अश्विनी मास की पूर्णिमा के दिन कोजागिरी पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है. इसे विभिन्न नामों जैसे शरद पूर्णिमा, अश्विन पूर्णिमा अथवा कौमूदी पूर्णिमा आदि के नाम से भी जाना जाता है. कोजागिरी पूर्णिमा के दिन माँ लक्ष्मी की पूजा का विधान है. कोजागिरी पूजा महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा एवं असम समेत देश के लगभग सभी राज्यों में पूरी आस्था एवं श्रद्धा के साथ मनाई जाती है. पश्चिम बंगाल एवं उड़ीसा में माँ लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए इस दिन मध्य रात्रि में पूजा की जाती है. आइये जानें क्यों करते हैं कोजागिरी पूजा क्या है इसकी मान्यताएं पूजाविधि एवं महात्म्य.
कोजागिरी पूजा का महत्व
सनातन धर्म में अश्विन मास की पूर्णिमा का विशेष महत्व है. पुराणों के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन समुद्र-मंथन से मां लक्ष्मी प्रकट हुई थीं, इसलिए यह दिन मां लक्ष्मी के जन्मोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है. मान्यता है कि इस दिन मध्यरात्रि में माँ लक्ष्मी पृथ्वी पर अवतरित होती हैं, और मानवीय क्रिया-कलापों को देखती हैं. बंगाल में इसे लक्ष्मी-पूजा के रूप में मनाते हैं. महाराष्ट्र में कृषि संस्कृति के तहत इसका विशेष महत्व है. इस पूर्णिमा को मणिकेठारी (मोती बनानेवाला) भी कहते हैं. बंगाल में इस दिन लक्ष्मी जी की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. मान्यता है कि इस दिन माता लक्ष्मी की विधिवत पूजा करनेवाले जातक को कभी धन एवं ऐश्वर्य की कमी नहीं रहती. वात्स्यायन ने कोजागिरी पूर्णिमा को प्राचीन लोक उत्सव (कौमुदी जागर) और वामन पुराण में दीपदान जागर बताया है, मान्यता है कि इस दिन मध्यरात्रि में चंद्रमा की रोशनी में खीर रखने के बाद माता लक्ष्मी को भोग लगाकर उसे प्रसाद के रूप में परिवार खाता है तो उसे कभी भी धन और सेहत को लेकर कभी कोई समस्या नहीं आती. यह भी पढ़ें : Valmiki Jayanti 2022: एक लुटेरा कैसे बना आदि कवि? जानें रत्नाकर से वाल्मीकि बनने की एक प्रेरक एवं रोचक कथा?
कोजागिरी तिथि एवं पूजा मुहूर्त!
अश्विन पूर्णिमा प्रारंभः 03.41 AM (09 अक्टूबर 2022, रविवार) से
अश्विन पूर्णिमा समाप्तः 02.25 AM (10 अक्टूबर 2022, सोमवार) तक
उदया तिथि 9 अक्टूबर को होने से कोजागिरी पूर्णिमा 9 अक्टूबर 2022 को मनाया जायेगा.
कोजागिरी पूजा मुहूर्तः 11.50 PM से 12.50 AM तक (कुल 49 मिनट)
कोजागिरी पूर्णिमा की पूजा विधि!
शरद पूर्णिमा के दिन प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त कर व्रत एवं पूजा का संकल्प लें. स्वच्छ वस्त्र धारण करें, अपने ईष्टदेव का ध्यान करें. अब लक्ष्मी जी की पूजा करें. सर्वप्रथम माँ लक्ष्मी के सामने धूप-दीप प्रज्वलित करें. निम्न मंत्र का उच्चारण करें.
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्मी नम:।।
ॐ श्रीं ल्कीं महालक्ष्मी महालक्ष्मी एह्येहि सर्व सौभाग्यं देहि मे स्वाहा।।
ॐ ह्रीं श्री क्रीं क्लीं श्री लक्ष्मी मम गृहे धन पूरये, धन पूरये, चिंताएं दूरये-दूरये स्वाहा:।
अब सुगंध, सुपारी. पान, अक्षत, पुष्प, और दक्षिणा आदि अर्पित करें. रात्रि के समय गाय के दूध से खीर बनाएं और मुहूर्त के अनुरूप मध्य रात्रि में माँ लक्ष्मी को खीर की भोग लगाएं. खीर से भरा बर्तन चंद्रमा की रोशनी में रख दें. अगले दिन उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करें एवं परिजनों को वितरित करें.
कोजागिरी पूर्णिमा की रात खीर खाने का वैज्ञानिक तर्क!
शरद पूर्णिमा की रात्रि में चंद्रमा अपनी पूर्ण कला में होता है, वर्षा ऋतु के बाद आसमान भी सर्वाधिक स्वच्छ होता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस रात में चावल-दूध से बनी खीर को एक धातु (तांबा या पीतल नहीं) के पात्र में रख कर साफ कपड़े से बांधकर खुले आकाश में रखते हैं. चंद्रमा की रोशनी में रखने के बाद इसे खाने से रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है. वैज्ञानिक तर्क के अनुसार दूध में लैक्टिक अम्ल होता है जो चंद्रमा की स्वच्छ किरणों से रोगाणुनाशक शक्ति अर्जित करता है. चावल के स्टार्च के मिश्रण से ये प्रक्रिया और तेज हो जाती है. इस खीर को खाने से दमा, त्वचा रोग और श्वास रोग में विशेष लाभ मिलता है.