाप से आर्थिक तंगी दूर होती है, जीवन में सुख-समृद्धि आती है. लक्ष्मी जी को लाल वस्त्र पहनाएं. और फूल, धूप, नैवेद्य, सुपारी और दीप अर्पित करें. अब लक्ष्मी चालीसा का पाठ करें और अंत में देवी लक्ष्मी की आरती उतारें
सूर्यास्त के पश्चात विष्णु जी की पूजा करें, चंद्र देव को जल अर्पित करें. दूध-चावल की खीर को चांदनी रात में रखें. आधी रात को परिवार के सदस्यों को प्रसाद के रूप में खीर वितरित करें.












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