Shab-e-Barat 2021: कब है शब-ए-बरात की अफज़ल रात? जानें इस्लाम में क्यों है अहम
शब-ए-बारात (File Image)

शब-ए-बरात: शब-ए-बरात (Shab-e-Barat) मुस्लिम समाज के प्रमुख पर्वों में एक है. यह पर्व शाबान माह की 14वीं तारीख को सूर्यास्त के बाद शुरू होता है और 15वीं तारीख की रात तक मनाया जाता है. मुस्लिम धर्म (Muslim Religion) में मान्यता है कि इस रात सच्चे दिल से अल्लाह की इबादत की जाए और गुनाहों से तौबा की जाए तो अल्लाह इंसान उसकी इबादत स्वीकार करते हुए उसके सभी गुनाहों को माफ कर देता है. इस साल शब-ए-बरात का पर्व 28 मार्च से शुरू होकर 29 तक मनाया जाएगा.

क्या है शब-ए-बारात

दो लफ्ज़ों वाले शब-ए-बारात में शब का मतलब रात और बरात का मतलब बरी होता है. इस्लामिक कैलेंडर (Islamic calendar) के मुताबिक शाबान माह की 15वीं तारीख को जो रात आती है, वो शब-ए-बरात कहलाती है. इस दिन लोग रात भर जागकर अल्लाह की इबादत करते हैं.अल्लाह के बंदे नमाज़, तिलावते कुरान, ज़िक्र और तस्बीह वगैरह का खास एहतिमाम करते हैं. साथ ही अल्लाह से हाथ फैलाकर दुआ मांगते हैं.

क्यों खास है शब-ए-बारात?

इस्लामिक मान्यतानुसार इस दिन दुनिया से विदा हो चुके मुस्लिम परिवार अपने पूर्वजों की कब्रों पर जाकर उनके हक में दुआ मांगते हैं. कहते हैं कि इस रात हर तरह के फैसले होते हैं. इसी दिन अल्लाह अपने बंदों के कर्मों का लेखा जोखा करता है और बहुत सारे लोगों को नरक की जिंदगी से आजाद करता है. इसी वजह से मुस्लिम लोग शब-ए-बारात की पूरी रात जागकर अल्लाह की सच्चे मन से इबादत करते हैं. कहते हैं कि सच्चे दिल से अल्लाह की इबादत करते हुए अपने गुनाहों से तौबा की जाए तो अल्लाह इंसान के हर गुनाह को माफ कर देता है.

क्या है मान्यताएं?

इस्लामिक मान्यतानुसार शब-ए-बारात के दिन पैगंबर प्रत्येक घर का दौरा करते है और दुख-दर्द से पीड़ित लोगों के दुखों को दूर करते हैं. शब-ए-बरात से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार जन्नत में एक विशेष पेड़ है, जिसमें सभी व्यक्तियों के नाम अलग-अलग पत्तियों पर लिखे होते हैं. इस रात किसी व्यक्ति के नाम का पत्ता इस रात गिरता है, तो यह माना जाता है कि वह इसी वर्ष मृत्यु को प्राप्त होगा.

क्या करते है?

शब-ए-बारात की रात मुस्लिमों द्वारा गरीबों में इमदाद बांटने की पुरानी प्रथा है. इस दिन लोग अपने पूर्वजों को याद करते हैं. वे सुबह कब्रिस्तान (graveyard) जाते हैं और अपने पूर्वजों की कब्र पर फूलों की चादर चढ़ाते हैं. जन्नत सिधार चुके अपने सगे संबधियों की आत्माओं की शांति के लिए फतेहा पढ़ते हैं. शबान माह की 15वीं तारीख की यह रात सिर्फ इबादत की रात होती है. इस खास रात में अल्लाहताला अपने बंदों को खास तवज्जो देते हैं. बंदों के पास एक मौका होता है, अल्लाह से अपने जाने-अनजाने में किये गुनाहों की माफी मांगने का, साथ ही उनके गुनाहों के लिए भी माफी मांगने और उन्हें जन्नत भेजने का, जो दुनिया से गुजर चुके हैं. यही वजह कि इस पूरी रात लोग जागकर इबादत करते हैं और दुआएं मांगते हैं. शब-ए-बारात के दिन मुस्लिम परिवार के लोग में खीर एवं हलवा खाने और खिलाने की भी परंपरा है.