Shree Swami Samarth Prakat Din 2023: 23 मार्च को अक्कलकोट श्री स्वामी समर्थ महाराज का प्रकट दिन है, जो भगवान दत्तात्रेय के अवतार हैं. स्वामी भक्तों के लिए यह महापर्वणी है. यह पर्व करोड़ों श्रद्धालुओं को नई ऊर्जा, साहस देता है. स्वामी समर्थ महाराज ने असहाय, उज्ज्वल, कमजोर समाज को एक नई चेतना दी और 'डरो मत, मैं तुम्हारे साथ हूं' कहकर राहत दी. तदनुसार, इस लेख में आइए जानते हैं कि स्वामी समर्थ प्रकट दिवस का क्या महत्व है और इस पर्व की शुरुआत कैसे हुई. श्री स्वामी समर्थ महाराज कब आए थे? वे कहां से आए थे, कौन थे, इसके बारे में किसी को कुछ नहीं पता. लेकिन एक कहानी है जिसके अनुसार श्री स्वामी समर्थ महाराज का अवतार पंजाब प्रांत के हस्तिनापुर से लगभग 24 किलोमीटर दूर छेली खेड़ा नामक गांव में बरगद के पेड़ के पास हुआ. यह भी पढ़ें: Cheti Chand 2023 Wishes: चेटी चंड की इन हिंदी Quotes, WhatsApp Messages, Facebook Greetings, SMS के जरिए दें शुभकामनाएं
1856 ईस्वी में वह अक्कलकोट के खंडोबा मंदिर में प्रकट हुए थे. वह दिन चैत्र शुद्ध द्वितीया है. स्वामी समर्थ प्रकट दिवस मनाने की शुरुआत स्वामीसुत महाराज ने की थी. स्वामी समर्थ जी महाराज को श्रीपाद वल्लभ और नृसिंह सरस्वती के बाद भगवान श्री दत्तात्रेय का तीसरा अवतार माना जाता है. कहा जाता है कि अक्कलकोट में प्रकट होने से पहले स्वामी जी इधर-उधर भ्रमण करते रहे, और मंगलवेधे आये थे. यहां वे काफी लोकप्रिय प्राप्त हुई थी. यहां से वह सोलापुर होते हुए फिर अक्कलकोट आये. श्री स्वामी समर्थ प्रकट दिन पर हम ले आए हैं कुछ ग्रीटिंग्स, जिन्हें आप अपने प्रियजनों को भेजकर शुभकामनाएं दे सकते हैं.
स्वामी समर्थ यांच्या प्रकटदिन निमित्त अभिवादन
स्वामी समर्थ यांच्या प्रकटदिन निमित्त अभिवादन
स्वामी समर्थ यांच्या प्रकटदिन निमित्त अभिवादन
स्वामी समर्थ यांच्या प्रकटदिन निमित्त अभिवादन
स्वामी समर्थ यांच्या प्रकटदिन निमित्त अभिवादन
कहा जाता है कि श्री स्वामी समर्थ ने विभिन्न स्थानों पर 400 सालों तक तपस्या की. साल 1458 में नृसिंह सरस्वती श्री शैल्य यात्रा के कारण कर्दली वन में वह अदृश्य हुए थे. इसी वन में स्वामीजी 300 साल तक समाधि में थे. इस दौरान उनके शरीर के चारों ओर चींटियों ने बांबी बना लिया. एक दिन एक लकड़हारे की गलती से बांबी पर कुल्हाड़ी गिरी.
कुल्हाड़ी उठाने पर उसे खून दिखा. उसने बांबी की सफाई की तो एक बुजुर्ग योगी साधना में लीन दिखे. लकड़हारा उनकी चरणों में गिरकर ध्यान भंग करने के अपराध में छमा याचना करने लगा. योगीजी ने कहा ये तुम्हारी गलती नहीं बल्कि मुझे पुनः लोगों को सेवाएं देने का दैवीय आदेश है. नये स्वरूप में 854 से 30 अप्रैल 1878 तक अक्कलकोट में रहकर लगभग 600 वर्ष की आयु में उन्होंने महासमाधि ली.