Kojagiri Purnima 2025: कोजागिरी पूजा निशिता काल में क्यों की जाती है? जानें कोजागिरी व्रत का महत्व, शुभ मुहूर्त एवं पूजा-विधि आदि!

    हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष आश्विन शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी के दिन कोजागिरी पूर्णिमा का व्रत एवं पूजा का विधान है. इसे कोजागिरी पूजा, कौमुदी पूजा, बंगाली लक्ष्मी पूजा आदि नामों से भी जाना जाता है. यह व्रत एवं पूजा आमतौर पर रात्रिकाल में किया जाता है, क्योंकि मान्यता है कि इस पूर्णिमा की रात माँ लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण के लिए निकलती हैं, और अपने भक्तों को धन-धान्य से संपन्न होने का आशीर्वाद देती हैं. इसलिए इस रात्रि श्रद्धालु रात भर जागकर देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं, जो भी भक्त उन्हें जागता हुआ मिलता है देवी लक्ष्मी उसे धन-धान्य से सम्पन्न कर देती हैं.

कोजागिरी व्रत का महत्व

 स्कन्दपुराण के अनुसारकोजागिरी व्रत साल के सर्वश्रेष्ठ व्रतों में एक हैजिसका विधिवत पालन करने से साधारण प्राणी भी उत्तम गति प्राप्त करता हैसाथ ही ऐश्वर्यआरोग्य एवं पुत्र-पौत्रादि का आनन्द भोगता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार शरद पूर्णिमा को समुद्र-मंथन से धन की देवी लक्ष्मी का प्रकाट्य हुआ थाइस दिन देवी लक्ष्मी की पूजा एवं व्रत करने से जहां आर्थिक समस्या दूर होती हैवहीं घर-परिवार का स्वास्थ्य और वंश वृद्धि का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है. शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से पूर्ण होता है. उसकी किरणों से अमृत बरसता है. इसलिए इस रात दूध की खीर बनाकर खुली चांदनी रात में देवी लक्ष्मी को अर्पित करते हैं. इस खीर का सेवन करने से शरीर रोगमुक्त बनता हैऔर देवी लक्ष्मी की कृपा से घर में सुख-समृद्धि आती है. यह भी पढ़ें : Maha Navami 2025 Wishes: शुभ महा नवमी! मां दुर्गा के इन मनमोहक WhatsApp Stickers, GIF Greetings, HD Images, Wallpapers को भेजकर दें बधाई

कोजागिरी पूर्णिमा की तिथि एवं शुभ मुहूर्त

आश्विन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा प्रारंभः 12.23 PM, (06 अक्टूबर2025, सोमवार)

आश्विन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा समाप्तः 09.16 PM, (07 अक्टूबर2025, मंगलवार)

कोजागिरी पूर्णिमा वस्तुतः निशिता काल में होती है, इसलिए कोजागिरी पूर्णिमा 06 अक्टूबर 2025 को मनाई जाएगी.

कोजागिरी पूर्णिमा पूजा मुहूर्तः 11.45 PM से 12.34 AM, (07 अक्टूबर 2025)

पूजा की कुल अवधि 00 घंटे 49 मिनट

कोजागिरी पूजा के लिए चन्द्रोदयः 05.27 PM

कोजागिरी पूजा-विधि

  पूर्णिमा के दिन स्नान-ध्यान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें. हाथ में पुष्प लेकर व्रत एवं पूजा का संकल्प लें. यह पूजा प्रदोष काल में करते हैं. मिट्टी के दीप जलाकर घर के मुख्य द्वार पर रखें. इसके बाद पूजा स्थल पर एक चौकी रखकर उस पर सफेद या लाल कपड़ा बिछाकर इस पर देवी लक्ष्मी के साथ भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें. धूप दीप प्रज्वलित करें. निम्न मंत्र का जाप करते हुए पूजा प्रारंभ करें.

ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मीभयो नमः

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नम:

 देवी लक्ष्मी को कमल का फूलदूब घासचावलदीपकधूपमिठाईखीरबताशेनारियलपानसुपारी अर्पित करें.

 इस रात खीर या दूध को चादनी में रखने की परंपरा है, ताकि चंद्रमा की किरणों से वह अमृतमय हो जाए. रात भर जागरणभजन-कीर्तन करें. रात के समय चंद्रमा को अर्घ्य देकर खीर का प्रसाद ग्रहण करें.