हिंदू धर्म ग्रंथों में उल्लेखित है कि जब-जब पृथ्वी पर पाप और अत्याचार बढ़ा, अधर्म ने धर्म पर विजय पाने की कोशिश की, तब-तब भगवान विष्णु ने पृथ्वी पर अवतार लेकर अत्याचार का नाश कर धर्म की पुनर्स्थापना की. गरुड़ पुराण के अनुसार श्रीहरि ने दस बार पृथ्वी पर अवतार लिया. जिसकी वजह से उन्हें दशावतार के रूप में भी जाना जाता है. कहते हैं कि त्रेता युग में जब लंकाधिपति राक्षसराज रावण का पृथ्वी पर अत्याचार बढ़ने लगा, तब भगवान विष्णु ने श्रीराम के रूप में अयोध्या में अवतार लिया और रावण का संहार कर पृथ्वी पर शांति की स्थापना की. यहां सवाल उठता है कि श्रीहरि ने सातवें अवतार के लिए अयोध्या को ही क्यों चुना था? लेकिन यह जानने से पहले यह जानना जरूरी है कि अत्याचार और पाप का दमन करने के लिए सदा विष्णु जी ने ही क्यों अवतार लिया, ब्रह्मा और भगवान शिव ने क्यों नहीं? यह भी पढ़ें: Ram Navami 2021: आज के दिन इन 9 सरल उपायों को अमल में लाएं, आपके जीवन की सारी बाधाएं समाप्त होंगी, मिलेगा श्रीराम का आशीर्वाद! जानें क्या हैं ये 9 उपाय?
इसलिए लेते रहे विष्णु जी अवतार!
गौरतलब है कि सृष्टि के निर्माण के संचालन में त्रिदेव की संयुक्त भूमिका होती है. त्रिदेव के एक देव ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की, तो श्रीहरि को सृष्टि के पालनहार की भूमिका सौंपी गयी, जबकि शिव जी को संहारक बनाया गया. इसलिए जब-जब पृथ्वी पर पापाचार, अत्याचार और अधर्म का बोलबाला हुआ, तो सृष्टि के पालनहार के रूप में भगवान विष्णु को विभिन्न रूपों में अवतार लेना पड़ा. विष्णु पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने समय-समय पर दस अवतार लिए. जिसमें श्रीराम के रूप में सातवां अवतार उन्होंने अयोध्या में लिया.
श्रीराम के लिए विष्णुजी ने अयोध्या ही क्यों चुना?
कहा जाता है कि सृष्टि की रचना करने के बाद भगवान ब्रह्मा ने मनु और शतरूपा को उत्पन्न किया और उन्हें पति-पत्नी के रूप में मानव जाति को बढ़ाने की जिम्मेदारी दी गयी, ब्रह्मा जी के आदेश से दोनों ने पति-पत्नी के धर्म और आचरण को बड़े ही पवित्रता के साथ जीया. सृष्टि के नियमानुसार जीवन को जीते हुए मनु को वृद्धावस्था ने आ घेरा. मृत्यु निकट आई तो मनु और शतरूपा इस बात को लेकर बहुत दुखी हुए कि उन्हें श्रीहरि यानी विष्णु जी की भक्ति का अवसर ही नहीं मिला. एक दिन दोनों अपनी संतान को राज-पाट सौंप कर वन की ओर प्रस्थान कर गये. कहते हैं कि मनु और शतरूपा ने नैमिषारण्य धाम में जाकर श्रीहरि को प्रसन्न करने के लिए हजारों सालों तक कठिन तपस्या की. इस दौरान उन्होंने केवल जल ही ग्रहण किया. छह हजार साल की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर श्रीहरि ने उन्हें दर्शन देते हुए वरदान मांगने को कहा, मनु ने कहा कि उन्हें भगवान श्रीहरि जैसा पुत्र चाहिए. तब श्रीहरि ने मनु को बताया कि कुछ समय बाद मनु अयोध्या में राजा दशरथ के रूप में जन्म लेंगे. तब श्रीहरि दशरथ के पुत्र के रूप में जन्म लेंगे. कालांतर में मनु ने अयोध्या में दशरथ के रूप में जन्म लिया. इसके पश्चात राजा दशरथ एवं उनकी पत्नी कौशल्या जो वास्तव में शतरूपा थीं के गर्भ से चैत्र मास के शुक्लपक्ष की नवमी के दिन श्रीहरि ने श्रीराम के रूप में जन्म लेकर अपने वरदान को पूर्णता प्रदान किया.