रमा एकादशी का महात्म्य: साल के 24 एकादशियों में इस एकादशी का विशेष महात्म्य है, क्योंकि चार मास बाद इन्हीं दिनों भगवान श्रीहरि अपनी योग निद्रा से जागने के उपक्रम में होते हैं. पद्म पुराण के अनुसार रमा एकादशी व्रत करने से कामधेनि और चिंतामणि के समान फल की प्राप्ति होती है. यह व्रत करने से मां लक्ष्मी के साथ-साथ भगवान श्रीहरि की भी कृपा बरसती है. मान्यता है कि जो भी व्यक्ति इस व्रत को पूरे विधि-विधान से करता है, उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं. उसके जीवन में धन-धान्य की कभी कमी नहीं रहती. इस वर्ष रमा एकादशी 11 नवंबर को पड़ रही है.
क्यों कहते हैं इसे रमा एकादशीः कार्तिक मास भगवान विष्णु को समर्पित होता है. हालांकि श्रीहरि इस समय योग-निद्रा में होते हैं. चार मास बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी को वे जागृत होते हैं. श्रीहरि के योग निद्रा के दरम्यान कृष्णपक्ष के जितने भी पर्व आते हैं, उनका संबंध किसी न किसी रूप में माता लक्ष्मी से भी होता है. दीपावली पर तो विशेष रूप से मां लक्ष्मी का ही पूजन किया जाता है. माता लक्ष्मी का ही एक अन्य नाम रमा भी है, इसलिये इस एकादशी को रमा एकादशी भी कहते हैं.
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व्रत एवं पूजा विधिः रमा एकादशी का व्रत दशमी की संध्या से ही आरंभ हो जाता है. इसलिए दशमी के दिन सूर्यास्त से पहले ही भोजन कर लेना चाहिए. इस तरह एकादशी के दिन उपवासी का पेट एकदम खाली रहता है. अगले दिन यानी एकादशी को प्रात: काल उठकर स्नान-ध्यान कर इस एकादशी व्रत का संकल्प लेना चाहिए. इसके बाद शुभ मुहूर्त पर श्रीहरि के अवतार त्रेता युग के भगवान श्रीकृष्ण की विधिवत धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्प एवं फलों एवं मिष्ठान से पूजा की जाती है. श्रीहरि को तुलसी बहुत प्रिय थीं, इसलिए पूजा के समय तुलसी पूजन भी अवश्य करना चाहिए. लेकिन एकादशी के दिन तुलसी तोड़ते नहीं हैं, इसलिए एक दिन पहले तुलसी के कुछ पत्ते तोड़कर रख लीजिये. एकादशी के दिन रात्रि जागरण कर भगवान श्रीहरि का कीर्तन आदि करना चाहिए. द्वाद्वशी के दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान-ध्यान से निवृत्त होकर श्रीहरि की पूजा करें. इसके बाद किसी ब्राह्मण को भोजन कराकर सामार्थ्यनुसार दक्षिणा दें. अब व्रत का पारण करें.
व्रत की पारंपरिक कथाः किसी समय मुचुकुंद नामक एक राजा होते थे. बहुत ज्यादा धर्म-कर्म करनेवाले, एवं श्रीहरि के भक्त भी थे. उनकी कन्या चंद्रभागा का विवाह चंद्रसेन के पुत्र शोभन से हुआ था. कार्तिक मास की दशमी के दिन शोभन अपने ससुराल आये. शाम को राजा ने ढिंढोरा पिटवा दिया कि एकादशी के दिन सभी को उपवास रखना होगा. शोभन ने कभी उपवास नहीं किया था, उससे भूख सहन नहीं होती थी. उसने चंद्रभागा को यह बात बताई. चंद्रभागा ने कहा कि हमारे राज्य में मनुष्य ही नहीं पालतु जीव-जंतुओं तक को भोजन करने की अनुमति नहीं होती. विवश होकर शोभन ने उपवास किया, लेकिन पारण करने से पहले उसकी मृत्यु हो गयी. चंद्रभागा ने पति के साथ खुद को सती नहीं किया और पिता के यहां रहने लगी. उधर एकादशी व्रत के पुण्य से शोभन को अगले जन्म में मंदरांचल पर्वत पर आलीशान राज्य प्राप्त हुआ. एक बार मुचुकुंदपुर के ब्राह्मण तीर्थ यात्रा करते हुए शोभन के दिव्य नगर पहुंचे. उन्होंने सिंहासन पर विराजमान शोभन को देखते ही पहचान लिया. ब्राह्मणों को आता देख शोभन सिंहासन से उठ खड़ा हुआ. उसने जिज्ञासा प्रकट की कि यह सब कैसे हुआ. शोभन ने रमा एकादशी के सुफल के बारे में बताया. तीर्थ यात्रा से लौटकर ब्राह्मणों ने चंद्रभागा को यह बात बताई. चंद्रभागा बहुत खुश हुई. वह पति के पास जाने के लिए व्यग्र हो गयी. वह वाम ऋषि के आश्रम पहुंची. महर्षि के मंत्र और चंद्रभागा द्वारा किये एकादशी व्रत के पुण्य से वह दिव्यात्मा बन गई. वह मंदरांचल पर्वत पर अपने पति के पास जा पंहुची. अपने एकादशी व्रतों के पुण्य का फल शोभन को देते हुए उसके सिंहासन व राज्य को चिरकाल के लिये स्थिर कर दिया. इस तरह जो भी इस व्रत को विधिपूर्वक करते हैं वे ब्रह्महत्या जैसे पाप से भी मुक्त हो जाते हैं और उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं.
रमा एकादशी का मुहूर्त:
एकादशी आरंभः सुबह 03.22 बजे से (11 नवंबर 2020)
एकादशी समाप्तः रात 12.40 बजे तक (12 नवंबर 2020)
व्रत का पारणः प्रातः 06.42 बजे से सुबह 08.51 बजे तक