
प्रत्येक वर्ष 5 जुलाई को राष्ट्रीय बिकिनी दिवस मनाया जाता है, जो फैशन जगत में उस क्रांतिकारी दिवस की याद दिलाता है, जब दुनिया के सामने पहली बार बिकिनी आई, यह महज एक स्विमवियर नहीं था, बल्कि महिलाओं की आजादी, आत्मविश्वास और सामाजिक परिवर्तन का प्रतीक बन गया. वस्तुतः यह दिवस 1946 के लुइस रेर्ड द्वारा आधुनिक बिकनी की पहली वर्षगांठ का स्मरण करता है. बिकिनी का नाम बिकिनी एटोल के नाम पर रखा गया था, जहां पर संयुक्त राज्य अमेरिका ने कई परमाणु परीक्षण किए थे, क्योंकि लुइस रेर्ड लोगों को कुछ चौंकाना चाहते थे, उनका इरादा इस डिजाइन को फैशन स्टेटमेंट बनाना था. नेशनल बिकिनी दिवस (05 जुलाई) के अवसर पर आइये जानते हैं बिकिनी से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियां...
बिकिनी से पहले क्या पहनती थीं महिलाएं?
बिकिनी से पहले, 19वीं और 20वीं सदी की शुरुआत में महिलाएं स्विमिंग के लिए भारी-भरकम कपड़े पहनती थीं, जो गर्दन से लेकर घुटनों तक ढके होते थे. इन परिधानों का मकसद शरीर को पूरी तरह से ढकना था, जिससे महिलाओं की गतिशीलता और आराम पर बुरा असर पड़ता था, और उन्हें स्विमिंग में परेशानी होती थी. यह भी पढ़ें :Swami Vivekananda Death Anniversary: स्वामी विवेकानंद की पुण्यतिथि पर अपने मित्र-परिजनों को भेजें ये प्रेरक कोट्स!
1946 का वो ऐतिहासिक दिन
फ्रांस के फैशन डिज़ाइनर लुई रेआर्ड ने 5 जुलाई, 1946 को पहली बार बिकिनी को सार्वजनिक रूप से पेश किया. उनके द्वारा तैयार किया गया यह स्विमवियर चार हिस्सों में बना था. इसका आकार इतना छोटा कि यह अखबार के पहले पेज की लीड बन सकती थी. इस परिधान को पेरिस के एक स्विमिंग पूल के किनारे मिशलिन बर्नाडिनी नामक स्ट्रिप मॉडल ने पहना था, क्योंकि अन्य किसी भी प्रोफेशनल मॉडल ने इसे पहनने से इनकार कर दिया था. इसका नाम 'बिकिनी' इसलिए रखा गया क्योंकि उसी समय अमेरिका ने प्रशांत महासागर के Bikini Atoll में परमाणु परीक्षण किया गया था. रेआर्ड के अनुसार बिकिनी भी किसी परमाणु विस्फोट से कम धमाकेदार नहीं रहने वाला था.
आधुनिक दौर में बिकिनी: स्वीकृति और महिला सशक्तिकरण
* आज बिकिनी सिर्फ बीच-वियर तक नहीं, बल्कि शारीरिक भाषा में आज यह बॉडी पॉजिटिविटी और आत्म-अभिव्यक्ति का प्रतीक बन चुका है.
* आज लगभग हर उम्र, रंग और साइज वाली महिलाएं बिकिनी पहनकर सहजता और गौरवान्वित महसूस करती हैं.
* आज बिकिनी कई डिज़ाइनों में बाजार में उपलब्ध है. उदाहरण के लिए मोनोकिनी, हाई-वेस्ट, स्ट्रैपी, थोंग, और इको-फ्रेंडली वैरायटी इत्यादि. सिनेमा, सोशल मीडिया और फैशन इन्फ्लुएंसर्स ने इसे एक वैश्विक ट्रेंड बना दिया है.
बिकिनी का इतिहास सिर्फ फैशन के विकास की कहानी नहीं, बल्कि सांस्कृतिक, सामाजिक और लैंगिक बदलावों का प्रतीक भी है, यह दर्शाता है कि कैसे एक छोटा सा परिधान एक बड़ा उदाहरण सेट कर सकता है, और महिलाओं की आज़ादी, आत्मसम्मान और व्यक्तिगत पसंद के अधिकार को दर्शा सकता है.