Vijaya Ekadashi 2022: फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को विजया एकादशी (Vijaya Ekadashi) कहते हैं. हिंदू धर्म शास्त्रों में अन्य एकादशियों की तरह विजया एकादशी का भी विशेष महत्व वर्णित है. गौरतलब है कि सभी एकादशी के व्रत श्रीहरि (Shri Hari) को समर्पित होते हैं. इस दिन श्रीहरि का व्रत एवं पूजा करने से जातक के सारे पाप नष्ट होते हैं और मृत्योपरांत मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस बार दो दिन एकादशी पड़ने से दुविधा की स्थिति उत्पन्न हो रही है कि किस दिन व्रत रखा जाना चाहिए. यहां हमारे ज्योतिषाचार्य बता रहे हैं कि विजया एकादशी का व्रत एवं पूजा कब और किस मुहूर्त में करना श्रेयस्कर हो सकता है.
विजया एकादशी का महात्म्य!
विजया एकादशी का निर्जल व्रत एवं पूरे विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा करने से जातक के जीवन में सुख, शांति एवं खुशहाली आती है और अंततः उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है. यदि कोई आपसे शत्रुता रखता है तो विजया एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए. इससे आपको शत्रु पर विजय प्राप्त करने की शक्ति और सामर्थ्य प्राप्त होता है. मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण के सुझाव पर पांडवों ने भी यह व्रत रखते हुए श्रीहरि की पूजा-अर्चना की थी, इसके पश्चात ही वे कौरवों की अक्षुण्य सैन्य शक्ति पर विजय प्राप्त करने में सामर्थ्य हो सके थे.
इस बार दो शुभ योगों में होगी विजया एकादशी!
इस वर्ष विजया एकादशी पर दो शुभ योग बन रहे हैं, पहला सर्वार्थ सिद्धि योग और दूसरा त्रिपुष्कर योग. सर्वार्थ सिद्धि योग 27 फरवरी 2022 को प्रातः 08.49 बजे शुरु होकर 28 फरवरी की प्रातःकाल 05.42 बजे तक रहेगा. जबकि त्रिपुष्कर योग 27 फरवरी 2022 की प्रातः 08.49 बजे शुरु होकर अगले दिन 28 फरवरी को प्रातः 05.42 बजे तक रहेगा. हिंदू धर्म शास्त्रों में उल्लेखित है कि इन दोनों पुण्य योगों में किये गये सारे कार्य सफलता पूर्वक सम्पन्न होते हैं. यह भी पढ़ें: Janaki Jayanti 2022 Messages: शुभ जानकी जयंती! प्रियजनों संग शेयर करें ये हिंदी WhatsApp Greetings, Quotes, Facebook Wishes और HD Photos
इस दिन रखें विजया एकादशी व्रत
ज्योतिषाचार्य पंडित रवींद्र पाण्डेय का मानना है कि, तमाम मूल पंचांगों के अनुसार इस बार विजया एकादशी व्रत 26 फरवरी, दिन शनिवार की प्रातः 10.39 बजे से प्रारंभ होकर अगले दिन 27 फरवरी रविवार को प्रातः 08.12 बजे तक समापन होगा. इस तरह उदया तिथि के अनुसार विजया एकादशी का यह व्रत 27 फरवरी को करना श्रेयस्कर रहेगा. इस दिन प्रातः 08.12 बजे तक एकादशी तिथि होने के बावजूद एकादशी का प्रभाव पूरे दिन रहेगा. इसलिए दुविधामुक्त होकर 27 फरवरी को ही एकादशी व्रत एवं पूजा करें. व्रत का पारण अगले दिन यानी 28 फरवरी को प्रातः 06.48 बजे से 09.06 बजे तक किया जा सकता है.
पूजा एवं व्रत की विधि
नियमानुसार हर एकादशी के व्रत की शुरुआत एक दिन पूर्व यानी दशमी से होती है, जिसका निर्वहन द्वादशी की प्रातःकाल तक करना होता है, इसीलिए एकादशी व्रत को काफी मुश्किल व्रत माना जाता है. इस व्रत को करने वाले हर जातक को 26 फरवरी की सूर्यास्त के पश्चात केवल सात्विक भोजन करना चाहिए. एकादशी के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान-ध्यान से निवृत्त होकर श्रीहरि का ध्यान कर व्रत एवं पूजन का संकल्प लेते हुए मन ही मन मनोकामना करनी चाहिए.
इसके बाद पूजा के शुभ मुहूर्त के अनुसार श्रीहरि के सामने धूप-दीप प्रज्वलित करते हुए उनका आह्वान करें. इसके बाद पंचामृत एवं गंगाजल से उन्हें स्नान कराने के बाद नववस्त्र (पीतांबर) अर्पित करते हुए उन्हें पीला चंदन, रोली, अक्षत, पान, सुपारी, तुलसी, पीला पुष्प, कुछ मुद्राएं एवं पीले रंग का मिष्ठान अर्पित करते हुए श्रीहरि की स्तुति गान करने के पश्चात विधिवत आरती उतारें. एकादशी की रात्रि जागरण करते हुए अगले दिन स्नान के पश्चात ब्राह्मण को दान-दक्षिणा देने के बाद शुभ मुहूर्त के अनुरूप पारण करना चाहिए. ऐसा करने वाले की सारी मनोकामनाएं श्रीहरि की कृपा से पूरी होती है.