ईद-अल-अधा और ईद-उल-फितर दोनों में ही ईद शब्द जुड़ा होने से एक जैसे प्रतीत होते हैं. ऐसे में भ्रम होना स्वाभाविक है कि दोनों ईद में फर्क क्या है. हम यहां बात करेंगे कि इस्लाम धर्म के अनुसार दोनों पर्वो में मूलभूत एवं पारंपरिक अंतर क्या है. इस्लामिक कैलेंडर में दो ईद मनाने का जिक्र है.
ईद अल-अधा अथवा बलिदान का यह पर्व एक सुप्रसिद्ध इस्लामी त्यौहार है, जो इस्लामिक चंद्र कैलेंडर के बारहवें और अंतिम महीने में पड़ता है. बहुत सी जगहों पर इसे बकरीद के नाम से जानते हैं. मुस्लिम समाज ईद उल-फितर और ईद अल-अधा दोनों ही मित्र और परिजनों के साथ मनाते हैं. ईद की तारीखें हर वर्ष बदलती हैं, लेकिन ईद उल-जुहा ईद उल-फितर के करीब ढाई माह यानी 70 दिन पहले मनाया जाता है. गौरतलब है कि ईद-उल-फितर 3 मई 2022 को मनाया गया था, जबकि बकरीद 2022 का पर्व 10 जुलाई, रविवार के दिन मनाया जायेगा. यद्यपि दोनों ही पर्व मुस्लिम समाज के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं और दोनों ही बहुत धूमधाम से मनाया जाता है. ईद और बकरीद के फर्क को समझने के लिए ईद और बकरीद की परंपराओं और इस्लामिक सिद्धांतों पर भी एक नजर डालना होगा
ईद-उल-फितर क्या है?
इस्लाम धर्म के अनुसार ईद-उल-फितर मुस्लिमों का सबसे बड़ा पर्व होता है. मक्का से मोहम्मद पैगंबर के प्रवास के बाद पवित्र शहर मदीना में ईद-उल-फितर का त्यौहार शुरु हुआ था. मान्यता है कि पैगंबर हजरत मुहम्मद ने बद्र की लड़ाई जीती थी और इसी खुशी में सबका मुंह मीठा करवाया था. इसीलिए इसे मीठी ईद के नाम से भी पुकारा जाता है. इस्लामी कैलेंडर के अनुसार हिजरी संवत 2 यानी 624 ईस्वी में पहली बार (करीब 1400 साल पूर्व) मनाया गया था. ईद की मूल पहचान यह है कि इससे पूर्व 30 रोजे रखे जाने का प्रावधान है. यह पर्व रमजान का चांद डूबने और ईद का चांद नजर आने पर इस्लामिक माह की पहली तारीख को मनाया जाता है. इस दिन लोग मस्जिदों में नमाज अदा करते हैं, और एक दूसरे को ईद की मुबारकबाद देते हैं.
ईद उल-अधा (बकरीद) क्या है?
ईद उल-अधा को बकरीद के नाम से भी जाना जाता है. यहां बता दें कि अधा का अर्थ बलिदान होता है. ईद अल-अधा को इब्राहिम के आज्ञाकारिता कार्य और बिना कोई प्रश्न किये अल्लाह के आदेशों का पालन करने की उनकी इच्छा को मनाने के लिए चिह्नित किया गया है. बकरीद रमजान के 70 दिन बाद मनाई जाती है, बकरीद को कुर्बानी की ईद मानी जाती है. पहली मीठी ईद जिसे ईद उल-फितर कहा जाता है, और दूसरी बकरीद को ईद उल-जुहा कहते हैं. इस दिन लोग बकरे या भेड़ की कुर्बानी दी जाती है. कुर्बानी के गोश्त को तीन हिस्सों में बांटा जाता है. एक हिस्सा गरीबों को, दूसरा मित्र एवं निकटतम रिश्तेदारों को तीसरा खुद के लिए रखते हैं.
इस माह दुनिया भर के मुस्लिम हज की यात्रा में जाते हैं. हजरत इब्राहिम के सपने और कुर्बानी की घटना के बाद अपने बेटे और पत्नी हाजरा को मक्का में लाने का निर्णय लिया था. उस समय मक्का सिर्फ एक रेगिस्तान था. हज़रत इब्राहिम ने अपने बेटे और पत्नी को वहां बसाया. उस समय रेगिस्तान में अपने परिवार को बसाना इब्राहिम के लिए कुर्बानी के समान था.