Pitru Paksha 2020: हिंदू कैलेंडर में पितृ पक्ष (Pitru Paksha) का अवधि को ऐसा समय माना जाता है जब लोग अपने मृत पूर्वजों को श्राद्ध और तर्पण का अनुष्ठान करके श्रद्धांजलि देते हैं. अमावसंत कैलेंडर के अनुसार, पितृ पक्ष भाद्रपद महीने में आता है और जो लोग पूर्णिमांत कैलेंडर का पालन करते हैं वे आश्विन के महीने में इसका पालन करेंगे. हालांकि केवल महीनों के नाम अलग-अलग हैं, लेकिन तारीख समान है. पितृ पक्ष पूर्णिमा के दिन से शुरू होता है, जिसे तमिल में पूनम या पूर्णमनी भी कहा जाता है.
पितृ पक्ष पूर्णिमा के दिन या उसके दूसरे दिन से शुरू होता है. यह चंद्र चक्र के वानिंग चरण की शुरुआत को चिह्नित करता है. यह हिंदू कैलेंडर में 16 दिनों की बड़ी अवधि है, क्योंकि पितृ पक्ष के दौरान, लोग अपने मृत परिजनों और पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण और श्राद्ध अनुष्ठान करते हैं. ऐसा कहा जाता है कि मृतक की असंतुष्ट आत्माएं अपने परिवार के सदस्यों को देखने के लिए पृथ्वी पर लौट आती हैं. ऐसें उनकी आत्मा की शांति के लिए और उनका आशीर्वाद पाने के लिए पितृ पक्ष में श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान जैसे कार्य किए जाते हैं.
श्राद्ध पक्ष 2020 का कैलेंडर
तारीख | दिन | श्राद्ध तिथि |
2 सितंबर 2020 | बुधवार | प्रतिपदा श्राद्ध |
3 सितंबर 2020 | गुरुवार | द्वितीया श्राद्ध |
4 सितंबर 2020 | शुक्रवार | --------------- |
5 सितंबर 2020 | शनिवार | तृतीया श्राद्ध |
6 सितंबर 2020 | रविवार | चतुर्थी श्राद्ध |
7 सितंबर 2020 | सोमवार | पंचमी श्राद्ध |
8 सितंबर 2020 | मंगलवार | षष्ठी श्राद्ध |
9 सितंबर 2020 | बुधवार | सप्तमी श्राद्ध |
10 सितंबर 2020 | गुरुवार | अष्टमी श्राद्ध |
11 सितंबर 2020 | शुक्रवार | नवमी श्राद्ध |
12 सितंबर 2020 | शनिवार | दशमी श्राद्ध |
13 सितंबर 2020 | रविवार | एकादशी श्राद्ध |
14 सितंबर 2020 | सोमवार | द्वादशी श्राद्ध |
15 सितंबर 2020 | मंगलवार | त्रयोदशी श्राद्ध |
16 सितंबर 2020 | बुधवार | चतुर्दशी श्राद्ध |
17 सितंबर 2020 | गुरुवार | अमावस्या श्राद्ध |
पूर्वजों की तृप्ति के लिए पिंड दान (पके हुए चावल और काले तिलों से युक्त भोजन अर्पित करने की विधि) करके उन्हें संतुष्ट किया जाता है. पिंड दान का अर्थ होता है अपने पूर्वजों को भोज कराना. उन लोगों को खुश करने की रस्म है जो स्वर्गवासी हो चुके हैं. मृत पूर्वजों के लिए पूजा-पाठ किया जाता है इससे पितरों को शांति मिलती है और उन्हें जन्म, मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र से छुटकारा पाने में मदद मिलती है.
पितृ दोष से पीड़ित लोगों के लिए भी पितृ पक्ष एक महत्वपूर्ण अवधि है. इस अवधि में लोग श्राद्ध अनुष्ठान करते हैं और कौवे को भोजन कराते हैं (माना जाता है कि यह मृतकों के प्रतिनिधि हैं). माना जाता है कि लोगों द्वारा प्रदान किए गए भोजन को अगर कौवा ग्रहण करता है तो यह पूर्वजों के प्रसन्न होने का संकेत होता है. अगर कौवा भोजन नहीं करता है तो इसका अर्थ यह माना जाता है कि हमारे पितृ हमसे नाराज हैं.
हिंदू मान्यताओं के अनुसार, श्राद्ध न करने से पितृदोष लगता है. श्राद्धकर्म-शास्त्र में उल्लिखित है- "श्राद्धम न कुरूते मोहात तस्य रक्तम पिबन्ति ते" अर्थात् मृत प्राणी बाध्य होकर श्राद्ध न करने वाले अपने सगे-सम्बन्धियों का रक्त-पान करते हैं. उपनिषद में भी श्राद्धकर्म के महत्व का प्रमाण मिलता है- "देवपितृकार्याभ्याम न प्रमदितव्यम" इसका अर्थ है कि, देवता एवं पितरों के कार्यों में आलस्य मनुष्य को कदापि नहीं करना चाहिए.