अमूमन ऐसा कम ही होता है, जब 15 दिन के अंतराल पर दो-दो ग्रहण लग रहे हों. खगोलीय घटनाओं के अनुसार 14 अक्टूबर 2023 को सूर्य ग्रहण और 29 अक्टूबर 2023 को चंद्र ग्रहण लगने जा रहा है. दोनों ही इस साल के अंतिम ग्रहण होंगे. सूर्य ग्रहण भारत में नहीं दिखेगा, लिहाजा सूतक काल मान्य नहीं होगा, जबकि भारत में खग्रास चंद्र ग्रहण 29 अक्टूबर को देर रात 01.06 AM से 02.22 AM तक रहेगा. भारत में चंद्र ग्रहण दिखने के कारण 10 घंटे पूर्व से सूतक काल लागू हो जाएगा, और सूतक काल के सारे नियम सभी को मानने होंगे. यहां बात करेंगे ग्रहण से जुड़े सूतक एवं पातक काल के बारे में कि सूतक और पातक काल कब लगते हैं और इनके नियम क्या हैं, तथा ग्रहण से इनका क्या संबंध है. यह भी पढ़ें: Solar Eclipse 2023: इस सूर्य ग्रहण पर दिखेगा ‘रिंग ऑफ फायर’ का दिव्य नजारा! सूतक काल के इन नियमों को मानना जरूरी!
सूतक एवं पातक काल का ग्रहण से संबंध
ज्योतिष शास्त्र में सूर्य एवं चंद्र ग्रहण के दरमियान लगने वाले सूतक काल का विशेष महत्व बताया गया है. यहां बता दें कि हिंदू धर्म शास्त्र में सूतक और पातक नामक दो परंपराएं प्रचलित हैं. ग्रहण के अलावा सूतक और पातक काल का जन्म एवं मृत्यु से भी गहरा संबंध होता है. मान्यता है कि इनका पालन नहीं करने वाले व्यक्ति विशेष का जीवन प्रभावित हो सकता है. सूतक एवं पातक काल के नियम एक होने से इन्हें जन्म, मृत्यु एवं ग्रहण से संबंधित माना जाता है
ग्रहण और सूतक काल
हिंदू धर्म में सूर्य अथवा चंद्र ग्रहण से पूर्व लगने वाले सूतक काल के नियमों का पालन बड़ी गंभीरता से किया जाता है. इस दरमियान मंदिरों में पूजा-अनुष्ठान वर्जित होता है. कोई भी शुभ-मंगल कार्य नहीं किये जाते हैं. दरअसल सूतक का संबंध ग्रहण एवं जन्म के समय हुई अशुद्धियों से है. घर में जब किसी बच्चे का जन्म होता है, तो उसके परिवार पर सूतक के नियम लागू हो जाते हैं. इस दौरान बच्चे के माता-पिता और घर के सदस्य किसी भी आध्यात्मिक कार्य में हिस्सा नहीं ले सकते. बच्चे की छठी पूजा तक माँ का भी मंदिर अथवा रसोई घर में प्रवेश वर्जित होता है.
क्या है पातक काल
गरुड़ पुराण के अनुसार किसी परिजन की मृत्यु होने के बाद पातक काल लग जाता है. ऐसा मृत्यु के कारण फैली अशुद्धियों के कारण होता है. इस दरम्यान परिवार के लोग किसी भी शुभ मंगल कार्य में ना सरीक हो सकते हैं, ना ही स्वयं शुभ कार्य कर सकते हैं. बहुत से घरों में चूल्हा भी नहीं जलता. इन नियमों को पहले 13 दिनों तक हर परिजनों को पालन करना होता है, हालांकि नियमों से पूरी तरह मुक्ति मृतक के अंतिम संस्कार, अस्थि विसर्जन, पवित्र नदी में स्नान और ब्राह्मण भोज के पश्चात ही मिलती है. ये सारे कार्यक्रम अधिकतम 45 दिनों में पूरे होते हैं.