Happy Krishna Janmashtami 2019: बाल गोपाल श्रीकृष्ण (Shri Krishna) का जन्म भाद्रपद के कृष्णपक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में देवकी के गर्भ से हुआ था. उस समय देवकी को उनके भाई कंस ने मथुरा (Mathura) के कारागार में कैद कर रखा था. क्योंकि कंस (Kans) को पता था कि देवकी के गर्भ से होनेवाली संतान ही उसका वध करेगा. कृष्ण उपासक इस दिन व्रत रहते हैं. देश के सभी मंदिरों को भव्य तरीके से सजाया जाता है. रात्रि 12 बजे बाल गोपाल (Bal Gopal) का जन्म होता है, उसके बाद बाल गोपाल की आरती उतारकर व्रत का पारण किया जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार श्रीकृष्ण जन्माष्टमी (Krishna Janmashtami) का व्रत रखने और पूजा करने एवं श्रीकृष्ण की कथा सुनने एवं सुनाने पर नि:संतान को संतान सुख की प्राप्ति होती है तथा गृहस्थ एवं पारिवारिक जीवन सुखमय होता है.
श्रीकृष्ण की जन्म कथा
द्वापर युग में मथुरा पर अत्याचारी राजा कंस का शासन था. उसने अपने पिता राजा उग्रसेन को गद्दी से उतारकर शासन का अधिकार छीन लिया था. कंस के अत्याचार से मथुरावासी बहुत दुःखी थे. कंस की बहन देवकी का विवाह वसुदेव से हुआ था. एक बार कंस गर्भवती देवकी को उसके ससुराल ले जा रहा था, तभी आकाशवाणी हुई- 'हे कंस! जिस बहन को तू उसके ससुराल छोड़ने जा रहा है, उसके गर्भ से पैदा होनेवाली आठवीं संतान तेरा वध करेगी. '
देवकी और वसुदेव को कारावास
आकाशवाणी सुनकर कंस ने देवकी और वसुदेव का वध करने के लिए तलवार उठाया. तब वसुदेव ने कंस से देवकी को न मारने की प्रार्थना करते हुए कहा कि देवकी की जब भी कोई संतान जन्म लेगी, उसे वह कंस को सौंप देंगे. इसके पश्चात कंस ने वसुदेव और देवकी को मथुरा के कारागार में कैद कर सख्त पहरा बैठा दिया. यह भी पढ़ें: Krishna Janmashtami 2019: श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर सुफल मनोरथ के लिए, क्या करें क्या न करें
कंस ने देवकी के सात संतानों का वध किया
कारागार में देवकी को जब भी कोई संतान होती तो वसुदेव अपने वचन का निर्वहन करने के लिए बच्चे को कंस के हवाले कर देते थे. इस तरह कंस ने देवकी के एक के बाद एक सातों संतानों का वध कर दिया. चूंकि आकाशवाणी में कंस को देवकी की आठवीं संतान से भय था, इसलिए उसने कारागार के बाहर पहरा कड़ा कर दिया था. संयोगवश उसी समय नंद की पत्नी यशोदा भी गर्भवती थीं.
कारागार में पैदा हुए कान्हा
अंततः भादों माह के कृष्णपक्ष की आधी रात को विष्णु भगवान ने देवकी की आठवीं संतान के रूप में जन्म लिया. उसी घड़ी यशोदा ने एक पुत्री को जन्म दिया. कृष्ण के जन्म लेने के साथ ही कारागार में भगवान विष्णु प्रकट हुए. उन्होंने वसुदेव से कहा कि आप इस बालक को अपने मित्र नंद जी के घर ले जाओ और वहां से उनकी कन्या को यहां ले आओ.
नंद जी के घर पहुंचे बाल गोपाल
भादो माह की रोहिणी नक्षत्र में जब श्रीकृष्ण ने जन्म लिया तब बाहर तेज बारिश हो रही थी. तेज बारिश के कारण यमुना पूरे उफान पर थी. भगवान की माया से कारागार में सारे सिपाही गहरी नींद में सो चुके थे और कारागार का ताला स्वमेव खुल गया था. वसुदेव ने शिशु कृष्ण को सूप में रखकर नंद बाबा के घर की ओर प्रस्थान किया. यमुना भी शांत हो गयी थी. वसुदेव शिशु कृष्ण को लेकर सकुशल नंद बाबा के महल में पहुंच गए. वहां उन्होंने गहरी नींद में सो रही यशोदा के बगल से कन्या को उठाकर वहां शिशु कृष्ण को लिटा दिया. यह भी पढ़ें: जन्माष्टमी कब है? 23 या 24 अगस्त किस दिन मनाया जाएगा ये त्योहार, जानिए कान्हा के जन्मोत्सव का महात्म्य, पूजा विधि, मंत्र और शुभ मुहूर्त
अंततः भगवान कृष्ण ने किया कंस का वध
इस बीच कंस देवकी की आठवीं संतान के जन्म की सूचना पाकर कारागार पहुंचा और वसुदेव के हाथ से कन्या को छीनकर पृथ्वी पर पटका, लेकिन कन्या कंस के हाथ से छिटककर आकाशलोक में विलीन हो गयी और कंस को बताया कि मूर्ख तू एक कन्या को मार रहा था, तेरा वध करने वाला कान्हा जन्म ले चुका है. माना जाता है कि वह कन्या वास्तव में विष्णु द्वारा रची माया थी. कृष्ण को मारने के लिए कंस ने पूरे मथुरा में अत्याचार करना शुरू कर दिया. अंततः श्रीकृष्ण ने कंस का संहार कर मथुरावासियों को उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई. कंस के मरने पर देवताओं ने आकाश से कृष्ण पर पुष्प वर्षा की. भगवान कृष्ण ने माता देवकी और वसुदेव को कारागार से मुक्त कर उग्रसेन को मथुरा की गद्दी सौंपी.