कार्तिक मास शुक्ल पक्ष एकादशी के दिन प्रबोधिनी एकादशी का पर्व मनाया जाता है. इस दिन मंदिरों और घरों में देवों को जगाने की प्रथा है. इस दिन लक्ष्मी-नारायण की पूजा अर्चना की जाती है. क्षीरसागर में भगवान विष्णु के योग-निद्रा में आने से पूर्व ही शुभ एवं मांगलिक कार्यक्रम शुरू हो जाते हैं. इस दिन तुलसी-विवाह का भी विधान है. इस दिन चावल के आटे से चौक बनाये जाते हैं और गन्ने का मंडप बनाकर श्रीहरि की पूजा-अर्चना की जाती है. इस वर्ष 23 नवंबर 2023 को देवउठनी एकादशी का व्रत रखा जाएगा. देव उठनी एकादशी के दिन व्रत रखने वालों को इस व्रत की पौराणिक कथा अवश्य सुननी चाहिए. विधि पूर्व व्रत एवं पूजा के साथ कथा सुनने से बड़े-बड़े पाप नष्ट हो जाते हैं. Dev Uthani Ekadashi 2023 Rangoli Designs: देव उठनी एकादशी पर ये सुंदर रंगोली आर्ट बनाकर भगवान विष्णु के जागने का मनाएं जश्न (वीडियो देखें)
प्रबोधिनी एकादशी व्रत कथा!
प्राचीनकाल में एक राजा के राज्य में सभी के लिए एकादशी व्रत अनिवार्य था. इस दिन प्रजा, नौकर-चाकरों से लेकर पशुओं तक को अन्न नहीं दिया जाता था. एक दिन बाहरी राज्य से आया एक व्यक्ति राजा से बोला, महाराज! कृपा मुझे नौकरी पर रख लें. राजा ने कहा, नौकरी मिलेगी, लेकिन एकादशी को अन्न नहीं मिलेगा. उसने हाँ कर दिया. एकादशी पर उसे फलाहार दिया गया, तो उसने गिड़गिड़ाते हुए कहा, महाराज! यह अप्रयाप्त है, मैं भूखा मर जाऊंगा, मुझे अन्न चाहिए.
राजा ने उसे शर्त याद दिलाई, मगर वह नहीं माना. तब राजा ने उसे आटा-दाल-चावल दे दिया. वह हमेशा की तरह नदी में स्नान कर भोजन पकाने लगा. भोजन बनने के बाद उसने भगवान को खाने पर बुलाया. तब पीताम्बर धारण कर विष्णुजी चतुर्भुज रूप में पहुंचे, एवं प्रेम से भोजन कर अंतर्ध्यान हो गये. वह व्यक्ति भी अपने काम पर चला गया. 15 दिन बाद एकादशी को उस व्यक्ति ने राजा से दुगुना भोजन का सामान मांगा. राजा के पूछने पर उसने बताया कि उसके साथ भगवान भी भोजन करते हैं.
यह सुनकर राजा हैरान होकर बोले मैं नहीं मानता कि भगवान तुम्हारे साथ करते हैं. मैं इतना व्रत-पूजा करता पर भगवान ने कभी दर्शन नहीं दिए. व्यक्ति ने कहा, महाराज! आप स्वयं देख लें. राजा एक पेड़ के पीछे गया. व्यक्ति ने भोजन बनाया, भगवान को बुलाया, मगर भगवान नहीं आए. तब उसने कहा, प्रभू आप नहीं आए तो मैं नदी में कूदकर प्राण दे दूंगा. फिर भी भगवान नहीं आये तो वह प्राण देने नदी की ओर बढ़ा. तब भगवान ने प्रकट होकर उसे रोक लिया और साथ भोजन करने लगे. खा-पीकर भगवान उसे अपने विमान में बिठाकर अपने धाम ले गए. यह देख परेशान राजा ने सोचा कि व्रत-उपवास से तब तक कोई फायदा नहीं होता, जब तक मन शुद्ध न हो. तब वह भी मन से व्रत-उपवास करने लगा और अंत में स्वर्ग को प्राप्त हुआ.