हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष की तृतीया को कजरी तीज मनाई जाती है. कजरी तीज को कज्जली तीज, सातुड़ी तीज अथवा बड़ी तीज के नाम से भी जाना जाता है. कजरी तीज का पर्व रक्षाबंधन के तीन दिन बाद और कृष्ण जन्माष्टमी के पांच दिन पहले मनाया जाता है. आइए, जानते हैं कजरी तीज का महत्व, कजरी तीज की परंपरा, पूजा आदि के बारे में..
कजरी तीज महत्व
कजरी तीज की जड़ें प्राचीन लोककथाओं और पौराणिक कथाओं से जुड़ी हैं. इस पर्व की एक कहानी राजा दादुराई से जुड़ी बतायी जाती है, जिन्होंने मध्य भारत में कजली जंगल पर शासन किया था. उनकी मृत्यु के पश्चात उनकी रानी नागमती ने अपने पति के साथ चिता पर बैठकर सती हो गई थीं. इस दुखद घटना से स्थानीय लोगों में ‘कजरी’ लोकगीत रचने और गाने के लिए प्रेरित किया, जिसमें अलगाव और दुख की भावनाओं से ओतप्रोत होता है.
एक अन्य कथा कजरी तीज को देवी पार्वती की भगवान शिव के प्रति भक्ति से जोड़ती है. इस कथा के अनुसार, पार्वतीजी ने भगवान शिव का प्रेम पाने के लिए 108 वर्षों तक कठोर तपस्या की. देवी पार्वती के समर्पण से प्रभावित होकर, भगवान शिव ने भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष में उनसे विवाह किया. कजरी तीज इस दिव्य मिलन पर आधारित पर्व है.
कजरी तीज 2024 तिथि और समय
भाद्रपद तृतीया प्रारंभः 05.06 PM (21 अगस्त 2024, बुधवार)
भाद्रपद तृतीया समाप्तः 01.46 PM (22 अगस्त 2024, गुरूवार)
इस तरह कजरी तीज का पर्व 21 अगस्त एवं सूर्योदय तिथि के अनुसार 22 अगस्त दोनों दिन मनाया जाएगा.
कजरी तीज मुख्य अनुष्ठान और रीति-रिवाज
उपवास और प्रार्थना: कजरी तीज पर सभी महिलाएं निर्जल व्रत रखती हैं. वे भगवान शिव और देवी पार्वती की मिट्टी की प्रतिमा बनाकर उनकी पूजा करती हैं. पूजा के दरमियान भगवान शिव को धतूरा, बेलपत्र और सफेद फूल अर्पित करते हैं. देवी पार्वती को सुहाग की सारी वस्तुएं चढ़ाई जाती हैं.
कजरी लोक गीत: कजरी तीज की मुख्य विशेषता ‘कजरी’ नामक लोक गीत है. यह गीत अलगाव और लालसा पर आधारित होती है, जिसके तहत पति अपने प्रियतम की प्रतीक्षा कर रही है. वह अपने प्रियतम का बाट जो रही है. गीत में इसे बड़े ही मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया जाता है.
झूला और कजरी की परंपरा: पूर्वी उत्तर प्रदेश एवं राजस्थान जैसे प्रदेशों में कजरी तीज के अवसर पर मेहंदी लगाती हैं, झूला झूलती हैं, और कजरी गाते हुए खुशनुमा दिन बिताती हैं.
पारंपरिक परिधान: इस अवसर पर महिलाएं लाल, हरे या पीले रंग की साड़ियां पहनती हैं, राजस्थान में कई जगहों पर महिलाएं घाघरा चोली या लहंगा चोली पहनती हैं. ये पोशाक कजरी तीज के उत्सव का प्रतीक हैं.
परंपराएं: कजरी तीज को विधिवत से मनाने के लिए पारंपरिक प्रथाओं का पालन करें, जिसमें उपवास, देवताओं की पूजा करना और भक्ति के साथ अनुष्ठान करना आदि शामिल है.
कजरी गीत: राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में कजरी गीत सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न अंग है.
कजरी तीज परंपरा और सांस्कृतिक महत्व से समृद्ध पर्व है, जिसे भक्ति और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है. इससे जुड़े रीति-रिवाजों का पालन करने से प्राचीन परंपराओं का सम्मान करने, व्यक्तिगत भक्ति व्यक्त करने और सांस्कृतिक प्रथाओं में शामिल होने का अवसर मिलता है, जो पीढ़ियों से चली आ रही हैं.