Jur Sital/Maithili New Year 2024 Messages in Hindi: मैथिली न्यू ईयर (Maithili New Year) को बिहार (Bihar) और नेपाल (Nepal) के मिथिला क्षेत्र में जुड़ शीतल (Jur Sital) के नाम से बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. जुड़ शीतल का अर्थ है शीतलता की प्राप्ति, इसलिए शीतलता के लोकपर्व जुड़ शीतल को मैथिली नव वर्ष के तौर पर हर्षोल्लास के साथ सेलिब्रेट किया जाता है. आमतौर पर ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार मैथिली न्यू ईयर को 15 अप्रैल के दिन मनाया जाता है, जबकि इस साल 14 अप्रैल 2024 को जुड़ शीतल का पर्व मनाया जा रहा है. इस दिन घर के बड़े बुजुर्ग अपने से छोटे लोगों के सिर पर बासी पानी डालकर 'जुड़ैल रहु' का आशीर्वाद देते हैं. उनका मानना है कि इससे पूरी गर्मी सिर में ठंडक बरकरार रहती है. इसके साथ ही इस दिन शाम के समय परिवार के सभी लोग पेड़-पौधों को जल से सिंचते हैं.
जिस प्रकार मिथिला के लोग छठ में सूर्य और चौरचन में चंद्रमा की पूजा करते हैं, उसी तरह से जुड़ शीतल पर मैथिली समाज के लोग जल की पूजा करके शीतलता की कामना करते हैं. इस पर्व के पहले दिन सतुआन होता है, जबकि दूसरे दिन धुरखेल मनाया जाता है. मैथिली नव वर्ष ‘जुड़ शीतल’ के इस खास पर्व की आप इन हिंदी मैसेजेस, वॉट्सऐप विशेज, कोट्स, फेसबुक ग्रीटिंग्स को भेजकर अपनों को प्यार भरी शुभकामनाएं दे सकते हैं.
1- गुलों की शाख से खुशबू चुरा के लाया है,
गगन के पांव से घुंघरू चुरा के लाया है,
थिरकते कदमों से आया है आज नया साल
जो की तुम्हारे वास्ते खुशियां चुरा के लाया है.
मैथिली नव वर्ष की शुभकामनाएं
2- हर साल आता है,
हर साल जाता है;
इस नए साल में आपको वो सब मिले,
जो आपका दिल चाहता है.
मैथिली नव वर्ष की शुभकामनाएं
3- आपकी आंखों में सजे हैं जो भी सपने,
और दिल में छुपी हैं जो भी अभिलाषाएं,
यह नया वर्ष उन्हें सच कर जाए,
आपके लिए है हमारी यही शुभकामनाएं.
मैथिली नव वर्ष की शुभकामनाएं
4- फिर न सिमटेगी मोहब्बत जो बिखर जाएगी,
जिंदगी जुल्फें नहीं जो फिर से संवर जाएगी,
नए साल में थाम लो हाथ उसका जो प्यार करे तुमसे,
ये जिंदगी ठहरेगी नहीं जो गुजर जाएगी.
मैथिली नव वर्ष की शुभकामनाएं
5- जब तक तुमको ना देखूं,
मेरे दिल को करार ना आएगा,
तुम बिन तो जिंदगी में हमारी,
नए साल का ख्याल भी नही आएगा.
मैथिली नव वर्ष की शुभकामनाएं
गौरतलब है कि जुड़ शीतल के दिन मैथिली समुदाय के लोग इस दिन कुएं और तालाब जैसे जल संग्रह वाली जगहों की सफाई करते हैं. इस पर्व को मनाने के पीछे फसल तंत्र और मौसम भी कारक है. दरअसल, मिथिला में सत्तू और बेसन की पैदावार इसी समय होती है. वैज्ञानिक नजरिए से देखें तो सत्तू और बेसन से बने व्यंजन अधिक समय तक खराब नहीं होते हैं, इसलिए सत्तू और बेसन का इस्तेमाल अधिक किया जाता है. इस दिन मिथिला समाज के लोग चूल्हा नहीं जलाते हैं और सतुआन के अगले दिन सत्तू व बेसन से बनाए गए बासी भोजन को ही खाते हैं.