Swaminarayan Jayanti 2024: कौन हैं भगवान स्वामी नारायण? जानें स्वामीनारायण जयंती का महत्व एवं पूजा विधि!
Bhagwan Swaminarayan | X

हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन भगवान स्वामी नारायण की जयंती मनाई जाती है. स्वामीनारायण का जन्म चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी अर्थात रामनवमी के दिन हुआ था. स्वामीनारायण ने लाखों अनुयायियों को सनातन धर्म के लिए प्रेरित किया. उन्होंने दुनिया भर में हिंदू धर्म का प्रचार-प्रसार किया, इसके साथ ही स्वामीनारायण संप्रदाय की भी स्थापना की थी. इस संप्रदाय को मानने वाले स्वामी नारायण की जयंती को बहुत उत्साह के साथ मनाते है. इस वर्ष स्वामीनारायण जयंती 17 अप्रैल 2024, बुधवार को मनाई जाएगी. आइये जानते हैं, कौन हैं स्वामीनारायण, साथ ही जानेंगे उनके दिव्य जीवन के संदर्भ में कुछ आवश्यक एवं रोचक बातें. Ram Navami 2024: इस वर्ष कब मनाई जाएगी रामनवमी 17 या 18 अप्रैल को? जानें सही तिथि, विशेष शुभ योग, मंत्र, मुहूर्त, पूजा-विधि एवं सेलिब्रेशन आदि!

स्वामीनारायण जयंती का महत्व

भगवान स्वामीनारायण के भक्त सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों का पालन करते थे. स्वामीनारायण रीति-रिवाज और परंपराएं भक्तों को आध्यात्मिक जीवन जीने और भगवान के करीब जाने में मदद करती है. स्वामीनारायण भक्तों को सदाचार, भक्ति और सेवा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते थे. स्वामीनारायण की जयंती भगवान स्वामीनारायण के जीवन और शिक्षाओं से प्रेरणा लेने का अवसर प्रदान करती है. उनकी शिक्षाएं और उपदेश हमें सत्य, अहिंसा, शाकाहार और भक्ति के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है.

स्वामी नारायण पूजा-विधि

चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर घर की साफ-सफाई करें, और पूजा की तैयारी करें. अब भगवान स्वामीनारायण की प्रतिमा को पालना में रखें और उन्हें पुष्प से सजाएं, तथा पुष्प हार पहनाएं. रोली, अक्षत, हल्दी, पीला चंदन, पुष्प आदि अर्पित करें. उन्हें दूध की मिठाई एवं फल चढ़ाएं. पूजा के पश्चात भगवान की आरती उतारें, और प्रसाद को आम लोगों को वितरित करें.

कौन है भगवान स्वामीनारायण?

भगवान स्वामीनारायण का जन्म चैत्र माह शुक्ल पक्ष की नवमी को (1781) में अयोध्या के निकट कौशल के चपैया नगर में हुआ था. माँ भक्ति ने उन्हें ‘घनश्याम पांडे’ पुकारती थीं, पिता घनश्याम ‘धर्मदेव’ के नाम से संबोधित करते थे. उनके पवित्र गुणों का आकलन करते हुए महर्षि मार्कण्डेय ने ‘नीलकंठ’ और ‘हरिकृष्ण’ नाम दिया. उनके अनुयायी उन्हें ‘श्रीजी महाराज’ कहकर पुकारते थे. तत्कालीन गुरु रामानंद स्वामी ‘उन्हें नारायण मुनि’ और ‘सहजानंद’ के नाम से संबोधित करते थे.

साल 1792 में महज 11 साल की उम्र में उन्होंने सात साल तीर्थयात्राएं की. एक दिन सहजानंद स्वामी ने एक सभा आयोजित कर उन्हें ‘स्वामीनारायण’ मंत्र की शिक्षा दी, यहीं से उन्हें स्वामीनारायण कहा जाने लगा. उनके अनुयायियों का मानना है कि स्वामीनारायण अपने अनुयायियों को दिव्य आशीर्वाद देने और गलत कार्यों को नष्ट करने हेतु पृथ्वी पर अवतरित हुए थे. 1 जून 1830 को उनका निधन हो गया.