Lathmar Holi 2023: आज बरसेगी बरसाना में लट्ठमार होली! जानें इसका इतिहास, महत्व और बरसाना के बारे में विस्तार से!

होली की सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है, और इसकी विधिवत शुरुआत आज बरसाने से हो जायेगी. यहां की लट्ठमार होली दुनिया भर में मशहूर है, इसकी चर्चा मात्र से मन में एक अलग उमंग और उत्साह दौड़ने लगता है. हर कोई इसे साक्षात देखना और लुत्फ उठाना चाहता है. यहां तक कि इसका आनंद उठाने विदेशी पर्यटक भी भारी तादाद में बरसाने पहुंचते हैं. आइये जानें आखिर क्या है बरसाने की होली का तिलिस्म, इसका इतिहास और अन्य बातें.

बहुत पुराना है लट्ठमार होली के रस्मो-रिवाज!

बरसाने की लट्ठमार होली की कहानी काफी पुरानी है. भागवत पुराण में इसका विस्तृत उल्लेख है. द्वापर युग में नंदगांव से कन्हैया अपने ग्वाल-बालों के साथ राधा-रानी के गांव बरसाना जाते थे, और राधा तथा और उनकी सखियों के संग खूब होली खेलते थे. कृष्ण एवं उनके साथियों की होली के हुड़दंग और मस्ती भरी छेड़छाड़ को रोकने और उन्हें सबक सिखाने के इरादे से राधा-रानी एवं उनकी सखियां उन पर लट्ठ बरसाती, तो कन्हैया और उनके ग्वाल-बाल लट्ठ की मार से बचने के लिए ढाल से उसका सामना करते थे. होली की यह अनूठी परंपरा आज तक बरसाने में निर्विरोध निभाई जा रही है. आज भी बरसाने की लट्ठमार होली में भाग लेने वाली महिलाएं पुरुषों पर लाठी बरसाती हैं और पुरुष अपना बचाव करते हैं. इस मस्ती भरे उत्सव में आपसी प्रेम, विश्वास और सम्मान कोई भी महसूस कर सकता है. यह भी पढ़ें : Chandra Shekhar Azad Punyatithi 2023 Quotes: चंद्रशेखर आजाद की पुण्यतिथि पर उनके इन क्रांतिकारी विचारों को शेयर कर अर्पित करें श्रद्धांजलि

बरसाने में लट्ठमार होली सेलिब्रेशन

पौराणिक कथाओं में बरसाने गांव राधा-रानी की जन्मस्थली बताई जाती है. बरसाने की लट्ठमार होली के अनूठे उत्सव का लुत्फ उठाने दुनिया भर से लोग यहां आते हैं. इस अनूठे उत्सव में भाग लेने से पहले ज्यादातर युवा वर्ग लट्ठमार-होली की प्रैक्टिस करते हैं. लट्ठमार होली का पर्व मुख्य होली से कुछ दिन पूर्व ही शुरू होता है. बरसाने की होली अपने समृद्ध इतिहास एवं अनूठी परंपराओं का प्रतीक है और यहां के सांस्कृतिक महत्व को दर्शाती है. बरसाने की होली केवल मौज-मस्ती ही नहीं बल्कि हमारे जीवन में एकता और भाईचारे के महत्व का प्रतीक स्वरूप भी है. इस अवसर पर राज्य सरकार की तरफ से मथुरा समेत बरसाने की भी सुरक्षा व्यवस्था चुस्त और चौकस रखी जाती है.

कहां है बरसाना?

पौराणिक कथाओं के अनुसार बरसाना राधा के पिता वृषभानु का निवास स्थान था. यहां से कुछ दूर रावल गांव में राधा-रानी का जन्म हुआ था. बरसाना दिल्ली से करीब 114 किमी दूर मथुरा में स्थित है. बरसाना में राधा-रानी का विशाल मंदिर है, जिसे लाड़ली महल के नाम से भी जाना जाता है. इस मंदिर का निर्माण आज से लगभग 400 वर्ष पूर्व ओरछा नरेश ने कराया था. कहा जाता है कि इस मंदिर में स्थापित राधा रानी की प्रतिमा को मंदिर के पुजारी ने बरसाना स्थित ब्रह्मेश्वर गिरि नामक पर्वत से संवत् 1626 की आषाढ़ शुक्ल द्वितीया के दिन निकाल कर लाया था. कहा जाता है कि यहां पर दो वृक्ष के रूप में आज भी राधा-कृष्ण मौजूद हैं. ये दोनों वृक्ष एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, एक का रंग श्‍वेत है तो दूसरा श्याम रंग का है. श्रद्धालु प्रतिदिन इस वृक्ष की पूजा करते हैं.