कार्तिक मास शुक्लपक्ष के 11वें दिन यानी देवउठनी एकादशी को भगवान शालग्राम के साथ माता तुलसी की पारंपरिक तरीके से ववाह की रस्म निभाई जाती है. विष्णु पुराण के अनुसार शालग्राम वस्तुतः श्रीहरि (भगवान विष्णु) का ही अमूर्त रूप है. आइये जानें सतानन धर्म के अनुसार शालिग्राम की रोचक कहानी. Happy Tulsi Vivah 2021 Wishes: शुभ तुलसी विवाह! सगे-संबंधियों संग शेयर करें ये प्यारे हिंदी WhatsApp Greetings, Facebook Messages, Photo SMS और कोट्स
क्या है भगवान शालग्राम की कथा!
भगवान शालिग्राम को स्वयंभू (स्वयं अवतरत) माना जाता है. इसलिए इन्हें इस रूप में कोई भी व्यक्ति अपने घर के मंदिर में स्थापित करके पूजा-अर्चना कर सकता है. ये भगवान का अमूर्त रूप हैं. इस वजह से इनके कई रूप बताये जाते हैं. कुछ अंडाकार, कुछ गोलाकार, कुछ में छेद होता है और अन्य में शंख, चक्र, गदा या पद्म आदि के चिह्न होते हैं, सभी के प्रभाव समान होते हैं.
प्राचीनकाल में एक महाबलशाली राक्षस जलंधर ने पृथ्वी पर उत्पात मचा रखा था. वस्तुतः उसकी मूल शक्ति उसकी पत्नी वृंदा का पतिव्रता होना था. उसी के कारण कोई भी जलंधर का संहार नहीं कर पाता था. जलंधर के आतंक से त्रस्त ऋषि-मुनि श्रीहरि के पास पहुंचे. श्रीहरि ने जलंधर की मूल शक्ति वृंदा के पतिव्रत धर्म को भंग करने हेतु योगमाया से एक मृत शरीर को वृंदा के घर के बाहर रखवा दिया. श्रीहरि की माया से वृंदा को पति जलंधर के शव के रूप में दिखा. वृंदा पति के शव से लिपट कर विलाप करने लगी, तभी एक साधु आए और कहने लगे, बेटी दुखी मत हो, मैं अपने तप की शक्ति से इस मृत शरीर में जान डाल देता हूं.
पति को जीवित देख भावों में बहकर वृंदा ने उसका आलिंगन कर लिया. इस तरह पर-पुरुष को आलिंगन करने से वृंदा का सतीत्व नष्ट होते ही जलंधर का वध हो गया. सत्य जानते ही वृंदा ने श्री हरि को पत्थर बनने का श्राप देकर स्वयं आग में कूद गयीं. उन्हीं की राख से भगवान ने एक पौधे को जन्म दिया और इस पौधे को तुलसी का नाम दिया, साथ ही तुलसी को वरदान देते हुए कहा कि जब तक सृष्टि रहेगी, तुलसी उनकी पत्नी के रूप में जानी जायेंगी, और हर घर में पूजी जायेंगी. इसके बाद से ही जिस घर में भगवान शालिग्राम की पूजा होती है, वहां विष्णुजी के साथ महालक्ष्मी का भी निवास होता है. जिस घर में तुलसी और शालिग्राम की पूजा होती है, उस घर में सदा शांति और समृद्ध बरसती है.