Shivaratri Pooja 2024: कब है शिवरात्रि? जानें इस दिन शिवलिंग पर क्या चढ़ाएं और क्या नहीं!
Shivaratri Pooja 2024

हिंदी पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है. कुछ हिंदू ग्रंथों में उल्लेखित है कि इसी दिन शिव-पार्वती का मिलन हुआ था, जबकि कुछ पौराणिक ग्रंथों के अनुसार भगवान शिव के प्रतीक शिवलिंग का पृथ्वी पर प्राकट्य भी इसी दिन हुआ था. शैव धर्मावलंबियों एवं शिव भक्तों के लिए शिवरात्रि का विशेष महत्व बताया गया है. यह भी पढ़ें: Mahashivratri 2024: इस बार कब मनाईं जाएगी महाशिवरात्रि, जाने तिथि और मुहूर्त और पूजा विधि

अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष 8 मार्च, 2024 शुक्रवार को महाशिवरात्रि मनाई जाएगी. महाशिवरात्रि के अवसर पर शिवलिंग का महाभिषेक करने का विधान है. यहां हम बात करेंगे, शिवलिंग के महाभिषेक करते समय किन-किन वस्तुओं का इस्तेमाल करना चाहिए और किन वस्तुओं का इस्तेमाल हर्गिज नहीं करना चाहिए. ज्योतिषियों के अनुसार शिवलिंग पर गलत वस्तुएं अर्पित करने से दरिद्रता और दुर्भाग्य घेर लेती है.

शिवलिंग पर आवश्यक रूप से चढ़ाई जाने वाली वस्तुएं

बेल-पत्रः बेल-पत्र के तीन जुड़े पत्तों को शिवलिंग पर चढ़ाने से शिवजी को शांति मिलती है. त्रिकोणीय आकार होने के साथ बेल-पत्र शिवकी तीन आंखों का प्रतिनिधित्व करते हैं, यही नहीं यह भगवान शिव के त्रिशूल का भी प्रतिनिधित्व करता है. आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से बेल ठंडक भी प्रदान करते हैं.

भांग-धतूराः समुद्र-मंथन में निकला हलाहल पीने के बाद विष की तीव्रता से शिवजी बेहोश हो गये. तब शिवजी के शरीर की गर्मी को दूर करने के लिए देवताओं ने उनके शरीर पर धतूरा और भांग रखकर जलाभिषेक किया तब उनके शरीर का विष निकला था.

कच्चा दूधः दरअसल मंदिर में कई तरह के लोगों का आना-जाना रहता है, इससे सकारात्मक एवं नकारात्मक ऊर्जा जमा होती जाती है. ऐसे में शिवलिंग पर धार के साथ कच्चा दूध और पानी डालने से ऊर्जा का स्तर उच्चतम रहता है, यही वजह है कि मंदिर में प्रवेश करने पर हम ऊर्जावान महूसस करते हैं.

बेरः मान्यता है कि हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार कैलाश पर्वत पर सबसे ज्यादा बेर का फल ही उपलब्ध होता है. माँ पार्वती भी शिवजी की पूजा करते समय ज्यादातर बेर ही चढ़ाती थीं. पार्वती जी की देखा-देखी अन्य देवी-देवता तथा ऋषि-मुनि भी शिवजी को बेर चढ़ाने लगे, जिसे मनुष्यों ने भी अपनाया.

चंदनः इसके पीछे भी हलाहल की कहानी है. वस्तुतः आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से चंदन शीतल और विष काटने वाली जड़ी के रूप में जानी जाती है. हलाहल की गर्मी शांत करने के लिए ही शिवलिंग पर चंदन का लेप लगाया जाता है. शिवरात्रि पर शिवलिंग का अभिषेक करने के बाद उन्हें चारों तरफ से चंदन का लेप लगाने का भी विधान है.

शिवलिंग पर ये पांच वस्तुएं भूलकर भी नहीं चढ़ाएं!

सिंदूरः भगवान शिव को पुरुषत्व का प्रतीक माना जाता है, जबकि सिंदूर महिलाओं से संबंधित है, इसलिए शिव जी को सिंदूर अर्पित नहीं करना चाहिए. इसके साथ ही एक कारण यह भी है कि शिव संहारक हैं, विनाशक हैं, इसके विपरीत सिंदूर का संबंध दीर्घायु से होता है.

तुलसी पत्ताः पौराणिक कथाओं के अनुसार शिवजी ने छल से वृंदा (तुलसी) के दैत्य पति का संहार किया था, इसलिए अत्याधिक पवित्र और पूजन योग्य होने के बावजूद शिव की पूजा में तुलसी का उपयोग नहीं करना चाहिए, वरना पूजा स्वीकार नहीं होगी.

शंखः हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव ने भगवान विष्णु के प्रिय भक्त शंखचूड़ नामक असुर का वध किया था. पूजा में उपयोग किया जाने वाला शंख उसी दैत्य का प्रतीक माना जाता है. इसलिए शिवलिंग अथवा भगवान शिव की पूजा में शंख का हर्गिज उपयोग नहीं करना चाहिए.

हल्दीः जिस तरह सिंदूर का संबंध स्त्रियों से है, उसी तरह हल्दी भी स्त्री तत्व का ही प्रतिनिधित्व करती है. जबकि शिवलिंग पुरुषत्व का संबंध है, इसलिए शिवलिंग पर हल्दी का उपयोग नहीं करना चाहिए.