Ganesh Sankashti Chaturthi 2019: मान्यता है कि श्रावण माह (Shravan Month) के कृष्णपक्ष की संकष्टी गणेश चतुर्थी (Ganesh Sankashti Chaturthi) की पूजा अर्चना के साथ कथा सुनने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती है. प्रत्येक माह में दो बार गणेश चतुर्थी की तिथि आती है. एक कृष्णपक्ष में और दूसरी शुक्लपक्ष में. कृष्णपक्ष की चतुर्थी को संकष्टी गणेश चतुर्थी कहा जाता है, जबकि शुक्लपक्ष में जो चतुर्थी आती है, उसे विनायक चतुर्थी अथवा वरद चतुर्थी कहा जाता है. कृष्णपक्ष में आनेवाली चतुर्थी को बड़ी चतुर्थी के रूप में माना जाता है. क्योंकि कृष्णपक्ष का ज्यादा महत्व है और चतुर्थी तिथि अगर कृष्णपक्ष में आयेगी तो विशेष फलदायी होगी.
सर्वाधिक प्रभावशाली है श्रावण मास की गणेश संकष्टी
श्रावण मास में कृष्णपक्ष चतुर्थी का अलग ही महत्व होता है, क्योंकि श्रावण मास भगवान शिव जी (Lord Shiva) का प्रिय मास माना जाता है. चूंकि गणेश (Lord Ganesha) जी उनके सुपुत्र हैं. इसलिए गणेश जी की पूजा-अर्चना भगवान भोलेनाथ के प्रिय मास में यदि करेंगे तो आपको निश्चय ही अक्षय फल की प्राप्ति होगी और आपके सभी कार्य पूरे हो जाएंगे. आपकी सारी बाधाओं का निवारण हो जायेगा. क्योंकि गणेश जी को मंगलकर्ता एवं विघ्नहर्ता कहा गया है. मान्यता है कि किसी भी मनोकामना के साथ कृष्णपक्ष की चतुर्थी का व्रत के साथ कथा सुनते हैं तो गणेश जी भक्त की सभी मनोकामनाएं पूरी कर देते हैं.
संपूर्ण ब्रह्माण्ड व्याप्त है गणेश जी के शरीर में
इस वर्ष 20 जुलाई 2019 के दिन श्रावण मास के कृष्णपक्ष की संकष्टी गणेश चतुर्थी है. इस दिन भगवान गणेश जी का व्रत एवं उपवास किया जाता है. गणेश जी पूजा में भगवान के नाम का उच्चारण किया जाता, बल्कि मंत्र का जाप किया जाता है. पूजा के पहले अथवा बाद में भूलकर भी गणेश जी की पीठ का दर्शन नहीं करना चाहिए. भगवान की पूजा करने से घर में सुख शांति और समृद्धि आती है. गणेश जी के शरीर के सभी अंगों में सम्पूर्ण ब्रह्मांड निवास करता है. सूंड़ में धर्म विद्यमान है, कानों पर ऋचाएं हैं, दाएं हाथ में वर तो बाएं हाथ में अन्न, पेट में समृद्धि, नाभि में ब्रह्माण्ड है, आंखों में लक्ष्य, मस्तष्क पर ब्रह्मलोक विराजित हैं. गणेश जी का सामने से दर्शन करना बहुत सुखदाई होता है. उनकी पीठ का दर्शन करने से घर में दरिद्रता आती है. इसिलिए जाने अनजाने में कभी भी गणेश जी की पीठ का दर्शन हो जाए तो उनसे छमा याचना कर लेनी चाहिए.
कैसे करें गणेश जी की पूजा-अर्चना
संकष्टी गणेश चतुर्थी के दिन प्रातःकाल जल्दी उठें और स्नान-ध्यान कर लाल श्वेत वस्त्र पहनें. सर्वप्रथम व्रत का संकल्प लें. उसके बाद गणेश जी की मूर्ति स्थापित करें. गणेश जी को जनेऊ पहनाएं, अबीर गुलाल चंदन से सिंदूर, इत्र आदि से गणेश जी का विशेष पूजन करें. चावल सहित अन्य पूजन सामग्री भगवान को समर्पित करें. इसके पश्चात भगवान की प्रिय वस्तु दुर्वा, गुड़ और लड्डू का भोग लगाएं. इसके पश्चात नारियल चढ़ाकर पान, तांबुल, सुपाड़ी, लौंग, इलायची ये सारी वस्तुएं तथा फल चढ़ाकर कपूर से गणेश जी की आरती करें. यह भी पढ़ें: Sankashti Chaturthi 2019: आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की संकष्टी चतुर्थी आज, जानिए इस व्रत का महत्व और पूजा विधि
महान फलदायी है यह संकष्टी
गणेशजी की पूजा के पश्चात प्रसाद का वितरण करें. और गणेश चतुर्थी का व्रत चंद्रोदय तक जारी रहता है. चंद्रमा का दर्शन करने के बाद ही व्रत का समापन किया जाता है. इस श्रावण मास की संकष्टि चतुर्थी का विशेष पुण्य फल प्राप्त होता है. इससे घर की दरिद्रता का निवारण होता है, संतान सौभाग्यदायक मानी गयी है. रोगों का नाश करने वाली और शत्रुओं का विनाश करने वाली यह चतुर्थी सबसे उत्तम मानी गयी है.
प्रचलित कथा
प्राचीनकाल में हिमालय पुत्री माता पार्वती ने शिव जी को पति के रूप में पाने के लिए कठोर व्रत किया था, लेकिन शिव जी खुश नहीं हुए. तब पार्वती जी ने अनादिकाल से विद्यमान गणेश जी का ध्यान किया. गणेश जी के प्रकट होने पर माता पार्वती ने कहा, हे गणेश जी मैंने भगवान शिव जी के लिए काफी तप किया है. मगर शिवजी प्रसन्न नहीं हुए. अतः हे विघ्न विनाशक कोई उपाय बताएं. तब गणेश जी ने कहा, हे माता श्रावण मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी के दिन निराहार रहकर मेरा व्रत कीजिये. चंद्रोदय के समय चंद्रमा और मेरी पूजा करके व्रत का समापन करो. षोडशोपचार से मेरा पूजन करो. 15 लड्डू बनाओ. सर्वप्रथम गणेश जी को सारे लड्डू अर्पित करने के पश्चात उसमें से पांच लड्डू दक्षिणा समेत ब्राह्मण को दान करो. पांच लड्डू अर्घ्य देकर चंद्रमा को समर्पण करके भक्तों में प्रसाद वितरित करो. शेष पांच लड्डू स्वयं भोजन में ग्रहण करो. अगर इतना सामर्थ्य नहीं है तो भोग लगाकर दही के साथ भोजन करो. अब भगवान गणेश जी की प्रार्थना करो. जब चतुर्थी का व्रत पूरा हो जाये तो एक साल तक निरंतर इस चतुर्थी का व्रत करना चाहिए. एक साल चतुर्थी का व्रत पूरी कर उद्यापन कर लेना चाहिए. आप चाहें तो जीवनपर्यंत व्रत एवं पूजन करें.