10 नवंबर का दिन मराठा साम्राज्य के लिए किसी स्वर्णाक्षरों में लिखा जाने वाला दिन कहा जाये तो गलत नहीं होगा. करीब 354 साल पहले आज के ही दिन छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपनी मौत को मात देते हुए अपने शक्तिशाली दुश्मन अफजल खान को बड़ी चतुराई के साथ मौत की नींद सुलाया था. आइये जानें विस्तार से उस रोमांचक गाथा के संदर्भ में.. Vivah Shubh Muhurat 2022: नवंबर-दिसंबर में कुछ ही दिन बजेंगी शहनाइयां! ज्योतिषाचार्य से जानें शुभ मुहूर्तों का क्यों है अकाल?
विशाल सेना का साथ पाकर भी अफजल ने शिवाजी से युद्ध क्यों नहीं किया?
दरअसल अफजल खान बीजापुर की आदिल शाही हुकूमत का अत्यंत शातिर, वफादार और बहादुर लड़ाका था, वह दुश्मन पर विजय प्राप्त करने के लिए किसी भी हद तक जा सकता था. उसकी इन्हीं खूबियों को देखते हुए आदिल शाह की माँ ने मराठा साम्राज्य पर कब्जा करने के लिए अफजल खान को विशाल सेना के साथ भेजा. अफजल शिवाजी के पराक्रम से परिचित था, वह जानता था, कोई भी मुगल शासक शिवाजी को सामने से परास्त नहीं कर सकता. उसने षड़यंत्र कर शिवाजी की हत्या की योजना बनाई. वस्तुतः शिवाजी को परास्त करने के लिए आदिल शाह ने अफजल खान के साथ एक विशाल सेना भेजा था.
ज्योतिष शास्त्री ने अफजल से क्यों मना किया शिवाजी से युद्ध के लिए?
अफजल खान बहादुर, शातिर लड़ाका होने के बावजूद ज्योतिष शास्त्र पर बहुत विश्वास करता था. युद्ध पर निकलने से पूर्व जब उसने अपने ज्योतिष शास्त्री से अपने विजय की संभावनाओं पर प्रश्न किया, तब ज्योतिष शास्त्री ने उसे स्पष्ट बताया था कि अफजल खान के पास कितनी भी बड़ी सेना क्यों नहीं हो, लेकिन इस युद्ध में शिवाजी के हाथों उसकी मृत्यु निश्चित है. वह शिवाजी के साथ आमने-सामने युद्ध करने से बचे.
अफजल खान ने शिवाजी की छल पूर्वक हत्या की योजना बनाई!
अफजल खान ने छत्रपति शिवाजी महाराज को 10 नवंबर, 1659 के दिन प्रतापगढ़ के पास मिलने के लिए संदेश भेजा. शिवाजी ने उसके आमंत्रण को स्वीकार करते हुए नियत स्थान पर समय पर पहुंचने का आश्वासन दे दिया. यह मुलाकात प्रतापगढ़ के पास एक शामियाने में होनी थी. अफजल खान की योजना थी कि ज्यों ही शिवाजी महाराज उससे गले मिलेंगे, उसने अपनी कटार शिवाजी के पेट में घोंपना चाहा, मगर शिवाजी अफजल षड्यंत्रों से पूर्व परिचित थे. वह अपने शरीर पर कवच और पंजों में बघनख (बाघ का नाखून) पहनकर आये थे, उन्होंने तुरंत अपने बघनख से अफजल खान का पेट चीर कर उसे मौत की नींद सुला दिया.
धूमधाम से मनाते हैं प्रतापगढ़ में शिव प्रताप दिवस
छत्रपति शिवाजी महाराज की इसी दूरदर्शिता एवं विजय की खुशी में महाराष्ट्र के प्रतापगढ़ में इस दिन महाराष्ट्र में शिव प्रताप दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस अवसर पर प्रतापगढ़ में बहुत बड़ा मेला लगता है. प्रतापगढ़ स्थित शिवाजी की कुल देवी की परंपरागत तरीके से पूजा की जाती है. शिवाजी की विशाल प्रतिमा को स्नान कराने के बाद माल्यार्पण किया जाता है और विजय ध्वज फहराया जाता है, तत्पश्चात किले में छत्रपति शिवाजी महाराज की पालकी निकाली जाती है.