Rani Durgavati Balidan Diwas 2023: भारतीय इतिहास के पन्ने तमाम शूरवीरों एवं वीरांगनाओं की हैरान कर देने वाली गाथाओं से भरे पड़े हैं, इन्हीं में एक नाम रानी दुर्गावती (Rani Durgavati) का भी है. दुर्गावती (Durgavati) अपने नाम के अनुरूप बहादुर, साहसी और शौर्य का प्रतीक थीं, जिन्होंने पति दलपत शाह के आकस्मिक मृत्यु के पश्चात अपने राज्य गोंडवाना को शक्तिशाली बनाने के साथ जनहित के तमाम कार्य कर राज्य को समृद्धि से परिपूर्ण बनाया. अपने राज्य की रक्षार्थ उन्होंने कई लड़ाइयां लड़ी और जीत भी हासिल की. रानी वास्तव में क्षत्राणी थीं, इसलिए उन्होंने अकबर के सामने आत्मसमर्पण करने के बजाय अपनी खंजर से अपने जीवन का अंत कर लिया. रानी दुर्गावती की 459वीं शहीदी दिवस (Rani Durgavati Balidan Diwas) पर आइये जानें उनके जीवन से जुड़े कुछ रोचक और प्रेरक फैक्ट्स.
* दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर 1524 को कालिंजर के किले (आज का उत्तर प्रदेश) में हुआ था. पिता का नाम कीरत राय था, दुर्गावती काफी कम उम्र की थीं, जब उनकी मां का निधन हो गया था. 18 वर्ष की आयु में उनका विवाह गोंड राजवंश दलपत शाह से हुआ था. साल 1545 में रानी दुर्गावती ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम वीर नारायण था. जो आगे चलकर अपने नाम के अनुरूप अतुलित योद्धा बना. नारायण जब मात्र 5 वर्ष के थे, पिता राजा दलपत शाह की मृत्यु हो गई.
* साहस, शौर्य और शक्ति की प्रतीक रानी दुर्गावती का जन्म अक्टूबर 1524 को कीर्ति सिंह चंदेल की पुत्री के रूप में हुआ था. उनका जन्म चूंकि दुर्गाष्टमी के दिन हुआ था, इसलिए उनके पिता कीर्ति सिंह चंदेल ने उनका नाम दुर्गावती रखा. दुर्गावती ने बचपन से किशोरावस्था तक आते-आते तलवारबाजी, घुड़सवारी एवं सभी युद्ध कलाएं सीख ली थी.
* 18 वर्ष की आयु में दुर्गावती का विवाह गोंडवाना नरेश संग्राम शाह के पुत्र दलपत शाह के साथ हुआ था, जिनसे उन्हें वीर नारायण नामक पुत्र हुआ था. नारायण जब मात्र पांच साल का था, पिता दलपत शाह की मृत्यु हो गई. दलपत शाह की मृत्यु के बाद गोंडवाना पर दुश्मन देशों की नजर थी, लेकिन रानी दुर्गावती ने स्वयं गढ़ मंडला का शासन संभाल लिया.
* गढ़ मंडला का शासन संभालने के पश्चात रानी दुर्गावती ने सर्वप्रथम अपनी सामरिक शक्ति को बढ़ाया, और अपनी सेना और प्रजा की रक्षार्थ अपनी राजधानी सिंगौरगढ़ से चौरागढ़ जो सतपुड़ा की पहाड़ियों के बीच था, स्थानांतरित कर दिया. उनकी इस नीति से उनके शत्रुओं ने भी उनकी प्रशंसा की.
* मालवा के सुल्तान बाजबहादुर की बुरी नजर रानी दुर्गावती पर थी. उसने साल 1556 में रानी दुर्गावती के किले गढ़ मंडला पर आक्रमण कर दिया, लेकिन रानी दुर्गावती ने उसकी पूरी सेना का सफाया कर दिया तो बाज बहादुर युद्ध क्षेत्र से भाग खड़ा हुआ. दुर्गावती की बिजली सी चमकती तलवार से वह इस कदर भयभीत हुआ कि दोबारा गढमंडला की तरफ देखने की हिम्मत भी नहीं पड़ी. यह भी पढ़ें: Rani Lakshmi Bai Death Anniversary 2023: झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की पुण्यतिथि पर सीएम एकनाथ शिंदे, देवेंद्र फडणवीस, शरद पवार और सुप्रिया सुले समेत इन नेताओं ने दी श्रद्धांजलि
* रानी दुर्गावती एक तरफ अपनी सैन्य शक्ति और राज्य की सुरक्षा को सशक्त कर रही थीं. उन्होंने राज्य की अर्थव्यवस्था को व्यापक बनाने के लिए व्यापार और कला, साहित्य एवं संस्कृति को भी खूब बढ़ावा दिया. उन्होंने जनहित में शिक्षा केंद्र, तालाब, कुएं, सराय और कृषि को भी खूब समृद्ध किया.
* रानी दुर्गावती के राज्य की समृद्धि और गोंडवाना के खजाने को हड़पने और राज्य पर कब्जा करने के लिए अकबर ने आसफ खान के नेतृत्व में अपनी विशाल सेना को भेजा. रानी जानती थी कि मुगलों के भारी-भरकम सेना का उनकी मुट्ठी पर सेना ज्यादा देर तक सामना नहीं कर सकेगी, ऐसे में रानी दुर्गावती ने कूटनीति के साथ मुगल सेना पर दोतरफा हमला बोला. रानी दुर्गावती को आम महिला समझने की भूल कर आसफ खान ने भारी गलती की, उसे भी अपनी जान बचाकर भागना पड़ा.
* दुर्गावती आसफ खान को भगा तो दिया, मगर वह जानती थी, कि अकबर शांत नहीं रहेगा. अकबर ने हजारों सैनिकों के साथ भारी-भरकम तोप आसफ खान को भेजा. रानी अपनी प्रिय हाथी सरमन और बेटा नारायण ने आसफ खान की सेना को तीन बार पीछे धकेला, लेकिन प्रयास में नारायण बुरी तरह घायल हो गये तो रानी ने उन्हें सुरक्षित भेजकर मुगल सेना से अकेले भिड़ गईं. अचानक पीछे से आए दो तीर ने बुरी तरह जख्मी कर दिया. मुगल सेना उन्हें गिरफ्तार करती, रानी ने अपने हाथी चालक बघेला से कहा कि वह उनके पेट में कटार भोंक दे. इस तरह 24 जून 1564 को शेरनी सी चपल रानी दुर्गावती वीरगति को प्राप्त हुईं.