सनातन धर्म में एकादशी का बहुत ज्यादा महत्व माना गया है. इस दिन भगवान विष्णुजी की पूजा-अर्चना का विधान है. ज्ञात हो कि प्रत्येक माह दो बार एकादशी पड़ती है, एक कृष्णपक्ष में दूसरी शुक्लपक्ष में. हिंदू संवत्सर की पहली एकादशी और चैत्र मास की शुक्लपक्ष की एकादशी को कामदा एकादशी भी कहा जाता है. इसे ही फलदा एकादशी भी कहते हैं. ज्योतिषियों का मानना है कि जो भी भक्त कामदा एकादशी का उपवास रखता है, दान, तर्पण और विधि विधि-विधान से पूजा करते हैं, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है और सभी पापों का अंत होता है. इस वर्ष कामदा एकादशी 4 अप्रैल (शनिवार) को पड़ रहा है.
आइये जानें क्या है कामदा एकादशी का महात्म्य और कैसे करें पूजा-अर्चना..
कामदा एकादशी का महात्म्य
हमारे धर्म शास्त्रों में काम, क्रोध और लोभ इन तीन प्रवृत्ति को पाप का मूल स्त्रोत माना गया है. काम पीड़ित होने पर व्यक्ति के अंदर अच्छे बुरे का फर्क करने की क्षमता खत्म हो जाती है. ऐसे ही पापों से मुक्ति के लिए शास्त्रों में चैत्र मास की शुक्लपक्ष की एकादशी के व्रत का विधान है. इस व्रत को विधिपूर्वक करने से समस्त पाप नष्ट होते हैं और प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है. संसार में इसके बराबर कोई और व्रत नहीं है. इसकी कथा पढ़ने या सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है.
कामदा एकादशी पूजा विधि
इस दिन प्रातःकाल किसी पवित्र नदी अथवा कुण्ड में स्नान करने के पश्चात विष्णु जी के व्रत का संकल्प लें. अब स्वच्छ वस्त्र धारण करके एक साफ चौकी पर पीले रंग का आसन बिछा कर उस पर गंगाजल का छिड़काव कर पवित्र करें. अब भगवान विष्णु जी की प्रतिमा को चरणामृत से स्नान कराने के बाद गंगाजल से स्नान करायें, और पीले आसन पर प्रतिष्ठित कर दें. श्रीहरि को वस्त्रादि पहनाने के पश्चात उन्हें रोली का तिलक लगायें. इसके बाद सुगंधित फूल, अक्षत, फल, तुलसी, पंचमेवा, मिष्ठान, पंचामृत एवं तिल इत्यादि अर्पित करें, और धूप-दीप प्रज्जवलित कर लक्ष्मी नारायण के मंत्रों का जाप करें. इस दिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना विशेष रूप से फलदायी माना जाता है. इसके बाद पूरे दिन व्रत रखते हुए रात्रि को जागरण करते हुए श्रीहरि का कीर्तन इत्यादि करें. अगले दिन द्वाद्वशी को व्रत का पारण करें. एकादशी के दिन पारण करने से पूर्व ब्राह्मण को भोजन कराकर दक्षिणा देकर विदा करें. इसके पश्चात ही स्वयं भोजन करें.
कामदा एकादशी (5 अप्रैल) पारण मुहूर्त
प्रातःकाल 06.07 बजे से 08.38 बजे तक
कामदा एकादशी की प्रचलित कथा
प्राचीनकाल में भोगीपुर नामक नगर में पुण्डरीक नामक नाग राज करता था. इनके दरबार में गायन और वादन में निपुण किन्नर व गंधर्व वास करते थे. एक दिन ललित नामक गन्धर्व दरबार में गायन कर रहा था. अचानक उसे अपनी पत्नी ललिता की याद आ गई, इस वजह से उसका स्वर, लय एवं ताल बिगड़ गया. ललित के इस ध्यान भंग से नाराज होकर पुण्डरीक ने उसे राक्षस बन जाने का शाप दे दिया.
ललित के राक्षस बन जाने पर उसकी पत्नी ललिता दुःखी रहने लगी. एक दिन वन में ललिता को ऋष्यमूक ऋषि मिले. ललिता ने ऋषि को सारी बातें बताई. ऋषि ने ललिता को चैत्र शुक्लपक्ष की एकादशी का व्रत करने की सलाह दी. ललिता ने ऋषि के बताए नियम के अनुसार व्रत एवं विष्णु भगवान की विधिवत पूजा किया. ललिता को इस व्रत से जो भी पुण्य-फल मिला, अपने पति ललित को दे दिया. पत्नी का पुण्य-फल प्राप्त होते ही ललित पुनः राक्षस से गंधर्व रुप में लौट आया. इस व्रत के पुण्य से ललित और ललिता दोनों को मोक्ष की प्राप्ति हुई.
नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को प्रचलित मान्यताओं के आधार पर सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है और यह लेखक की निजी राय है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं. इसके बारे में हर व्यक्ति की सोच और राय अलग-अलग हो सकती है.