Ugadi 2019: शिव-पुराण और अन्य कई पौराणिक पुस्तकों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि भगवान शिव ने किसी बात से नाराज होकर ब्रह्मा जी को शाप दिया था, कि पृथ्वी पर उनकी कहीं भी पूजा नहीं होगी. बाद में सृष्टि का रचयिता होने के नाते विष्णु जी ने उन्हें सृष्टि प्रारंभ करने का आदेश दिया. कहा जाता है कि उगादि के दिन ही ब्रह्मा जी द्वारा सृष्टि की रचना प्रारंभ करने के कारण दक्षिण भारत में ब्रह्मा जी की पूजा-अर्चना पूरी आस्था एवं श्रृद्धा से की जाती है. सृष्टि की रचना का प्रथम दिन होने के कारण इस दिन को तेलुगु और कन्नड़ नववर्ष की शुरुआत भी माना जाता है. विष्णु पुराण के अनुसार इसी दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था, तथा इसी दिन भगवान श्रीराम का राज्याभिषेक भी हुआ था, और इसी दिन सम्राट विक्रमादित्य ने शकों विजय प्राप्त की थी.
उगादि यानि नववर्ष की शुरुआत:
‘उगादी’ संस्कृत का शब्द है. इसका शाब्दिक अर्थ है नये युग का प्रारंभ, यानी नववर्ष का शुभारंभ. उगादी का पर्व भारत के दक्षिण राज्यों कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में बड़े पारंपरिक तरीके से मनाया जाता है. मान्यता है कि इसी दिन ब्रह्मा जी ने श्रृष्टि की रचना शुरु की थी. इस पर्व के आते-आते वसंत ऋतु अपने पूरे शबाब पर होता है. प्रकृति दुल्हन की तरह सजी होती है. नदियां, पहाड़ियां, झरने, घाटियों पर रंग-बिरंगे फूल-फल सभी कुछ सजीव से प्रतीत होते हैं. मानों इसीलिए इस पर्व का आनंद भी द्वीगुणित हो जाता है.
बस इसी दिन होती है ब्रह्मा जी की विशेष पूजा:
उगादि पर्व काफी कुछ उत्तर भारत की दीपावली जैसा होता है. पर्व से एक सप्ताह पूर्व से ही घर-बाहर की सफाई-पुताई शुरू हो जाती है. उगादी के दिन ब्रह्मा जी की पूजा-अर्चना का विशेष विधान है. इस दिन पूरे घर को रंगीन फूलों से सजाया जाता है. घर-परिवार के लोग सुबह-सबेरे उठकर अपने पूरे बदन और सिर में तिल का तेल लगाते हैं, फिर स्नान कर नये-नये कपड़े पहनते हैं. सर्वप्रथम प्रवेश द्वार पर आम्र पल्लव लगाते हैं. घर के सामने आकर्षक एवं भव्य रंगोली सजाई जाती है. कुछ लोग बड़े आकार की स्वास्तिक बनाकर उस पर मंगल कलश रखकर दीपक प्रज्जवलित करते हैं. फिर पूजा अर्चना करते हैं. इससे घर में सकरात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है. कहीं-कहीं रंगोली अथवा स्वास्तिक पर नया सफेद कपड़ा बिछाकर उस पर हल्दी और केसर से रंगे चावल से अष्टदल बनाकर उस पर ब्रह्मा जी की प्रतिमा रखी जाती है. प्रतिमा को शुद्ध जल से स्नान करवाकर दायें हाथ में इत्र, अक्षत, फूल और जल लेकर भगवान ब्रम्हा जी के मंत्रों का उच्चारण करते हुए पूजा की जाती है. मंदिरों में मंत्रोच्चारण के साथ जब पूजा और आरती का कार्यक्रम सम्पन्न होता है तो पूरा वातावरण आध्यात्मिक रंग में रंग जाता है.
घर में पूजा-अर्चना के बाद मंदिर में भी ब्रह्मा जी की पूजा करते हैं, और प्रार्थना करते हैं कि नववर्ष सभी के लिए सुख, शांति और समृद्धि का प्रतीक बने. नववर्ष की खुशी में घरों में स्वादिष्ट पकवान और मिठाइयां बनती है, जिसे आसपास के घरों में बांटकर अपनी खुशियों और सौहार्दता का संदेश देते हैं. अमूमन तेलंगाना समेत कुछ और भी जगहों पर यह पर्व तीन दिनों तक मनाया जाता है. नववर्ष होने के कारण कुछ लोग इस दिन को बहुत शुभ मानते हुए, इस दिन सारे शुभ कार्य करते हैं.
‘पच्चड़ी’ और ‘बेवु-बेल्ला’ वितरित की है परंपरा:
देश के अन्य पर्वों की तरह उगादी में भी खान-पान पकवान का विशेष रिवाज है. लेकिन जो सबसे महत्वपूर्ण एवं प्राचीन परंपरा है, वह यह कि इस दिन आस-पड़ोस के लोगों को पच्चड़ी पिलायी जाती है. पच्चड़ी पेय नई इमली, आम, नारियल, नीम के फूल, गुड़ आदि मिलाकर मिट्टी के मटके में बनायी जाती है. आंध्र प्रदेश में पच्चड़ी का वितरण होने के बाद लोगों में ‘बेवु-बेल्ला’ वितरित किया जाता है. गुड़ और नीम के मिश्रण से बना होता है. यह दोनों ही चीजें सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होती है. ‘बेवु-बेल्ला’ हमें इस बात का अहसास कराता है कि हमें जीवन के कड़वे-मीठे दौर से गुजरना पड़ता है. अर्थात हमारा शरीर मौसम में हो रहे परिवर्तन से लड़ने के लिए तैयार है. यह हमारे शरीर के प्रतिरोधी क्षमता को भी बढ़ाता है. इसके अलावा नाते-रिश्तेदारों को बुलाकर उन्हें, लड्डू और अन्य किस्मों की मिठाइयां खिलाई जाती हैं. ये सारी चीजें घर पर बनाई हुई होती है.
नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है और यह लेखक की अपनी निजी राय है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं.