Maha Shivratri 2019: गले में नाग और रुद्राक्षों की माला, देह पर भस्म अथवा चंदन का लेप, जटाओं में रुद्राक्ष, चंद्रमा और अविरल बहती गंगा की धारा, कमर पर व्याघ्रचर्म (शेर की खाल), भूत-प्रेत,पिशाचों की टोली..भोग में भांग-धतूरा-बेलपत्र कुछ ऐसी अजीबोगरीब वेषभूषा और पसंद होती है भगवान शिव की. ये सब चीजें भगवान शिव के व्यक्तित्व को काफी रहस्यमयी बनाती है. यह वेषभूषा ही शिवजी को अन्य देवताओं से अलग करती है, लेकिन विद्वानों ने उनके इस रूप को समन्वय का प्रतीक बताते हुए कहा है कि भगवान शिव के लिए अच्छा-बुरा सब समान है, उनके लिए कोई भी वस्तु अप्रिय नहीं है, माथे पर चंदन तो देह पर चिताभस्म दोनों को ही वह अपनाते हैं.
महाशिवरात्रि पर हजार गुना शिव तत्व होते हैं सक्रिय
शिवरात्रि प्रत्येक माह की कृष्ण चतुर्दशी को होती है, लेकिन महाशिवरात्रि का पर्व फाल्गुन महीने की कृष्ण चतुर्दशी को मनाया जाता है. शिव पुराण के अनुसार अनंत, अनादि और सर्वव्यापी भगवान शिव की प्रतिदिन और रात मिलन की घड़ी अर्थात प्रदोषकाल और अर्धरात्रि में सिद्धि और साधना के लिए बेहद शुभ माना जाता है. इस दिन शिव तत्व कई हजार गुना ज्यादा सक्रिय होते हैं. शिव जी को रात्रि का स्वामी भी माना जाता है. कहा जाता है कि प्रदोष काल में भगवान शिव माता पार्वती के साथ कल्याणकारी कार्यों के लिए पृथ्वी पर भ्रमण के लिए निकलते हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार देश के सभी बारहों ज्योतिर्लिंग का प्राकट्य अर्धरात्रि को ही हुआ है.
क्या है भस्म का सार?
अब बात शिव जी के प्रिय वस्त्र चिताभस्म की. चिताभस्म भगवान शिव के ज्ञान-वैराग्य व ज्ञान वैराग्य के वरण का संकेत माना गया है और त्रैलोकस्वामी होकर भी भगवान शिव ने राख (भभूत) और व्याघ्रचर्म को अपना परिधान बनाकर वैराग्य जीवन को सर्वश्रेष्ठ माना गया है. यह भी पढ़ें: Maha Shivratri 2019: कब मनाया जाएगा महाशिवरात्रि का पावन पर्व, जानें शुभ मुहूर्त और पूजा विधि
शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव ने ‘भस्म’ शब्द का विस्तार करते हुए बताया है कि जैसे राजा अपने राज्य में टैक्स लगाकर उसे ग्रहण करता है, उसी तरह मानव भोज्य पदार्थों को पकाकर उसका सार ग्रहण करता है तथा जैसे जठराग्नि विभिन्न भोज्य पदार्थों को ग्रहण कर उसके सार को पोषण के रूप में ग्रहण कर शारीरिक क्रिया को सक्रिय रखता है, उसी तरह चिताभस्म अथवा भभूत को भगवान शिव अपने देह पर लगाकर जगत के सार को ग्रहण करने का संकेत देते हैं.
भस्म का वैज्ञानिक महत्व
भस्म के वैज्ञानिक तत्व के संदर्भ में प्रयागराज के कुंभ में आये निर्मोही अखाड़े के एक प्रवक्ता बताते हैं, भगवान शिव कैलाशपर्वत पर प्रवास करते हैं, जहां का तापमान बहुत कम होता है. वहां की ठंडी हवाओं का प्रभाव शरीर पर पड़ता है. भस्म में तन की सुरक्षा के सारे तत्व निहित होते हैं. साधु-संत अथवा नागा बाबा भगवान शिव जी की तरह बदन पर भस्म लगाकर जंगल-पहाड़ों में निवास करते हैं. इससे उनका शरीर सभी शारीरिक व मानसिक कष्टों से दूर रहता है।
भस्म अथवा भभूत का आशय
धर्म ग्रंथों में बताया गया है कि भस्म में पापों का भक्षण करने की शक्ति होती है. भूति (ऐश्वर्य तथा सिद्धियां) प्रदान करने से उसे ‘भूति’ या ‘भभूत’ भी कहते हैं। भस्म शिव भक्तों के लिए एक बड़ा अस्त्र है, जो लोग पूरे दिन शरीर पर भभूत लगाये रहते हैं, उसके सारे दोष उस भस्म की अग्नि में जलकर भस्म हो जाते हैं. भूत, प्रेत, पिशाच आदि भस्मनिष्ठ से दूर भागते हैं। मन्दिरों में हवन की भस्म को प्रसाद रूप से मुंह में रखने व तिलक लगाने से शरीर के कठिन रोग दूर हो जाते हैं.
चंदन चढ़ाने से भी खुश होते हैं भगवान शिव. यह भी पढ़ें: Pradosh Vrat In Year 2019: भगवान शिव को समर्पित है प्रदोष व्रत, जानें साल 2019 में पड़नेवाली त्रयोदशी तिथियों की पूरी लिस्ट
भस्म के अलावा शिव जी को चंदन भी बहुत पसंद है. सोमवार के दिन पीला चंदन और पीला पुष्प अर्पित करने से भगवान शिव बहुत प्रसन्न होते हैं. वैसे तो भोले शिव जी को बेल पत्र, धतूरा, मदार के फूल बहुत पसंद हैं, लेकिन अगर महाशिवरात्रि के अवसर पर शिव जी की ये पसंदीदा वस्तुएं उपलब्ध नहीं हों तो उन्हें इन सबके बदले चंदन भी चढाया जा सकता है.