Navratri 2019: पितृपक्ष के समापन के साथ ही 29 सितंबर (रविवार) से शारदीय नवरात्रोत्सव आरंभ हो रहे हैं. हिंदू पुराणों में नवरात्रि को वर्ष का सबसे बड़ा धार्मिक पर्व माना जाता है. मान्यता है कि इसी दिन माता गौरी कैलाश पर्वत से पृथ्वी स्थित अपने मायके (हिमालय) आती हैं. इसके साथ-साथ इस वर्ष नवरात्रि में कुछ दुर्लभ संयोग बन रहे हैं. पुरोहित एवं ज्योतिषाचार्य पं. रवींद्र पाण्डेय के अनुसार इस बार नवरात्र में ‘सर्वार्थसिद्धि’ और ‘अमृत सिद्धि’ योग एक साथ बन रहे हैं. सर्वसिद्धि योग को हर जातक के लिए बेहद शुभ माना जा रहा है.
इन वजहों से शुभकारी होगी नवरात्रि
ज्योतिषाचार्य के अनुसार इस बार लंबे अंतराल पर शारदीय नवरात्रि शुभ संयोगों के साथ आ रहा है. सर्वार्थ सिद्धि और अमृत सिद्धि योग के संयोग से माँ दुर्गा की पूजा विशिष्ठ फलदायी साबित होगी, साथ ही इस नवरात्रि में किसी भी तिथि के क्षय नहीं होने से श्रद्धालुओं को देवी माँ के व्रत एवं अनुष्ठान के लिए पूरे नौ दिन का समय मिलेगा, जो किसी भी भक्त के लिए बहुत शुभ है. इस दौरान दो सोमवार पड़ने से चंद्रसूचक योग भी बन रहा है, जिससे श्रद्धालुओं पर भगवान शिव और माँ पार्वती की विशेष कृपा रहेगी. इसके साथ-साथ बृहस्पति और चंद्रमा के ग्रहों से प्रभावित लोगों के लिए यह देवी पूजा विशिष्ठ फलदाई साबित हो सकती है. क्योंकि सोमवार का दिन माँ दुर्गा की पूजा के लिए विशिष्ठ प्रभावकारी माना जाता है.
शुभता का प्रतीक बनकर आएगा विजयादशमी
हिंदी पंचांगों के अनुसार इस वर्ष (2019) 7 अक्टूबर (सोमवार) को अपराह्नकाल में 12.38 बजे तक नवमी का विशेष योग बताया जा रहा है. इसके अगले दिन यानी 8 अक्टूबर (मंगलवार) को दोपहर 2.01 मिनट तक दशमी (विजयादशमी) का योग है. ज्योतिष शास्त्र इसे बेहद शुभ एवं मंगलकारी बता रहा है.
कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त
नौ दिनों तक उपवास रहकर माँ की पूजा-अर्चना करनेवाले अधिसंख्य श्रद्धालु घट (कलश) स्थापना करते हैं, जिससे माँ दुर्गा की विशेष कृपा प्राप्त होती है. इस बार ज्योतिषियों के अनुसार कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त 29 सितंबर (रविवार) प्रातःकाल 6 बजकर 16 मिनट से 7 बजकर 40 मिनट तक है. किन्हीं वजहों से कोई भक्त प्रातःकाल कलश स्थापना में असुविधा महसूस कर रहा है तो उसके लिए दिन में 11 बजकर 48 मिनट से 12 बजकर 35 मिनट तक का समय बहुत शुभ माना जा रहा है.
इस विधि से करें कलश स्थापना
कलश स्थापना के लिए आम मिट्टी के बजाय नदी तट की रेत का इस्तेमाल करें, क्योंकि नदी तट की रेत ज्यादा पवित्र मानी जाती है. इस रेत में जौ छिड़कने के पश्चात कलश पर रोली से स्वास्तिक का निशान बनाएं. अब इसमें गंगाजल भरकर ऊपर से 5 लौंग, 5 इलायची, 1 सुपारी, रोली, मौली, चंदन, अक्षत (चावल), हल्दी, सिक्का डालें. इसके पश्चात 'ॐ भूम्यै नमः' का जाप करते हुए कलश को रेत के ऊपर स्थापित कर दें. जब तक यहां कलश रहेगा, तब तक अखण्ड दीप जलाए रखना आवश्यक होगा.