हिंदू पंचांग के अनुसार हिंदू वर्ष की पहली एकादशी कामदा एकादशी के नाम से मनाई जाती है. इस तरह इसे एकादशी चक्र की शुरुआत का प्रतीक कहा जाता है. ‘कामदा’ के शाब्दिक अर्थ ‘इच्छा पूरी करने वाली’, इस व्रत को करने से जातक की सारी इच्छाएं पूरी होती हैं. इस दिन भगवान विष्णु एवं देवी लक्ष्मी का व्रत एवं पूजा करने से सारी कामनाएं पूरी होती हैं. जानें-अनजानें हुए पापों एवं श्रापों से मुक्ति मिलती है, विशेषकर ब्रह्म-हत्या से जुड़े श्रापों से. इस एकादशी को आध्यात्मिक विकास एवं मुक्ति पाने का उचित समय माना जाता है. इस वर्ष कामदा एकादशी 07 अप्रैल 2025 को मनाई जाएगी. आइये जानते हैं कामदा एकादशी के महत्व, मुहूर्त, पूजा विधि एवं व्रत-कथा के बारे में... यह भी पढ़ें : Chhatrapati Shivaji Maharaj Punyatithi 2025 Messages In Marathi: शिवाजी महाराज की पुण्यतिथि पर ये WhatsApp Stickers और HD Wallpapers के जरिए करें उन्हें याद
कामदा एकादशी की मूल तिथि एवं मुहूर्त?
चैत्र शुक्ल पक्ष एकादशी प्रारंभः 08.00 PM (07 अप्रैल 2025)
चैत्र शुक्ल पक्ष एकादशी समाप्तः 06.05 AM (08 अप्रैल 2025)
उदया तिथि के अनुसार 8 अप्रैल 2025 को कामदा एकादशी मनाई जाएगी.
व्रत का पारणः 10.55 AM (08 अप्रैल 2025) तक किया जा सकता है.
पूजा का शुभ मुहूर्त
ब्रह्म मुहूर्तः 03.04 AM 05.20 AM
अभिजीत मुहूर्तः 11.57 AM से 12.47 PM तक
विजय मुहूर्तः 02.28 PM से 03.18 PM
क्यों खास है कामदा एकादशी?
हिंदू नव वर्ष की पहली कामदा एकादशी साल की सभी 24 एकादशियों से अलग और खास होती है. इस दिन विधि-विधान से भगवान विष्णु एवं लक्ष्मी जी की पूजा करने वाले जातक के तमाम पाप एवं कष्ट कट जाते हैं. ज्योतिषियों के अनुसार कामदा एकादशी व्रत की महत्ता इसी समझी जा सकती है, कि यह व्रत करने से प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है, ब्रह्म हत्या जैसे गंभीर पापों से छुटकारा मिलता है, निसंतान दम्पत्ति को संतान लाभ प्राप्त होता है. गंभीर बीमारी से त्रस्त संतान को दीर्घायु प्राप्त होती है. तथा जातक जीवन के सारे सुख भोगने के पश्चात वैकुण्ठ लोक में स्थान पाता है.
कामदा एकादशी के लिए विशिष्ठ अनुष्ठान
एकादशी के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान-ध्यान करने के बाद सूर्य को जल अर्पित करें. नया वस्त्र धारण कर, भगवान विष्णु का ध्यान कर व्रत एवं पूजा का संकल्प लें. शुभ मुहूर्त में पूजा की प्रक्रिया शुरु करते हुए मंदिर के सामने एक चौकी रखकर इस पर पीला वस्त्र बिछाएं, इस पर भगवान विष्णु एवं देवी लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें. धूप-दीप प्रज्वलित करें. निम्न मंत्र का जाप करते हुए पूजा प्रक्रिया जारी रखें.
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।
भगवान विष्णु को पीला तथा देवी लक्ष्मी को लाल चुनरी पहनाएं. पुष्प, रोली, पीला चंदन, पान-सुपारी, आदि अर्पित करें. भोग में मिष्ठान, फल चढ़ाएं. विष्णु सहस्त्रनाम का जाप करें. अंत में विष्णु जी की आरती उतारें. अंत में प्रसाद वितरित करें. अगले दिन शुभ मुहूर्त पर व्रत का पारण करें.













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