स्वर्गीय लता मंगेशकर को आज भले ही संगीत का ब्रांड कहा जाता हो, मगर 1947 की उस घड़ी को कैसे भुलाया जा सकता है, जब संगीतकार गुलाम हैदर लताजी से एक गाना रिकॉर्ड करवाने सुबोध मुखर्जी के पास ले गये थे. लता जी की आवाज सुनने के बाद उन्हें खारिज करते हुए कहा था, कि लता की आवाज हमारी हीरोइन के योग्य नहीं है. तब गुलाम हैदर ने सुबोध मुखर्जी को चुनौती देते हुए कहा था, बहुत जल्दी यह बच्ची नूरजहां और शमशाद बेगम को पीछे छोड़ आगे निकल जायेगी. आज लता जी के बारे में कुछ भी कहने के लिए शब्द अपर्याप्त हैं. संगीत का पर्याय बन चुकी लता मंगेशकर की 93 वीं वर्षगांठ पर कुछ ऐसे ही अनछुए पहलू प्रस्तुत है.
संघर्ष दर संघर्ष!
लता मंगेशकर का जन्म 28 सितंबर 1929 को शास्त्रीय गायक और थियेटर आर्टिस्ट पं. दीनानाथ मंगेशकर के घर हुआ था, उनकी मां का नाम शेवंती था. तब उनका नाम हेमा था. लता जी को हेमा नाम पसंद नहीं था. उन्हीं दिनों दीनानाथ जी का एक प्ले ‘भव बंधन’ सुपर हिट हुआ. इसके एक किरदार लतिका से प्रभावित होकर हेमा का नाम लता कर दिया. लता जी की संगीत के प्रति रूझान देखते हुए दीनानाथ ने अमन अली खान औऱ अमानत खान से संगीत की शिक्षा दिलाई. उन दिनों नूरजहां औऱ शमशाद बेगम का वर्चस्व था. लता की आवाज काफी बारीक थी. दुर्भाग्यवश 24 अप्रैल 1942 को दीनानाथ की मृत्यु के बाद पूरे घर-परिवार की जिम्मेदारी लता के कमजोर कंधों पर पड़ी. परिवार की परवरिश के लिए उन्होंने फिल्मों में अभिनय किया, लेकिन सफलता नहीं मिली. मराठी फिल्म किटी हसाल (1942) में ‘नाचू आ गड़े, खेलो..’ पहली बार पार्श्व गायन किया, लेकिन यह गाना सिनेमा हॉल तक नहीं पहुंचा.
किसने दिया था लता मंगेशकर को जहर!
साल 1962 में एक बार लता मंगेशकर काफी बीमार पड़ीं. खबरों के अनुसार उनका मेडिकल चेकअप कराया तो पता चला कि उन्हें किसी ने स्लो प्वाइजन दिया था. जहर लताजी के जिस्म में फैल चुका था. चार दिन तक वे जीवन-मृत्यु के बीच जूझती रहीं. डॉक्टर ने लता जी को बचा तो लिया. लेकिन तीन माह तक वे बिस्तर पर पड़ी रहीं. बाद में खबर मिली की उनका कुक बिना अपनी पारिश्रमिक लिये घर से गायब हो गया था. एक इंटरव्यू में लता जी ने माना था कि उन्हें जहर देने वाले को वह जानती हैं, लेकिन ठोस प्रमाण नहीं होने से उन्होंने एक्शन नहीं लिया
देश ही नहीं विदेशों में भी थी साख!
लता मंगेशकर की लोकप्रियता सात समंदर पार भी कम नहीं है. लता जी क्रिकेट की बड़ी फैन हैं. क्रिकेट के प्रति उनकी दीवानगी को देखते हुए लंदन के सेंट जॉन्स वुड स्थित लॉर्ड स्टेडियम में लताजी के लिए एक विशेष गैलरी आरक्षित करवाई गई है. जब तक वे जीवित थीं, अकसर क्रिकेट मैच देखने लॉर्ड पहुंच जाती थीं. इसी तरह साल 1974 में रॉयल अल्बर्ट हॉल में परफॉर्मेंस देने वाली लताजी पहली भारतीय थीं. उनके नाम से ही शो के सारे टिकट बिक जाते थे.
यूं बनीं सफलता का पर्याय!
अपनी पतली आवाज और स्थापित सिंर्गस की गुटबंदी के कारण लताजी को अपनी पहचान बनाने में वक्त लगा. लेकिन जब सफलता मिली तो दुबारा उन्हें पीछे मुड़कर देखने की जरूरत नहीं पड़ी. सफलता जब सर चढ़कर बोलती है, तो उसमें लोहे को स्पर्श कर सोना बनाने की काबिलियत आ जाती है. साल 1999 में उनके नाम से परफ्यूम ‘लता इयु दे परफ्यूम’ (Lata Eau de Parfum) लांच हुआ. इसी वर्ष लता जी को संसद सदस्या के रूप में भी मनोनीत किया गया. वे 2005 तक इस पद पर थीं, लेकिन इन छह वर्षों में उन्होंने कोई भत्ता नहीं लिया. यहां तक कि छह साल तक मिले चेक भी उन्होंने नहीं भुनाए, जो अंततः सरकारी खाते में वापस आ गये.
पहला प्यार!
सर्वविदित है कि लता जी ताउम्र अविवाहित रहीं. लेकिन प्रसिद्ध क्रिकेटर राजसिंह डूंगरपुर के साथ उनके इमोशनल रिश्ते की बात किसी से छिपी नहीं थी. कहते हैं कि लता मंगेशकर एवं राजसिंह डूंगरपुर की पहली मुलाकात लता जी के भाई के साथ उनके निवास स्थान वालकेश्वर में हुई थी. दोनों ही अलग पृष्ठभूमि से थे. लेकिन चूंकि वह ऐसा समय था, जब परिवार सर्वोपरि होता था. वरना कहा जाता है कि राजसिंह डूंगरपुर ने अपने घर-परिवार में जाहिर कर दिया था कि अब वह किसी आम महिला को अपनी पत्नी का दर्जा नहीं देंगे. इसका परिणाम यह हुआ कि दोनों आजीवन कुंवारे ही रहे.