हिंदू पंचांग के अनुसार साल में कुल 24 एकादशियां (12 कृष्ण पक्ष में 12 शुक्ल पक्ष में) मनाई जाती है. इस वर्ष कार्तिक कृष्ण पक्ष के 11वें दिन रमा एकादशी पड़ रही है. इसे रंभा एकादशी या कार्तिक कृष्ण एकादशी भी कहा जाता है. तमिल कैलेंडर में, यह पुआतासी के दौरान आता है, जबकि कर्नाटक, गुजरात, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश जैसे क्षेत्रों में, यह अश्विन महीने में मनाया जाता है. मान्यता है कि रमा एकादशी का व्रत एवं पूजा-अनुष्ठान करने से जातक की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं, और मृत्योपरांत मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस वर्ष रमा एकादशी व्रत 28 अक्टूबर 2024 को रखा जाएगा. आइये जानते हैं रमा एकादशी के महत्व, मुहूर्त, तिथि एवं पूजा अनुष्ठान के बारे में...
रमा एकादशी 2024 का महत्व
धर्म शास्त्रों के अनुसार एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित है. कार्तिक मास में भगवान विष्णु योग निद्रा से जागते हैं, इस वजह से इस मास पड़ने वाली रमा एकादशी का विशेष धार्मिक महत्व बताया गया है. मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु का व्रत एवं उपासना करने वाले जातकों को सभी प्रकार के पापों और कष्टों से मुक्ति मिलती है. ऐसी भी मान्यता है कि रमा एकादशी व्रत एवं अनुष्ठान करने वाले जातकों को एक हजार अश्वमेघ यज्ञ करने के समान शक्तिशाली माना जाता है. इस व्रत का पालन करने वालों को ब्रह्म-हत्या के पाप से मुक्ति के साथ मोक्ष की प्राप्ति होती है, साथ ही पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त मिल सकती है. यह भी पढ़ें : Chanakya Niti: तीर्थयात्रा करने से मनुष्य का कलुषित ह्रदय पवित्र नहीं हो सकता! जानें चाणक्य का स्नेह और यश के प्रति नजरिया!
रमा एकादशी 2024: मूल तिथि एवं मुहूर्त
कार्तिक कृष्ण पक्ष एकादशी प्रारंभः 05.23 AM (27 अक्टूबर 2024, रविवार)
कार्तिक कृष्ण पक्ष एकादशी समाप्तः 07.50 AM (28 अक्टूबर 2024, सोमवार)
उदया तिथि के अनुसार 28 अक्टूबर 2024 को रमा एकादशी व्रत रखा जाएगा.
पारण कालः 06.31 AM बजे से 08.44 AM (29 अक्टूबर 2024)
रमा एकादशी व्रत एवं अनुष्ठान के नियम
एकादशी का व्रत रखने वाले जातक को एक दिन पूर्व यानी दशमी की संध्याकाल से द्वाद्वशी की सुबह व्रत के पारण तक अन्न त्याग के नियमों का तत्परता से पालन करना चाहिए. जातक को सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान-ध्यान कर भगवान विष्णु के व्रत एवं अनुष्ठान के नियमों का निष्ठा से पालन करने का संकल्प लेना चाहिए. इसके पश्चात घर एवं विशेषकर मंदिर की सफाई कर मंदिर के सामने उत्तर-पूर्व दिशा एक स्वच्छ चौकी रखें, इस पर लाल या पीले रंग का आसन बिछाएं. भगवान विष्णु को पहले पंचामृत (दूध, दही, शहद, घी और चीनी से युक्त) तत्पश्चात गंगाजल से स्नान करवाकर चौकी पर स्थापित करें. धूप-दीप प्रज्वलित कर निम्न मंत्र का जाप करते हुए पूजा प्रारंभ करें.
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
विष्णु जी को पीला चंदन, पीला फूल, दूध से बनी मिठाई, तुलसी विशेष रूप से अर्पित करें. मनोकामना सिद्धि की प्रार्थना करें. इसके बाद विष्णु सहस्त्रनाम का जाप करें और अंत में भगवान विष्णु की आरती उतारें. यही पूजा संध्याकाल के समय भी करें. अगले दिन व्रत का पारण करें.