Paush Purnima 2023: कब है पौष पूर्णिमा? जानें तीन विशेष योगों में श्रीहरि, माँ लक्ष्मी, सूर्य एवं चंद्रमा की पूजा का विशेष महत्व एवं पूजा विधि एवं मुहूर्त!
Paush Purnima (Photo Credits: file photo )

सनातन धर्म में हर पूर्णिमा का महत्व होता है. लेकिन चूंकि पौष भगवान सूर्य को समर्पित माह बताया गया है, और इस दिन चंद्रमा पूर्ण आकार में चमकता होता है, इसलिए इस दिव सूर्य देव के साथ चंद्रमा की भी पूजा-अर्चना की जाती है. इस दिन का वर्णन पुराणों में भी किया गया है. ज्योतिषियों के अनुसार इस दिन गंगा-स्नान के साथ-साथ दान का भी विधान है. मान्यता है ऐसा करने से अक्षुण्य-पुण्य एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है, तथा रोग, शोक, कष्ट एवं कर्ज से मुक्ति मिलती है. इस वर्ष 6 जनवरी 2023 शुक्रवार के दिन पौष पूर्णिमा मनाई जायेगी. आइये जानें पौष पूर्णिमा पर्व के बारे में विस्तार से..

पौष पूर्णिमा का महत्व

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, पौष सूर्य देव का माह है. इस मास में सूर्य देव की आराधना से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है. इसलिए पौष पूर्णिमा के दिन पवित्र गंगा में स्नान और सूर्य देव को अर्घ्य की विशेष परंपरा है. वहीं पौष पूर्णिमा के दिन चंद्रमा भी अपने पूर्ण यवन पर होता है, इसलिए इस दिन सूर्य और चंद्रमा का दिव्य संगम होता है. इस दिन माँ लक्ष्मी की भी रात्रि-पूजा का विशेष विधान है, इसलिए अधिकांश जातक इस दिन भगवान विष्णु, माँ लक्ष्मी, के साथ सूर्य एवं चंद्रमा की पूजा करते हैं. ऐसा करने से जातक की सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. और जीवन में आने वाली सारी बाधाएं दूर होती है. यह भी पढ़ें : Savitribai Phule Quotes 2023: सावित्रीबाई फुले जयंती पर उनके ये महान विचार WhatsApp Stickers, HD Wallpapers के जरिए भेजकर दें शुभकामनाएं

पौष पूर्णिमा 2023 शुभ मुहूर्त एवं विशेष योग!

पौष पूर्णिमा प्रारंभ: 02.14 AM (06 जनवरी 2023) से

पौष पूर्णिमा समाप्त: 04.37 AM (07 जनवरी 2023) तक

उदयातिथि के अनुसार पौष पूर्णिमा 06 जनवरी को मनाई जाएगी. इस दिन चंद्रमा की पूजा का भी विधान है. इस दिन चंद्रोदय शाम 04.32 PM पर होगा.

इंद्र योग: 08.11 AM (06 जनवरी 2023) से 08.55AM (07 जनवरी 2023) तक

ब्रह्म योग: 07.34 AM (05 जनवरी 2023) से  08.11 AM (06 जनवरी 2023) तक

सर्वार्थ सिद्धि योग: 12.14 AM  (07 जनवरी 2023) से सुबह 06.38 AM (08 जनवरी) तक

मान्यता है कि इन तीनों योग में पूजा-पाठ का दोगुना फल प्राप्त होता है.

पौष पूर्णिमा पर पूजा-अर्चना!

पौष पूर्णिमा के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान-ध्यान के पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण कर भगवान मधुसूदन (विष्णु जी) एवं लक्ष्मी जी का व्रत एवं पूजा का संकल्प लें. सूर्य देव को अर्घ्य दें. घर के मंदिर में भगवान मधुसूदन एवं माता लक्ष्मी के समक्ष धूप दीप प्रज्वलित करें. अब इन्हें इत्र, पुष्प, पंचामृत, फल एवं दूध की मिठाई अर्पित करें. निम्न मंत्र का 11 जाप कर लें.

न माधवसमो मासों न कृतेन युगं समम्।

न च वेदसमं शास्त्रं न तीर्थं गंगया समम्।।

अंत में भगवान विष्णु की आरती उतारें, और लोगोँ में प्रसाद वितरित करें. इसके बाद गरीब और जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र, गुड़, तिल एवं कंबल का वितरण करें. बहुत से लोग इस दिन भगवान सत्य नारायण की पूजा एवं कथा का आयोजन भी करवाते हैं. चूंकि इस दिन चंद्रमा की पूजा की भी मान्यता है, इसलिए चंद्रोदय के पश्चात चंद्रमा को गाय के कच्चे दूध में चीनी मिलाकर अर्घ्य दें. इसके पश्चात पूर्णिमा की चांदनी रात में माँ लक्ष्मी जी की पूजा करने का भी विधान है.