Savitribai Phule Birth Anniversary 2020: अंग्रेजों के राज में एक ओर जहां अपने हक के लिए लड़ना किसी भी व्यक्ति के लिए आसान नहीं था तो वहीं दूसरी तरफ समाज की रूढ़िवादी सोच की वजह से महिलाओं को तरह-तरह की यातनाएं और अत्याचार झेलने पड़ते थे. उन्नीसवीं सदी में हालात इतने बदतर थे कि घर की दहलीज को लांघकर महिलाओं को बाहर जाने की इजाजत नहीं थी और न ही उन्हें शिक्षा का अधिकार प्राप्त था. महिलाओं के प्रति समाज में फैली कुरीतियों के बीच सावित्री बाई फुले (Savitribai Phule) ने महिलाओं के बीच शिक्षा का अलख जगाया था. समाज की रूढ़िवादी परंपराओं की बेड़ियों को तोड़कर सावित्री बाई फुले ने समाज सुधारक बनकर महिलाओं को सामाजिक शोषण से मुक्त कराने और उनके लिए समान शिक्षा के अवसर प्रदान करने के लिए पुरजोर कोशिश की.
3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र में जन्मी सावित्री बाई फुले की आज जयंती मनाई जा रही है. सावित्री बाई फुले को भारत की पहली महिला शिक्षक कहा जाता है, जिन्होंने महिला शिक्षा का अलख जगाया था. चलिए जानते हैं देश की पहली महिला शिक्षक (India's First Female Teacher) के जीवन से जुड़ी रोचक बातें.
सावित्री बाई फुले से जुड़ी रोचक बातें
1- सावित्री बाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र स्थित सातारा के नायगांव नामक गांव में हुआ था. उन्होंने महिलाओं को शिक्षित करने और उनके अधिकारों के लिए लड़ने में अहम भूमिका निभाई थी. वे भारत के पहले बालिका विद्यालय की पहली प्रिंसिपल और पहले किसान स्कूल की संस्थापक थीं.
2- सावित्री बाई फुले की शादी 9 साल की उम्र में ही समाजसेवी व लेखक ज्योतिबा फुले से हो गई थी. ज्योतिबा फुले ने स्त्रियों की दशा सुधारने और समाज में उन्हें पहचान दिलाने के मकसद से एक स्कूल खोला था, जो लड़कियों के लिए खोला गया देश का एकमात्र स्कूल था. उन्होंने सावित्री बाई फुले को इस योग्य बना दिया कि वे अध्यापिका बनकर लड़कियों को पढ़ा सकें.
3- सावित्री बाई फुले को पढ़ने की बहुत इच्छा थी, लेकिन उनके परिवार और ससुराल के लोगों ने इसका विरोध किया. हालांकि उनकी इस इच्छा को पूरी करने में उनके पति ने साथ दिया और जब वे खेत में काम कर रहे पति ज्योतिराव को भोजन देने जाती थीं, तब उन्हें वह पढ़ाया करते थे और उन्होंने उन्हें पढ़ाने के लिए स्कूल में दाखिला भी दिलवाया.
4- समाज के विरोध के बावजूद शिक्षा प्राप्त करने वाली सावित्री बाई फुले और उनके पति ज्योतिराव ने अन्य लड़कियों को शिक्षा देने की ठान ली. उन्होंने साल 1848 में पुणे में बालिका विद्यालय की स्थापना की. इस स्कूल में सावित्री बाई फुले प्रिंसिपल के साथ शिक्षिका भी बनीं.
5- देश की पहली महिला शिक्षिका सावित्री बाई जब स्कूल में लड़कियों को पढ़ाने जाती थीं तो उन पर गोबर और पत्थर फेंके जाते थे. बावजूद इसके उन्होंने कभी हार नहीं मानी और इन चीजों से प्रभावित हुए बिना ही उन्होंने लड़कियों को पढ़ाना जारी रखा.
6- समाज सुधार के लिए कई कार्य करने वाले सावित्री बाई फुले और ज्योतिराव फुले की कोई संतान नहीं थी. ऐसे में उन्होंने एक विधवा महिला के बेटे को गोद लिया, यशवंतराव नाम के बेटे को गोद लेने के बाद उन्होंने उसे अच्छी परवरिश और शिक्षा प्रदान की.
गौरतलब है कि साल 1897 में पुणे में प्लेग नामक महामारी फैल गई थी. इस महामारी की चपेट में आकर कितने ही लोग दम तोड़ रहे थे, ऐसे में प्लेग के मरीजों की सेवा करने के लिए सावित्री बाई फुले और ज्योतिराव फुले ने एक क्लिनिक खोला. इस क्लिनिक में सावित्री बाई खुद मरीजों की सेवा करती थीं, लेकिन दुर्भाग्यवश मरीजों की सेवा करते-करते वे खुद ही प्लेग की चपेट में आ गईं और प्लेग की चपेट में आने की वजह से 10 मार्च 1897 को उनका निधन हो गया.