श्राद्ध पक्ष की समाप्ति के अगले ही दिन से खरमास प्रारंभ हो रहा है. विभिन्न जगहों पर इसे अधिकमास, मलमास, अधिमास इत्यादि नामों से जाना जाता है. हिंदू धर्म के अनुसार 30 दिन के खरमास काल विशेष में विवाह, नामकरण, यज्ञोपवीत, मुंडन जैसे मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं. गौरतलब है कि 2 सितंबर से 17 सितंबर तक श्राद्ध का पखवारा होगा. यानी श्राद्ध की तिथि से मलमास के अंतिम तिथि (17 अक्टूबर 2020) यानी डेढ़ माह तक हिंदू धर्म में विवाहोत्सव से लेकर किसी भी तरह के शुभ-मंगल कार्य वर्जित होंगे. आइये जानें क्या होता है खरमास और यह कब से लग रहा है, तथा क्यों नहीं होते इस काल में शुभ कार्य.
क्या है खरमास
हिंदू पंचांग के अनुसार एक सौर वर्ष में 365 दिन, 15 घटी, 31 पल व 30 विपल होते हैं जबकि चंद्रवर्ष में 354 दिन, 22 घटी, 1 पल व 23 विपल होते हैं. सूर्य व चंद्र दोनों वर्षों में 10 दिन, 53 घटी, 30 पल एवं 7 विपल का अंतर प्रत्येक वर्ष में रहता है. इसी अंतर को प्रबंधन करने के लिए अधिकमास की व्यवस्था होती है. अधिक मास प्रत्येक तीसरे वर्ष होता है. यह अमूमन फाल्गुन से कार्तिक मास के मध्य होता है. यानी जिस वर्ष अधिक मास होता है उस वर्ष में 12 के बजाय 13 महीने होते हैं. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब बृहस्पति ग्रह सूर्य के करीब आते हैं तो बृहस्पति का प्रभाव क्षीण हो जाता है. यह स्थिति पूरे एक माह तक रहती है, इसे मलिनमास अथवा खरमास इत्यादि के नाम से जाना जाता है.
कब से लग रहा है खरमास?
ज्योतिषियों के अनुसार इस वर्ष यानी साल 2020 में अधिक मास 18 सितंबर से प्रारंभ होकर 16 अक्टूबर तक रहेगा. इस वर्ष आश्विन यानी क्वार मास की अधिकता रहेगी अर्थात् इस वर्ष दो आश्विन मास होंगे. हिंदी पंचांग के अनुसार 16 सितंबर को श्राद्ध पखवारे की समाप्ति के अगले दिन यानी 17 सितंबर से ही अधिक मास प्रारंभ हो जायेगा, जो 17 अक्टूबर को खत्म होगा.
क्यों नहीं होते खरमास में शुभ कार्य
हिन्दू धर्म के अनुसार खरमास काल में सूर्य के अत्यधिक करीब होने के कारण बृहस्पति की शक्ति क्षीण हो जाती है. और ऐसी स्थिति को शुभ नहीं माना जाता. इसीलिए खरमास काल में विवाह, यज्ञोपवीत, मुंडन, गृह-प्रवेश, गृह-निर्माण, नया व्यवससाय जैसे शुभ कार्य वर्जित होते हैं. ऐसी भी मान्यता है कि इस मास में सूर्य देवता के रथ को घोड़े नहीं खींचते हैं. सूर्य देव भारत के नहीं बल्कि संपूर्ण ब्रह्मांड के देवता हैं. इसीलिए इन दिनों शुभ कार्य वर्जित माने जाते हैं. आइये जानें खरमास में क्या करें क्या न करें.
यह कार्य करें
- चूंकि अधिमास को पुरुषोत्तम मास भी कहते हैं इसलिए इस मास की एकादशियों पर व्रत रखने के साथ भगवान विष्णु की पूजा कर तुलसी और खीर का भोग लगाना चाहिए.
- पौराणिक कथाओं में पीपल वृक्ष में भगवान विष्णु का वास बताया गया है, इसलिए इस पूरे मास पीपल की की जड़ में जल-पुष्प अर्पित करना चाहिए.
- व्यवसाय अथवा नौकरी-रोजगार में तरक्की के लिए बहुत से लोग खरमास की नवमी के दिन कुंवारी कन्याओं को भोजन भी कराया जाता है. इससे श्रीहरि प्रसन्न होते हैं.
- खरमास के दिनों सूर्योदय से पूर्व उठकर श्रीहरि को केसर युक्त दूध से अभिषेक करायें और तुलसी की माला का जाप करते हुए 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः' का जप करें.
- पूरे खरमास श्रीहरि की पूजा-अर्चना के साथ निम्न मंत्रों में से किसी एक अथवा सभी के जाप करने से श्रीहरि प्रसन्न होते हैं, जीवन में सुख-शांति-समृद्धि का वास होता है तथा मृत्योपरांत वैकुण्ठ धाम की प्राप्ति होती है.
* 'गोवर्धनधरं वन्दे गोपालं गोपरूपिणम्
गोकुलोत्सवमीशानं गोविन्दं गोपिकाप्रियम्'
* 'ॐ नमो नारायण। श्री मन नारायण नारायण हरि हरि..'
* 'श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे। हे नाथ नारायण वासुदेवाय'
ये कार्य हर्गिज नहीं करें.
- बृहस्पति ग्रह के कमजोर होने के कारण खरमास में विवाह, सगाई, रोका, यज्ञोपवीत, मुंडन जैसे मांगलिक कार्य नहीं करना चाहिए.
- इस माह गृह-प्रवेश, नये कार्यालयों का उद्घाटन, नयी गाड़ियों एवं नये घर आदि की खरीददारी भी वर्जित बताई जाती है.
- किसी गरीब, वृद्ध, विकलांगजन, अबला नारी आदि का अपमान नहीं करें.
- बेजुबान पशु-पक्षियों को खाना-दाना खिलाएं, उस पर अत्याचार करने से बचें.
नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को प्रचलित मान्यताओं के आधार पर सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है और यह लेखक की निजी राय है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं. इसके बारे में हर व्यक्ति की सोच और राय अलग-अलग हो सकती है.