Veer Savarkar Jayanti 2025: अत्याचार की पराकाष्ठा थी सेल्युलर जेल में सावरकर की काला पानी सजा! जानें कुछ अनछुए प्रसंग!
वीर सावरकर जयंती (Photo: File Image)

Veer Savarkar Jayanti 2025: विनायक दामोदर सावरकर (Vinayak Damodar Savarkar) को लेकर तमाम तरह की बातें आये दिन होती रहती है. एक पक्ष उन्हें ‘देशद्रोही’, ‘माफीवीर’ आदि की संज्ञाएं देता है, वहीं दूसरा पक्ष ‘राष्ट्र भक्त’, ‘स्वतंत्र वीर’ आदि कहने से गुरेज नहीं करता. वीर सावरकर की जयंती (28 मई 1883) के अवसर पर आज हम उनके काला पानी सजा के दौरान कुछ प्रेरक और रोचक प्रसंगों पर बात करेंगे, जो उन्होंने सेल्युलर जेल में गुजारा था. विनायक दामोदर सावरकर का जन्म 28 मई, 1883 को नासिक के पास भगूर गांव में चितपावन ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनकी एक बहन मैना और दो भाई गणेश और नारायण थे. 1903 में अपने बड़े भाई गणेश सावरकर के साथ उन्होंने मित्र मेले की स्थापना की, जिसे बाद में अभिनव भारत सोसायटी कर दिया, जिसका लक्ष्य ब्रिटिश शासन का उन्मूलन और हिंदू गौरव का पुनरुद्धार था. यह भी पढ़ें: Guru Arjan Dev Shaheedi Diwas 2025: अर्जन देव की शहादत ‘छबील दिवस’ नाम से क्यों मनाया जाता है? जानें अर्जन देव की शहादत में जहांगीर की क्रूरता गाथा!

अंडमान क्यों भेजा गया?

साल 1910 में ब्रिटिश सरकार ने दामोदर सावरकर को लंदन में गिरफ्तार किया और भारत लाकर उन पर राजद्रोह के दो मामलों में मुकदमा चलाया गया. उन्हें दो जन्मों की सजा (50 साल) जिसे 'दो बार काला पानी' कहा गया, सुनाई. इसके बाद 04 जुलाई 1911 को उन्हें अंडमान और निकोबार द्वीप समूह स्थित सेल्युलर जेल भेज दिया गया.

क्या था सेल्युलर जेल

ब्रिटिश हुकूमत में सेल्युलर जेल को ‘काला पानी’ कहा जाता था. वहां भेजे गए कैदी अपनी मातृभूमि से पूरी तरह कट जाते थे. जेल में 4.5 x 2.7 मीटर की कुल 693 कोठरियां थीं, जिसमें सिर्फ एक छोटी खिड़की होती थी. कैदियों को एक-दूसरे से बात करने की अनुमति नहीं थी. यहां सावरकर से तेल की कोल्हू चक्की चलवाकर हर दिन 30 पाउंड (लगभग 13 किलो 700 ग्राम) नारियल या सरसों का निकलवाया जाता था, लक्ष्य पूरा नहीं होने पर उस दिन खाना नहीं मिलता था. तेल निकालते समय अकसर उनके हाथों में छाले पड़ जाते थे, या खून बहने लगता था. यह भी पढ़ें: Festivals, Vrat & Jayanti’s of June 2025: इस माह गंगा दशहरा से लेकर वट पूर्णिमा, गायत्री जयंती एवं बकरीद जैसे पर्व मनाए जाएंगे! देखे पूरी सूची!

‘मृत्यु से बदतर’ कारावास

सेल्युलर जेल में सावरकर का संघर्ष एक क्रांतिकारी की जीवटता की मिसाल थी, जो दर्शाता है कि कैसे एक मनुष्य शारीरिक, मानसिक और आत्मिक यातनाओं के बावजूद अपने विचारों और संकल्प पर न केवल अडिग रह सकता है, बल्कि जरूरत पड़ने पर पशुवत यातनाओं के विरोध में आंदोलन एवं प्रदर्शनों का नेतृत्व भी किया, लेकिन कभी हार नहीं माना.

हाथ रक्तरंजित थे, मगर लेखनी रुकी नहीं

सावरकर केवल क्रांतिकारी नहीं थे, वरन कलम के सिपाही भी थे. सेल्युलर जेल में तमाम यातनाओं के बीच भी उनकी कलम (जेल की दीवारों पर कील या कोयले से) चलती रही, जिस पर बाद में जेल से छूटने पर उन्होंने मराठी भाषा में माझी जन्मठेप (My Transportation for Life) नामक आत्मकथा भी लिखी. बता दें कि सेल्युलर जेल में ही उनके ‘हिंदुत्व का दर्शन’ जैसे विचार उत्पन्न हुए.

सेल्युलर जेल में भाई बाबा राव

जिस दौरान दामोदर सावरकर सेल्युलर जेल में आजीवन कैद की सजा काट रहे थे, उसी दौरान उसी जेल में उनके भाई बाबाराव सावरकर भी सजा काट रहे थे, दोनों को ही इस बात का भान नहीं था, लेकिन जब उन्हें यह बात पता चली तब भी अंग्रेजी हुकूमत ने दोनों भाइयों को मिलने की अनुमति नहीं दी. यह भी पढ़ें: Nautapa 2025: इस नौतपा, कब से कब तक तपेगी पृथ्वी? जानें इन नौ दिनों का ब्रह्मांडीय रहस्य एवं क्या करें, क्या ना करें!

‘माफीनामे’ का सच

वीर दामोदर सावरकर ने अंग्रेजों को दया याचिकाएं (Mercy Petitions) लिखी थीं. आलोचक इसे आत्मसमर्पण कहते हैं, जबकि समर्थकों का कहना है कि यह रणनीतिक कदम था, ताकि वे बाहर आकर राष्ट्रीय पुनर्निर्माण में भाग ले सकें. जेल की अमानवीय स्थिति में जीवित रहना भी एक प्रकार का वीरता का कार्य था. दरअसल आलोचक उनके हिंदुत्ववादी विचारधारा की खिलाफत करते थे, इसलिए सावरकर के राष्ट्रप्रेम को नकारात्मक नजरिये से देखते थे.

बहरहाल दया याचिका के बाद साल 1921 को उन्हें सेल्युलर जेल से रिहा कर 1921 से 1924 तक यरवदा सेंट्रल जेल (पुणे) में रखा गया. 6 जनवरी 1924 को उन्हें कुछ प्रतिबंधों के साथ रिहा किया गया. अंततः 26 फरवरी 1966 को मुंबई में वीर दामोदर सावरकर का निधन हो गया.