Pitru Paksha 2020: पितृपूजा पर भी कोरोना का साया! सूनसान पड़ा है गया धाम! कैसे करें कोरोना में श्राद्ध कि पितृ नाराज ना हों. हर तीर्थ की अपनी महिमा होती है, और इस महिमा का मूल्यांकन उनके श्रद्धालुओं से होता है. सनातन धर्म में पित्तरों को तर्पण देने का मुख्य केंद्र गया जी को माना गया है. यहां प्रत्येक वर्ष भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन मास की अमावस्या तक पित्तरों का मेला सदृश्य लगता है. देश के अधिकांश लोग अपने पित्तरों को श्राद्ध, तर्पण, पिण्डदान इत्यादि करने गयाजी पहुंचते हैं. लेकिन इस वर्ष कोरोनावायरस के कारण गया जी में सन्नाटा छाया हुआ है.
कोरोना के कहर और लॉकडाउन के कारण केंद्र व राज्य सरकार के गृह विभाग ने भी गाइडलाइन जारी कर धार्मिक आयोजनों पर प्रतिबंध लगाया है. यही वजह है कि इस श्राद्ध के पखवारे में भी गयाधाम में सन्नाटा पसरा हुआ है. कहा जा रहा है कि गया के पण्डा समाज ने इस वर्ष कोरोना संक्रमण पर नियंत्रण को ध्यान में रखते हुए फैसला लिया है कि इस वर्ष गया में पिण्डदान नहीं होगा. यही नहीं पंडा समाज ने इस वर्ष ऑन लाइन पिण्डदान भी नहीं करने का फैसला लिया है. तो क्या इस वर्ष पित्तरों का पिण्डदान नहीं होगा? यह भी पढ़ें | Pitru Paksha 2020: कब से शुरू हो रहा है पितृपक्ष? पूर्णिमा से लेकर अमावस्या के श्राद्ध तक, देखें सभी महत्वपूर्ण तिथियों की पूरी लिस्ट.
पितृपक्ष की मान्यता
हिंदू धर्म में मान्यता है कि जिन प्राणियों की मृत्यु के बाद उनका विधि-विधान से तर्पण नहीं किया जाता, उनकी आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती है. श्राद्ध पखवारे में ये पित्तर इसी उम्मीद के साथ पृथ्वी पर आते हैं कि उनकी संतानें उनका पिण्डदान एवं तर्पण कर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करेंगी. जो लोग अपने पितरों को तर्पण नहीं करते, उन्हें पितृदोष का सामना करना पड़ता है. ऐसे दोष की स्थिति में उन्हें धन, सेहत और अन्य कई तरह के कष्ट उठाने पड़ सकते हैं.
लॉक डाउन में ऐसे करें पितृ-तर्पण
भाद्रपद महीने की पूर्णिमा से आश्विन मास की अमावस्या तक पितृपक्ष रहता है. इस वर्ष 2 सितंबर से 17 सितंबर तक पितृपक्ष है. ज्योतिषियों का कहना है कि कोरोना महामारी को फैलने से रोकने के लिए लोग गंगा तट पर न जाकर घर पर ही कुछ विशेष कर्मकांड व दान आदि कर सकते हैं.
इन बातों का ध्यान अवश्य रखें
- अगर आपको अपने पूर्वज की श्राद्ध तिथि (मृत्यु-तिथि)याद नहीं है तो अन्य सगे संबंधियों से पूछ लें, सही तिथि पर किये गये श्राद्ध का ही लाभ पित्तर को मिलता है. वरना उन्हें मुक्ति नहीं मिलेगी.
- श्राद्ध के दिनों में आपके द्वार पर कोई आये तो उसका अनादर नहीं करें. सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए भी उसका सत्कार अवश्य करें. क्योंकि ऐसी मान्यता है कि आपके पित्तर किसी भी रूप में आपके पास आ सकते हैं.
- पितृ पक्ष के अंतिम दिन यानी चतुर्दशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाने के बाद दान देना न भूलें,
- अगर आप पितृपक्ष में तर्पण कर रहे हैं, तो आपको अंतिम तिथि के पूर्व तक दाढ़ी और बाल नहीं बनवानी चाहिए. ऐसा करने से आपके पित्तर नाराज हो सकते हैं.
जिस तिथि को आपके पितृदेव का श्राद्ध हो, उस दिन बिना साबुन लगाये स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें, फिर बिना प्याज-लहसुन का प्रयोग किये पितृदेव के पसंदीदा भोजन अथवा पूरी, हलवा और आलू की सब्जी बनाकर एक पत्तल पर रखें. गिलास से अंजुरी में जल लेकर तीन बार उस पत्तल के चारों ओर छिड़क कर पित्तर का आह्वान करें. अब इसे किसी ब्राह्मण को दान कर दें. इसके अलावा श्राद्ध के पूरे पखवारे तक नियमित जलदान करने से भी पित्तर प्रसन्न होते हैं, और उन्हें पितृदोष नहीं लगता.