ग्लोबलाइजेशन या किन्हीं भी कारणों से होली की धूम आज भले भारत से दुनिया भर में फैल गई हो, लेकिन होली की मूल आत्मा तो श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा में ही बसती है. विशेषकर बरसाना और नंदगांव में, जहां रंगों की फुहार के बीच लट्ठमार होली खेली जाती है, जिसे देखने भारी संख्या में श्रद्धालु मथुरा आते हैं. परंपराओं के अनुसार यहां फाल्गुन शुक्ल पक्ष की नवमी से रंगपंचमी तक होली खेलती जाती है. होली का पर्व श्रीकृष्ण और राधा की प्रेम-कहानी का प्रतीक है. पौराणिक कथाओं के अनुसार श्रीकृष्ण नंदगांव से और राधा बरसाना की थीं. परंपरानुसार कृष्ण अपने मित्रों के साथ बरसाना जाते थे और रंगों की होली खेलते हुए राधा एवं उनकी सखियों को छेड़ते थे. अगले दिन राधा सखियों के साथ नंदगांव जाकर श्रीकृष्ण संग लट्ठमार होली खेलती हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि श्रीकृष्ण से होली खेलने राधा नंदगांव क्यां आती हैं. आइये जानते हैं...
मथुरा में होली की मुख्य तिथियां
* बरसाना के राधा-रानी मंदिर में लट्ठमार होली तारीखः 18 मार्च 2024 (सोमवार) को
* नंदगांव में लट्ठमार होली की तारीखः 19 मार्च 2024 (मंगलवार)
* होलिका दहन की तिथिः 24 मार्च 2024 (रविवार)
* रंगों की मुख्य होली की तिथिः 25 मार्च 2024 (सोमवार)
बरसाने की होली की कहानी
मान्यताओं के अनुसार नंदगांव के रहनेवाले श्रीकृष्ण बेहद शरारती और नटखट थे. वे अपने ग्वाल-बालों के साथ अकसर राधारानी के गांव बरसाने जाकर राधारानी और उनकी सखियों को परेशान करते थे. द्वापर युग में फाल्गुन शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण अपने ग्वाल-बालों के साथ होली खेलने बरसाने गये, और रंगों की फुहार के साथ राधारानी और उऩकी सखियों को परेशान करने लगे, तब राधा और उनकी सखियों ने खीझ कर उन पर लट्ठ चलाने लगीं. श्रीकृष्ण और ग्वालबाल ढाल से खुद की रक्षा करते हुए रंगों की होली खेलते रहे. होली खेलने के बाद कृष्ण और उनके मित्र बिना राधा और उनकी सखियों को बिना फगुआ (होली पर दिया जानेवाला उपहार) दिये नंदगांव लौट गये. यह भी पढ़ें : Astro Money Tips: शुक्रवार को लक्ष्मी जी की पूजा के साथ करें कुछ खास उपाय! लक्ष्मी की कृपा से धन की होगी वर्षा!
राधा क्यों जाती हैं श्रीकृष्ण के नंदगांव होली खेलनेे?
राधा और उनकी सखियों ने जब देखा कि कृष्ण बिना फगुआ दिये नंदगांव लौट गये, तब उन्होंने एक योजना बनाकर सभी को इकट्ठा किया और अगले दिन यानी फाल्गुन शुक्ल पक्ष की दशमी को अपना फगुवा लेने के बहाने नंदगांव पहुंच गईं. राधा और उनकी सखियों को देख श्रीकृष्ण और ग्वाल-बालों के बीच एक बार फिर लट्ठमार होली शुरू हो गईं. बताया जाता है कि होली खेलने के बाद राधा और उनकी सखियां अपना फगुआ लेकर ही बरसाने लौटी. मान्यता है कि इसके बाद से ही फाल्गुन शुक्ल पक्ष की नवमी को बरसाने और दशमी को नंदगांव में लट्टमार होली की परंपरा जारी है.