स्त्री-शिक्षा एवं स्वःनिर्भरता की चर्चा होगी, तो सावित्री फुले के बिना बात पूरी नहीं होगी, क्योंकि उन दिनों स्त्री को परदे में रखने का प्रचलन था. उनकी शिक्षा की कोई व्यवस्था नहीं थी. सावित्री बाई ने महिला-शिक्षा की आवश्यकता पर जागरूकता लाने के लिए अभियान चलाया, पितृसत्ता, बाल-विवाह, विधवा-विवाह एवं जातिवाद जैसे मुद्दों के खिलाफ लड़ाई लड़ी. इस प्रयास में उन्हें तमाम कठिनाइयों से दो-चार होना पड़ा. 10 मार्च को जब सावित्री फुले की 125वीं पुण्य-तिथि मनायी जायेगी, महिला उत्थान के लिए चलाये उनके क्रिया-कलापों को अवश्य याद किया जायेगा. आइये जानें, त्याग एवं कर्मठता का प्रतीक सावित्री फुले के जीवन के कुछ प्रेरक प्रसंग.
जन्म एवं विवाह
सावित्री नेवसे का जन्म 3 जनवरी 1831 को सतारा स्थित नायगांव में हुआ था. पिता खंडोजी नेवसे कृषक थे, माँ लक्ष्मी सामान्य गृहिणी थीं. 1840 में नौ वर्ष की आयु में उनका विवाह 12 वर्षीय ज्योतिराव फुले से हो गया. लेखक, विचारक, सामाजिक कार्यकर्ता एवं जाति-विरोधी आंदोलनों के सचेतक ज्योतिराव की अर्धांगिनी बनने के बाद सावित्री फुले के जीवन में आमूल परिवर्तन आया.
चोरी-छिपे शिक्षा हासिल करना
शादी से पूर्व सावित्री निरक्षर थीं. विवाहोपरांत जब उन्होंने पति से शिक्षा के प्रति अपने रुझान की बात की तो ज्योतिराव ने उन्हें खेत पर बुलाकर उनकी प्रारंभिक शिक्षा पूरी करवाई. उन दिनों महिलाओं के स्कूल की व्यवस्था नहीं थी, लिहाजा पांचवीं तक एक सामान्य स्कूल में शिक्षा हासिल करने के बाद अहमद नगर में मिस फरार इंस्टीट्यूशन में प्रशिक्षण दिलाया.
देश का पहला बालिका स्कूल
आजादी से सौ साल पहले 1848 में सावित्रीबाई ने पति के सहयोग से पहला बालिका स्कूल पूना (अब पुणे) के भिड़ेवाड़ा में शुरु करने की योजना बनाई. इनके इस कदम से परिवार और समाज ने उनका बहिष्कार कर दिया. तब उनके मित्र उस्मान शेख और उनकी बहन फातिमा शेख ने ना केवल फुले दम्पत्ति को आश्रय दिया बल्कि स्कूल शुरु करने के लिए जगह भी दिया. यहां लड़कियों को गणित, विज्ञान और सामाजिक अध्ययन का पाठ्यक्रम पढ़ाया जाता था. इस तरह सावित्री बाई देश की पहली शिक्षिका और प्रिंसिपल बनीं. इसके बाद फुले दम्पत्ति ने 18 कन्या स्कूल खोला. यह भी पढ़ें : Women’s Day 2022 Wishes for Wife: विमेंस डे पर ये कोट्स HD Wallpapers और GIF Images के जरिये भेजकर अपने लाइफ पार्टनर को दें बधाई
स्कूल जाने पर लोग पत्थर गोबर फेंकते थे
19वीं सदी में पिछड़ी जाति की महिलाओं का पढ़ना-लिखना और सामाजिक कार्यों में हिस्सा लेना आसान नहीं था. सावित्रीबाई जब स्कूल जातीं. तो विरोधी उन पर पत्थर, गोबर एवं कीचड़ फेंकते थे. स्कूल में शिक्षा व्यवधान ना आये, इसके लिए सावित्री बाई एक अतिरिक्त साड़ी लेकर जातीं और स्कूल में बदलकर पढ़ाई शुरु करवाती थीं.
महिला सेवा मंडल की स्थापना
बालिका स्कूल शुरु कराने के बाद फुले दम्पत्ति ने मंगल और महार जनजातियों के बच्चों के लिए भी स्कूल शुरु किया, क्योंकि अछूत माने जाने से उऩ्हें आम स्कूलों में प्रवेश नहीं मिलता था. फुले दम्पत्ति की शिक्षा के क्षेत्र में सक्रियता को देखते हुए 16 नवंबर 1852 को ब्रिटिश सरकार ने उन्हें सम्मानित किया एवं सावित्री फुले को सर्वश्रेष्ठ शिक्षक का पुरस्कार दिया. इससे प्रेरित होकर सावित्री फुले ने महिलाओं के बीच अपने अधिकार, गरिमा और अन्य सामाजिक मुद्दों पर जागरुकता पैदा करने के उद्देश्य से महिला सेवा मंडल शुरु किया. वह विधवाओं के बाल मुंडवाने एवं बाल विवाह की परंपरा का विरोध किया और विधवा विवाह का आयोजन करवाया.
प्रतिबंधक गृह की स्थापना
फुले दम्पत्ति ने 18 स्कूल शुरु करने के बाद 28 जनवरी 1953 को गर्भवती एवं बलात्कार पीड़ितों के लिए बाल हत्या प्रतिबंधक गृह की स्थापना की. समाज के खिलाफ जाकर इस तरह के संस्थान शुरु करना और उसे चलाना एक बहुत दुष्कर कार्य था, लेकिन फुले दम्पति को विरोध करनेवालों की किंचित परवाह नहीं थी. जो उस समय के लिए बहुत साहसिक एवं दूरदृष्टि भरा कदम था.
सत्य शोधक समाज की स्थापना
फुले दम्पत्ति ने 24 सितंबर 1873 को सत्य शोधक समाज की स्थापना की. उन्होंने विधवा विवाह की परंपरा भी शुरु की. इस संस्था के द्वारा पहला विधवा पुनर्विवाह 25 दिसंबर 1873 को कराया गया. 28 नवंबर 1890 को बीमारी के चलते ज्योतिबा फुले की मृत्यु हो गई थी. ज्योतिबा के निधन के बाद सत्य शोधक समाज की जिम्मेदारी सावित्री फुले पर आ गई. जिसका उन्होंने बखूबी निर्वहन किया. 1897 को प्लेग ग्रस्त बच्चों की सेवा करते समय वे भी प्लेग की चपेट में आ गईं. इस तरह सावित्री बाई की भी 10 मार्च को पुणे में मृत्यु हो गई.