
हर साल 23 मार्च को देश भर में ‘शहीद दिवस’ मनाया जाता है. गौरतलब है कि 94 साल पूर्व यानी 23 मार्च 1931 को देश की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले तीन क्रांतिकारियों सरदार भगत सिंह. सुखदेव एवं राजगुरु को ब्रिटिश हुकूमत ने फांसी पर लटका दिया था. इन तीनों क्रांतिकारियों पर लाहौर षड़यंत्र में शामिल होने का आरोप लगाया गया था. गौरतलब है कि देश में साल में तीन बार शहीद दिवस मनाया जाता है. 30 जनवरी, 23 मार्च और 28 नवंबर को. आज हम 23 मार्च को मनाये जाने वाले शहीद दिवस के बारे में बात करेंगे. लेकिन पहले जानेंगे कि देश कब और क्यों तीन बार शहीद दिवस मनाया जाता है.
साल में कब-कब मनाया जाता है शहीद दिवस?
30 जनवरीः साल का पहला शहीद दिवस हम 30 जनवरी को मनाते हैं. साल 1948 में इसी दिन मोहनदास करमचंद गांधी जिन्हें महात्मा गांधी भी कहा जाता है, की उस समय हत्या कर दी गई, जब वे नियमित प्रार्थना के लिए जा रहे थे. बहुत सी जगहों पर इस दिन को सर्वोदय दिवस के रूप में भी मनाया जाता है. यह भी पढ़ें : Bihar Diwas 2025 Messages: बिहार दिवस की हार्दिक बधाई! प्रियजनों संग शेयर करें ये शानदार हिंदी WhatsApp Wishes, Shayaris, GIF Greetings और Photo SMS
23 मार्चः साल का दूसरा शहीद दिवस 23 मार्च को मनाया जाता है. इस दिन ब्रिटिश हुकूमत ने तीन महान क्रांतिकारियों भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी पर चढ़ाकर हत्या कर दिया था.
28 नवंबरः 28 नवंबर को सिख पंथ के नौवें गुरु श्री गुरु तेग बहादुर सिंह की औरंगजेब ने हत्या कर दी थी. बताया जाता है कि औरंगजेब द्वारा कश्मीरी पंडितों के जबरन धर्म परिवर्तन की शिकायत पर गुरु गोविंद सिंह ने उनकी रक्षा का वचन दिया, जिससे क्रुद्ध होकर औरंगजेब ने 28 नवंबर को गुरु तेग बहादुर सिंह का गर्दन काटकर हत्या कर दिया था.
23 मार्च 1928 को क्या हुआ था?
यह शहीद दिवस विशेष रूप से तीन महान क्रांतिकारियों सरदार भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव सिंह की शहादत की स्मृति में मनाया जाता है. सरदार भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त पर सेंट्रल असेंबली में बम फेंकने का भी आरोप था. साल 1928 में ब्रिटिश जुनियर पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स को गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन ने इस पूरे मामले पर मुकदमा के लिए एक विशेष ट्रिब्यूनल का गठन किया गया था, जिसने तीनों क्रांतिकारियों को दोषी करार देते हुए 24 मार्च को फांसी की सजा सुनाई थी. लेकिन ब्रिटिश पुलिस ने पब्लिक विद्रोह के भय से फांसी की मुकर्रर तिथि से एक दिन पूर्व ही यानी 23 मार्च 1928 को सरदार भगत सिंह, सुखदेव एवं राजगुरु को लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी दे दी गई.