Thadri 2024: भारत में कई धर्मों और समुदाय के लोग रहते हैं, जिनकी संस्कृति और परंपराएं एक-दूसरे से काफी भिन्न हैं, लेकिन यहां सबसे खास बात तो यह है कि सभी धर्मों और समुदाय के लोग अपने पर्वों को हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं. हर धर्म का अपना कुछ विशेष पर्व होता है, जिसे सालों से लोग मनाते आ रहे हैं. इन्हीं समुदायों में से एक है सिंधी समुदाय, जो थदड़ी (Thadri) पर्व को बहुत धूमधाम से मनाते हैं. सिंधी में थदड़ी का अर्थ है- ठंडा, शीतल. यह पर्व इस साल 25 अगस्त 2024 को मनाया जा रहा है. इस दिन सिंधी समुदाय (Sindhi Community) की महिलाएं माता शीतला (Mata Sheetala) के मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना करती हैं. इस पर्व पर सिंधी समाज के परिवारों में ठंडा, मीठा और बासी भोजन किया जाता है. इस पर्व से ठीक एक दिन पहले लोग मीठा लोला, चावल, दही भात, नमकीन कोकी, सिंधी आचार, बेसन का चिल्ला इत्यादि बनाते हैं और फिर थदड़ी के दिन माता शीतला को यही भोग अर्पित कर इसका सेवन किया जाता है.
थदड़ी का पौराणिक महत्व
सिंधी समुदाय के लोग इस पर्व को सदियों से मनाते आ रहे हैं. इस पर्व से जुड़ी प्रचलित कथा के अनुसार, हजारों साल पहले एक बार मोहन जोदड़ो की खुदाई के दौरान जमीन से मां शीतला देवी की एक भव्य प्रतिमा निकली थी. ऐसी मान्यता है कि उन्हीं की आराधना में सिंधी समुदाय के लोग इस पर्व को तब से मना रहे हैं. इसके अलावा इससे जुड़ी एक अन्य कथा के अनुसार, प्राचीन समय में जब किसी को माता (चेचक) निकली थी तो लोगों ने उसे दैवीय प्रकोप मानकर देवी की स्तुति की थी, कहा जाता है कि तब से यह पर्व मनाया जाने लगा और इस पर्व में ठंडा व बासी भोजन खाने की परंपरा निभाई जाने लगी. यह भी पढ़ें: Janmashtami 2024 Prasad and Mithai Thali: रसगुल्ला से लेकर लड्डू तक, श्रीकृष्ण को भोग अर्पित करने के लिए घर पर ऐसे बनाएं ये 5 मिठाइयां
इस पर्व से जुड़ी परंपराएं
इस त्योहार से एक दिन पहले सिंधी परिवारों में तरह-तरह के लजीज व्यंजन बनाए जाते हैं. भोजन पकाने के बाद रात को सोने से पहले चूल्हे पर जल छिड़क कर हाथ जोड़कर अग्निदेव की पूजा की जाती है और चूल्हे को ठंडा किया जाता है. इसके बाद थदड़ी के दिन चूल्हे को नहीं जलाया जाता है और रात में बना हुआ बासी व ठंडा भोजन की ग्रहण किया जाता है. इसके साथ ही इस दिन परिवार के सभी लोग किसी नदी, नहर या कुएं के पास जाकर मां शीतला देवी की पूजा-अर्चना करते हैं, उन्हें ठंडे भोजन का भोग लगाते हैं और फिर उसे प्रसाद के रूप में परिवार वालों के साथ ग्रहण करते हैं.