Eid al-Adha 2023 Date in India: ईद उल अजहा (Eid al-Adha) को 'बलिदान का पर्व' भी कहा जाता है, जिसे दुनिया भर के मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा मनाया जाता है. इस्लाम में मनाए जाने वाले दो प्रमुख उत्सवों में यह दूसरा महत्वपूर्ण पर्व है, जो सऊदी अरब में मक्का के पास मीना में हज (तीर्थयात्रा) संस्कारों की समाप्ति का प्रतीक है. ईद उल अजहा (Eid al-Adha) को बकरीद (Bakrid), बकरा ईद (Bakra Eid) और ईद उल जुहा (Eid al-Juha) के नाम से भी जाना जाता है. मुस्लिम समुदाय के लोग इस पर्व को तीन से चार दिनों तक मनाते हं. रमजान ईद (Ramzan Eid) यानी मीठी ईद (Meethi Eid) मनाए जाने के करीब 2 महीने बाद कुर्बानी का पर्व बकरीद आता है. इस दिन सुबह के वक्त नमाज अदा करने के बाद लोग अल्लाह के नाम पर बकरे की कुर्बानी देने की परंपरा निभाते हैं.
इस्लामिक चंद्र कैलेंडर के बारहवें महीने जु-अल-हज्जा (Dhu al-Hijjah) के दसवें दिन बकरीद का त्योहार मनाया जाता है और करीब 4 दिनों तक इसका जश्न मनाया जाता है, जबकि ग्रेगोरियन कैलेंडर में हर साल बकरीद की तारीखें बदलती रहती हैं. साल 2023 में ईद उल अजहा 29 जून की शाम से शुरु होकर 30 जून की शाम तक समाप्त होने की उम्मीद है. हालांकि चांद दिखने के आधार पर इस्लामी छुट्टियों की सटीक तिथियों थोड़ी भिन्न हो सकती हैं. आइए जानते हैं कुर्बानी के पर्व बकरीद का महत्व.
ईद उल अजहा 2023 की तिथि
ईद उल अजहा 2023 को 29 जून और 30 जून को चंद्रमा के देखे जाने के आधार पर चिह्नित किया जाएगा.
ईद उल अजहा का महत्व
कुर्बानी के पर्व बकरीद से जुड़ी प्रचलित मान्यताओं के अनुसार, इस्लाम धर्म में कुर्बानी की परंपरा पैगंबर हजरत इब्राहिम से हुई. ऐसी मान्यता है कि अल्लाह से काफी मिन्नतों के बाद उन्हें एक संतान की प्राप्ति हुई, इसलिए वो अपने बेटे इस्माइल से बहुत प्यार करते थे. एक रात अल्लाह ने हजरत इब्राहिम के सपने में आकर उनसे अपनी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी मांगी, जिसके बाद अल्लाह के आदेश का पालन करते हुए वे अपने बेटे की कुर्बानी देने पर तैयार हो गए. उन्होंने अपने बेटे की कुर्बानी देते समय अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली. उनकी निष्ठा को देख अल्लाह काफी खुश हुए और उन्होंने कुर्बानी के समय उनके बेटे के स्थान पर बकरे को कुर्बानी में तब्दील कर दिया, तब से बकरीद पर बकरे की कुर्बानी देने की परंपरा शुरु हुई है.
गौरतलब है कि बकरीद के दिन दुनिया भर के मुसलमान हजरत इब्राहिम द्वारा दी गई कुर्बानी को याद करते हुए बकरे की कुर्बानी देते हैं और गोश्त को तीन हिस्से में विभाजित करते हैं. गोश्त का पहला हिस्सा परिवार वालों, दूसरा हिस्सा दोस्तों-रिश्तेदारों और तीसरा हिस्सा गरीब व जरूरतमंदों को दिया जाता है. इस पर्व को मनाने के लिए लजीज मांसाहारी व्यंजन और मीठे पकवान बनाए जाते हैं.