नई दिल्ली. भारत को त्योहारों का देश कहा जाता है, साल भर में मनाए जाने वाले सभी त्योहार अपने आप में पौराणिक, धार्मिक, वैज्ञानिक दृष्टिकोण लिए हुए सदियों से मनाए जा रहे हैं. सावन महीने की पूर्णिमा के दिन मनाया जाने वाला त्योहार रक्षाबंधन अब कुछ ही दिन दूर है. इस साल यह पर्व 26 अगस्त रविवार के दिन मनाया जाएगा. त्योहार की धूम और उल्लास का वातावरण अभी से पुरे देश में दिख रहा है, बाजारों में रंग बिरंगी राखियों की छटा देखते बन रही है.
रक्षाबंधन हिंदुओं का प्रमुख त्योहार है और यह त्योहार पूरे भारत देश मे मनाया जाता है। इसे भाई बहनों का त्योहार माना जाता है. रक्षाबंधन का अर्थ होता है “रक्षा+बंधन” अर्थात किसी को अपनी रक्षा मे बांध लेना. इस दिन बहने अपने भाई की कलाई पर राखी बांधकर उनकी लंबी उम्र की कामना करती है और भाई अपनी बहनों को सदा रक्षा करने का वचन देते है.
कैसे मनाया जाता है रक्षाबंधन
रक्षाबंधन भाई-बहन के स्नेह का त्योहार है. पूरा दिन उल्लास और हर्षपूर्ण होता है. घरो की सफाई की जाती है. बहने सुबह स्नानादि के पश्चात पुजा की थाली सजाती है. थाली में राखी के साथ कुमकुम तिलक, चावल, दीपक, मिठाई और कुछ पैसे होते है. भाई तैयार होकर टीका करवाने के लिए पूजा या किसी उपयुक्त स्थान पर बैठते है. इसके बाद कुमकुम से भाई का टीका करके चावल को टीके पर लगाया जाता है और सिर पर छिड़का जाता है, भाई की आरती की जाती है और दाहिने कलाई पर राखी बांधी जाती है. भाई बहन को उपहार स्वरुप कुछ देता है, और उसकी रक्षा का वचन लेता है.
तिलक और अक्षत का महत्त्व
भारतीय आध्यात्मिक संस्कृति में पूजा और भक्ति का जितना महत्त्व है उतना ही महत्त्व तिलक का भी है. वैदिक काल से लेकर आज तक हिन्दू समाज में मंगल कार्यों के आरम्भ में माथे पर तिलक लगाकर उसे अक्षत से विभूषित किया जाता रहा है. अर्थात किसी भी शुभ कार्य में तिलक लगाकर हम उस कार्य के प्रति अपनी श्रद्धा और विशवास व्यक्त करते है तथा कार्य निर्बाध रूप से सम्पन्न होने की कामना करते है.
माथे पर तिलक लगाने से व्यक्ति का मान-सम्मान तथा गौरव बढ़ता है. तिलक लगाने के पीछे आध्यात्मिक और वैज्ञानिक कारण हैं. तिलक लगाने से मानसिक शांति मिलती है. इसके प्रयोग से हमारा ध्यान लक्ष्य के प्रति स्थिर होता है. तिलक मस्तक पर भृकुटि मध्य वा नासिका के प्रारंभिक स्थल पर लगाना सबसे शुभ माना जाता है. यह स्थान हमारे चिंतन-मनन का है जो चेतन-अवचेतन अवस्था में भी जाग्रत एवं सक्रिय रहता है,योग में इस स्थान को अग्नि-चक्र कहा जाता है. यहीं से पूरे शरीर में शक्ति का संचार होता है. ऐसे में इस जगह तिलक लगाने से ऊर्जा का संचार होता है और व्यक्ति का आत्मविश्वास बढ़ता है. तिलक में चावल लगाने का कारण यह है कि चावल को शुद्धता का प्रतीक माना गया है.
शास्त्रों के अनुसार, चावल देवताओं को चढ़ाया जाने वाला शुद्ध अन्न माना जाता है. ऐसे में कच्चे चावल का तिलक में प्रयोग सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करने वाला होता है. इससे हमारे आस-पास की नकारात्मक ऊर्जा सकारात्मक ऊर्जा में परिवर्तित होती है. हिन्दू धर्म में कुमकुम के तिलक के साथ हल्दी, चंदन , भस्म आदी से तिलक का विधान है .. सभी तिलक के अपने -अपने लाभ भी हैं.
हल्दी तिलक
तिलक के रूप में हल्दी का भी प्रयोग किया जाता है क्योंकि हल्दी में एंटी बैक्टीरियल तत्व मौजूद होते हैं. ऐसे में इसका तिलक लगाने से व्यक्ति कई तरह के रोगों से दूर रहता है.
चन्दन तिलक
चंदन का तिलक लगाने से मानसिक शांति मिलती है. माथे पर चंदन लगाने से दिमाग में सेराटोनिन और बीटा एंडोर्फिन का स्त्राव संतुलित तरीके से होता है. इससे व्यक्ति का मन मस्तिष्क शातं और खुशनुमा रहता है. ऐसे में मनुष्य अपना ध्यान सत कर्मों में लगाता है. धार्मिक आधार पर देखे तो चंदन का तिलक लगाने से मां लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है. ज्योतिष शास्त्र की माने तो चंदन का तिलक लगा कई सारे उग्र ग्रहों को शांत किया जा सकता है.