Lala Lajpat Rai's 156th Birth Annuarsary: लाला लाजपत राय प्रमुख राष्ट्रवादी नेता थे. स्वतंत्रता आंदोलन की लोकप्रिय तिकड़ी 'लाल बाल पाल' (लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक,गोपाल कृष्ण गोखले) में एक थे. ब्रिटिश शासन के खिलाफ जिस शेरदिल के साथ वे गरजते थे, उन्हें 'शेर-ए-पंजाब' एवं 'पंजाब केसरी' की पदवी दी गयी. लोग उन्हें सम्मान से 'लालाजी' कहकर पुकारते थे. अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लालाजी 'डू ऑर डाई' की नीतियों पर चलते थे, इसीलिए उन्हें कांग्रेस के 'गरम दल' के समूह में गिना जाता था. इस वजह से गांधीजी की नीतियों का वह खुलकर विरोध करते थे. साइमन कमीशन के भारत पहुंचने का विरोध स्वरूप किए आंदोलन में ब्रिटिश पुलिस की लाठी चार्ज में लालाजी बुरी तरह घायल हुए और 63 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गई. 28 जनवरी को देश भर में इस महान क्रांतिकारी की 156वीं जयंती मनायी जा रही है. जानें ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लाला लाजपत राय की क्या नीतियां थीं और किन वजहों से गांधी जी के साथ उनकी नहीं पटती थी.
मां से मिली नैतिक मूल्यों की शिक्षा:
लाला लाजपत राय का जन्म 28 जनवरी, 1865 फिरोजपुर के धुड़की गांव में हुआ था. पिता मुंशी राधाकृष्ण आजाद फारसी और उर्दू के विद्वान थे, माँ गुलाब देवी धार्मिक प्रवृत्ति की थीं, जिन्होंने बचपन से ही अपने बच्चों में मजबूत नैतिक मूल्यों को जागृत किया. यही वजह थी कि ज्यों-ज्यों लाजपत राय बड़े होते गए मां के बोये बीज उनमें पल्लवित होते गए. लाजपत राय ने प्रारंभिक शिक्षा रेवाड़ी से हासिल किया था. लाहौर के गवर्नमेंट कॉलेज से कानून की पढ़ाई पूरी कर वे हिसार में कानूनी प्रैक्टिस शुरु की. लेकिन ब्रिटिश हुकूमत की बढ़ती ज्यादती से त्रस्त होकर उन्होंने प्रैक्टिस छोड़ अंग्रेजों के खिलाफ खुली बगावत छेड़ दी. 1877 में 12 साल की उम्र में उनका विवाह राधा देवी से हुआ. साल 1888-1889 में राष्ट्रीय कांग्रेस के सत्र में पहली बार बतौर प्रतिनिधि भाग लिया. 1892 में अभ्यास करने के लिए वे लाहौर हाईकोर्ट चले गए. यह भी पढ़ें: Lala Lajpat Rai's 156th Birth Anniversary 2021: पंजाब केसरी लाला लाजपत राय का आज है 156वां जन्मदिन, जानें उनकी जिंदगी से जुड़े कुछ रोचक तथ्य
इसलिए लाला जी ने की भारत विभाजन की बात:
लाला जी को पढ़ने का बहुत शौक था, वह जो भी पढ़ते थे, उसका असर उनके मन की गहराइयों को छू जाता था. इतालवी क्रांतिकारी नेता ज्युसेपे मज्जिनी की देशभक्ति और राष्ट्रवाद के आदर्शवाद से वे काफी प्रभावित थे. उन्हीं से प्रेरित होकर लाला जी क्रांतिकारी पथ पर चल पड़े थे. उन्होंने बिपिन चंद्र पाल, अरविंद घोष, और बाल गंगाधर तिलक जैसे मुख्य धारा के नेताओं के साथ मिलकर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कतिपय नेताओं के उदारवादी नीति के नकारात्मक पहलुओं को महसूस किया और कांग्रेस के सामने कड़ा प्रतिरोध जताया. उन्होंने दो टूक शब्दों में 'पूर्ण स्वतंत्रता' अथवा 'पूर्ण स्वराज' की मांग रखी. मुस्लिम वर्ग को खुश करने के लिए हिंदू हितों का त्याग करने की कांग्रेसी प्रवृत्ति का भी उन्होंने विरोध किया था. 14 दिसंबर 1923 के द ट्रिब्यून में प्रकाशित उनके एक लेख संपूर्ण भारत को 'मुस्लिम भारत' और 'गैर- मुस्लिम भारत' में स्पष्ट विभाजन की बात ने एक बड़े विवाद को जन्म दिया.
इन वजहों से वे गांधी जी के विचारों से सहमत नहीं थे?
इस समय तक लाजपत राय ने कानून की प्रैक्टिस छोड़कर ब्रिटिश हुकूमत से दो दो हाथ करने का मन बना लिया था. उन्होंने भारत में ब्रिटिश हुकूमत की नृशंसता को विश्व के प्रमुख देशों में उजागर करने का निर्णय लिया. इस सिलसिले में वह 1914 में ब्रिटेन और 1917 में अमेरिका गए. यहां न्यूयॉर्क में उन्होंने इंडियन होम रूल लीग ऑफ अमेरिका की स्थापना की. 1920 में अमेरिका से लौटने पर कांग्रेस ने उन्हें कलकत्ता में विशेष सत्र में अध्यक्षता का आमंत्रण दिया. 1920 में जब गांधी जी ने असहयोग आंदोलन शुरु किया, उस समय लाला जी 13 अप्रैल 1919 के दिन जलियांवाला बाग में ब्रिटिश हुकूमत के क्रूरतम कार्यवाइयों के विरोध में पंजाब में उग्र प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे थे. इसी तरह चौरीचौरा कांड की घटना के बाद जब गांधी जी ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ छेड़ा आंदोलन स्थगित करने का फैसला किया तो लाला जी ने गांधी जी के फैसले की कड़ी आलोचना की थी. इसके बाद ही लाला जी ने स्वतंत्र कांग्रेस की पार्टी बनाने का फैसला किया था.
30 अक्टूबर 1928 को लाला लाजपत राय ने लाहौर में साइमन कमीशन के आने का विरोध स्वरूप शांतिपूर्ण जुलूस का नेतृत्व कर रहे थे. जुलूस को रोकने के लिए ब्रिटिश पुलिस अधीक्षक जेम्स ए स्कॉट ने पुलिस को 'लाठीचार्ज' का आदेश दिया. पुलिस ने मुख्य रूप से लाजपत राय को निशाना बनाते हुए उनके सीने पर ताबड़तोड़ लाठियां बरसाई. बुरी तरह से घायल लाला जी का 17 नवंबर 1928 को निधन हो गया. इस तरह शेर-ए-पंजाब की आवाज हमेशा के लिए थम गयी.