हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार गणेश जी का जन्म चतुर्थी के दिन हुआ था. हिंदू धर्म में इस दिन का विशेष महत्व है. इस दिन गणेश भक्त सूर्योदय से चन्द्रोदय तक उपवास रखते हैं. शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी और कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते है, कुछ जगहों पर इसे वैशाख चतुर्थी अथवा विकट चतुर्थी भी कहते हैं. तमिलनाडु में संकष्टी चतुर्थी को गणेश संकटहरा या संकटहरा चतुर्थी के नाम से जाना जाता है. मान्यता है कि संकष्टी चतुर्थी का व्रत एवं पूजा करने से सभी विघ्नों से मुक्ति मिलती है, जीवन सुखमय होता है, तथा धन-समृद्धि की प्राप्ति होती है. आइए जानते हैं संकष्टी चतुर्थी की तिथि, पूजा-मुहूर्त एवं संकष्टी के नियमों के बारे में. यह भी पढ़ें : Pohela Boishakh 2025 Messages: बंगाली नव वर्ष ‘पोइला बैसाख’ की इन हिंदी Quotes, WhatsApp Wishes और Facebook Greetings के जरिए दें शुभकामनाएं
वैशाख कृष्ण पक्ष संकष्टी चतुर्थी 2025 मूल तिथि एवं मुहूर्त
वैशाख कृष्ण पक्ष चतुर्थी प्रारंभः 01.15 PM (16 अप्रैल 2025, बुधवार) से
वैशाख कृष्ण पक्ष चतुर्थी समाप्त 03.22 PM (17 अप्रैल 2025, गुरूवार) तक
चंद्रमा उदय के अनुसार वैशाख संकष्टी चतुर्थी का व्रत 16 अप्रैल 2025 गुरुवार के दिन रखा जाएगा.
संकष्टी पूजा मुहूर्तः
ब्रह्म मुहूर्तः 04.25 AM से 05.10 AM के बीच स्नान कर सकते हैं.
विजय मुहूर्तः 02.30 PM से 03.21 PM तक पूजा कर सकते हैं
अमृत मुहूर्तः 06.20 PM से 08.06 PM के तक पूजा कर सकते हैं
चंद्रोदयः 10.00 PM (08.31 बजे के बाद देर रात तक)
जाने संकष्टी चतुर्थी व्रत के जरूरी नियम
संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखने वाले जातकों का यह जानना महत्वपूर्ण है कि संकष्टी चतुर्थी के उपवास का दिन दो विभिन्न शहरों के लिए अलग-अलग भी हो सकता है, भले ये दोनों शहर एक ही देश में क्यों ना हों. संकष्टी चतुर्थी उपवास की तिथि चन्द्रोदय पर निर्धारित होती है, यानी चतुर्थी के दौरान जब चन्द्र उदय होता है, उसी दिन संकष्टी चतुर्थी व्रत रखा जाना चाहिए, इसीलिए कभी-कभी संकष्टी चतुर्थी व्रत, एक दिन पूर्व, यानी तृतीया तिथि को भी पड़ सकता है, क्योंकि चन्द्रोदय का समय सभी शहरों के लिए अलग-अलग होता है.
वैशाख संकष्टी चतुर्थी का महत्व
संकष्टी चतुर्थी एक ऐसा आध्यात्मिक दिवस है, जिसमें तमाम व्रत-अनुष्ठान किए जाते हैं, जो सरल होते हुए भी बहुत अर्थपूर्ण होते हैं. संकष्टी चतुर्थी आत्म-अनुशासन, पवित्रता और भक्ति का प्रतीक है, यह व्रत सूर्योदय से चंद्रोदय तक रखा जाता है. यह पूजा और अनुष्ठान करने वाले जातक की हर बाधाओं को भगवान गणेश हर लेते हैं, जीवन में शांति और समृद्धि आती है. प्रत्येक अनुष्ठान का भिन्न-भिन्न आध्यात्मिक महत्व होता है.
वैशाख संकष्टी चतुर्थी पूजा-विधि
सूर्योदय से पूर्व स्नान-ध्यान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें. सूर्य को जल अर्पित करें. भगवान गणेश का ध्यान कर व्रत-पूजा का संकल्प लें. मंदिर के पास एक चौकी रखकर इस पर लाल रंग वस्त्र बिछाकर गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करें. धूप-दीप प्रज्वलित कर भगवान गणेश का आह्वान मंत्र का जाप करें मूर्ति पर पुष्प चढ़ाकर तिलक लगाएं.
‘ॐ भूर्भुवः स्वः सिद्धिबुद्धिसहिताय गणपतये नमः’
गणेश जी को दूर्वा, रोल, पान, सुपारी, इत्र एवं जनेऊ अर्पित करें. भोग में मोदक अथवा लड्डू एवं फल अर्पित करते हुए गणेश चालीसा का पाठ करें. इसके बाद गणेश जी की आरती उतारें. रात में चंद्रोदय होने पर चंद्रमा को अर्घ्य देकर आरती उतारें. इसके बाद व्रत का पारण कर सकते हैं.













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