Summer Health Tips: आयुर्वेद के अनुसार जानें गर्मियों में क्या खाए और कैसी हो आपकी दिनचर्या
प्रतिकात्मक तस्वीर (Photo Credits: PTI)

ऋतुओं में परिवर्तन सेहत के लिए अच्छा नहीं होता. विशेषकर तब जब शीत ऋतु के बाद ग्रीष्म ऋतु का आगमन होता है, जब सर्द हवाओं में गरम हवाएं घुलती हैं, धीरे-धीरे तापमान बढ़ते हुए लू का रूप लेने लगता है. इसके साथ ही शुरु होता है छोटी-मोटी बीमारियों का सिलसिला. बुखार, खांसी, त्वचा और आंखों में जलन, यूरिन में लालपन के साथ जलन, हाथ-पैर के तलुओं में जलन, उल्टी, लूज मोशन, सिर दर्द, लू लगना. खट्टी डकारें जैसी तमाम बीमारियां अपना प्रकोप फैलाती हैं. इस तरह की बीमारियों का जितना सटीक इलाज आयुर्वेद में होता है, उतना किसी और चिकित्सा पद्धति में नहीं. यहां सुप्रसिद्ध आयुर्वेदाचार्य डॉ सोमशेखर बता रहे हैं कि ग्रीष्म ऋतु में अपना शेड्यूल कैसा बनाएं कि आपका सेहत और सौंदर्य बना रहे.

आयुर्वेद एक भारतीय चिकित्सा विज्ञान है जिसकी उत्पत्ति करीब 5 हजार साल पुरानी है और जिसे दुनिया का सबसे प्राचीन चिकित्सा विज्ञान माना जाता है. आयुर्वेद ने हमेशा रोग के इलाज से ज्यादा उसे टालने के लिए सही आहार तथा जीवनशैली का पालन करने पर ध्यान दिया है. ऋतु- परिवर्तन से हमारे आसपास के वातावरण में भी कई बदलाव देखने को मिलते हैं, जो हमारे सेहत के लिए नुकसानदेह हो सकते हैं. ऐसे में आवश्यक है ऋतु परिवर्तन के साथ ही हमारी दिनचर्या में भी बदलाव हो. आयुर्वेद चिकित्सा में भी ऋतुचर्या का अत्यधिक महत्व है. यहां हम ग्रीष्म ऋतु की बात करेंगे, कि इसके लिए हमें अपनी जीवन शैली में क्या बदलाव लाना चाहिए.

ग्रीष्म ऋतु का आगमन:

यूं तो मार्च मास की समाप्ति के साथ मौसम में गरमी घुलने लगती है, लेकिन आयुर्वेद में अप्रैल से जुलाई तक का समय ग्रीष्म ऋतु का माना जाता है, जिसे अंग्रेजी में समर कहते हैं. डॉ. सोम शेखर के अनुसार इस ऋतु के साथ ही सूर्य की तीक्ष्णता बढ़ती जाती है. सेहत को नुकसान पहुंचाने वाली हवाएं चलती हैं, जिससे इंसान की शक्ति कम हो जाती है, कफ पर नियंत्रण मगर वात दोष का प्रकोप बढ़ता है एवं इंसान की अग्नि मध्यम अवस्था में रहती है.

कैसी हो जीवन शैली

आयुर्वेद में ग्रीष्म ऋतु का सर्वश्रेष्ठ पल ब्रह्म मुहूर्त होता है. ब्रह्म मुहूर्त यानी सूर्योदय से पूर्व उठकर नित्यक्रिया में संलिप्त हो जाना चाहिए. कहने का आशय यह कि सूर्योदय से पूर्व उठने से आप सूर्य की लय के साथ चलते हैं. समय पर शौच होने से तन-मन शुद्ध होता है इस समय मन को सहज और शालीन रखने से तन को तृप्ति मिलती है. शुद्ध, शीतल, शांत एवं मनोरम वातावरण में आधे घंटे का ध्यान, योगा एवं व्यायाम इत्यादि करने से पूरे दिन ऊर्जा और एकाग्रता बनी रहती है, और मानसिक कृत्य में सकारात्मकता रहती है. लेकिन कठोर व्यायाम से बचना चाहिए. यह इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाता है,

आहारः ग्रीष्म ऋतु में मीठे, हल्के एवं तरल पदार्थ सेहत के लिए लाभकारी होता है. ठंडे पानी का सेवन करना चाहिए. ठंडाई और पानक पंचकर जो पांच प्रकार के मधुर पदार्थों से बना है, इनका सेवन करना चाहिए. सुपाच्य आहार लेना चाहिए. उदाहरण स्वरूप चावल, जौ आदि जो मधुर, स्निग्ध (चिपचिपे), शीत (ठंडे) और द्रव (तरल) गुणों वाले हों. ग्रीष्म ऋतु में अत्यधिक पानी, तरल पदार्थ जैसे छाछ, गन्ने का रस, बेल का शर्बत, नींबू का शर्बत, जलजीरा, आम के रस इत्यादि का ज्यादा सेवन करना चाहिए. लेकिन सिगरेट एवं शराब से ज्ञानेंद्रियां प्रभावित होती हैं, शरीर में कमज़ोरी और जलन उत्पन्न होती है, गरीष्ठ खाद्य पदार्थ, मांसाहार एवं तेल मसालों से युक्त भोजन का परित्याग करना चाहिए.

दिनचर्या: शरीर पर चंदन का लेप लगाकर स्नान करने से शरीर शीतल महसूस होता है. ठंडी जगह पर वास करना चाहिए, एवं हलके सूती वस्त्र धारण करना उपयुक्त रहता है. दिन में दो घंटे सोने से शरीर को आराम मिलता है. रात्रि के समय कुछ पल चंद्रमा के ठंडे प्रकाश, एवं शीतल वायु के संपर्क में रहने से नींद अच्छी आती है.