Jur Sital 2024: ‘जल उपासना’ और ‘चूल्हा महारानी’ से जुड़ा है, जुर सितल पर्व!, जिसे नववर्ष के रूप में भी मनाते हैं मिथिलावासी!
Jur Sital 2024 (IMG: File Photo)

बिहार का सर्वाधिक लोकप्रिय पर्व छठ के रूप में मनाया जाता है, लेकिन एक और पर्व ‘जुर शीतल’ है, जिसे बिहार के लोग बड़ी धूमधाम से मनाते हैं. वस्तुतः इस पर्व का महत्व इसलिए और भी ज्यादा बढ़ जाता है, क्योंकि भारत के मिथिलावासी इस दिन को नववर्ष के रूप में भी मनाते हैं, तथा इससे एक दिन पूर्व सतुआन भी मनाया जाता है. इसी दिन पड़ोसी देश नेपाल में भी नववर्ष मनाते हैं. इसे जुड़ सितल के नाम से भी जाना जाता है. इस वर्ष यह मैथिली नववर्ष 14 अप्रैल 2024 को मनाया जाएगा. आइये जानते हैं जुड़ सीतल से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण बातें...

जुड़ सितल और सतुआन का संबंध

मिथिला क्षेत्र में सत्तू और बेसन की नयी पैदावार इसी दौरान होती है. इसलिए इस पर्व के साथ सतुआ का विशेष महत्व है. वैज्ञानिक नजरिए से देखा जाए तो सतुआ से बने व्यंजन को बिना खराब हुए काफी दिन तक रखा और खाया जा सकता है, जबकि गर्मी के दिनों में अन्य व्यंजन बहुत जल्दी खराब हो जाते हैं. इससे बचने के लिए मिथिला क्षेत्र के लोग गर्मी में सत्तू और बेसन का इस्तेमाल ज्यादा करते हैं. जुड़ सितल पर्व में सतुआन के अगले दिन चूल्हा नहीं जलाया जाता है. इस दिन लोग बासी खाना खाते हैं. इस शुभ अवसर पर, मिथिलांचल के लोग ताजा भोजन पकाने के बजाय एक दिन पहले तैयार व्यंजनों, उदारणार्थ बड़ी भात (करी और चावल) का आनंद लेते हैं. इस अवसर पर एक मजेदार समारोह मसलन एक दूसरे पर कीचड़ और पानी उछालना शामिल है, का भी आयोजन किया जाता है. यह भी पढ़ें : Eid-Ul-Fitr 2024 Wishes: ईद-उल-फितर के अवसर पर देशभर में अदा की गई नमाज, अमन-शांति के लिए मांगी दुआ (Watch Video)

जुर सितल का इतिहास

जुर सितल नाम का अर्थ है 'जमा देने वाली ठंड, जो उत्सवों से जुड़ी शाब्दिक और प्रतीकात्मक ठंड दोनों का प्रतीक है. वस्तुतः जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश करते हैं, तब जुर सितल यानी मैथिली नववर्ष मनाया जाता है. इसे जल उत्सव के रूप में भी देखा जाता है. यह पर्व भारत और इससे जुड़े नेपाल के मिथिलांचल क्षेत्र में बड़े उत्साह एवं जोश के साथ मनाया जाता है. इस दिन घरों में अमूमन चूल्हे नहीं जलाए जाते हैं. चूल्हा जिसे ‘अन्नपूर्णा देवी’ अथवा ‘चूल्हा महारानी’ भी कहते हैं, की सफाई की जाती है. जुड़ सितल मैथिली कैलेंडर की शुरुआत का प्रतीक बताया जाता है, जिसे आखर बोछोर के नाम से भी जाना जाता है.

जुड़ सितल का महत्व?

जुड़ सितल का आशय है शीतलता की प्राप्ति ज्यों-ज्यों गरमी का प्रकोप बढ़ता है, लोग शीतलता की कामना करते हैं. यह पर्व प्रत्यक्ष रूप से प्रकृति और मौसम से जुड़ा है, क्योंकि इसी दिन से गरमी की प्रचंडता बढ़ती है, ऐसे में बड़- बुजुर्ग अपने से कम उम्र के लोगों के सिर पर बासी पानी डालकर ‘जुड़ैल रहू’ का आशीर्वाद देते हैं. इस दिन मिथिलांचल में संध्या के समय लोग घर के बाहर पेड़-पौधों को जल से सींचते हैं, इस विश्वास के साथ ही कि कल ये पेड़ हमें शीतलता प्रदान करेंगे. ये लोग पेड़ पौधों को अपने परिवार का हिस्सा सदृश मानते हैं.