Jivitputrika Vrat 2019: संतान की लंबी उम्र व अच्छी सेहत के लिए महिलाएं रखती हैं जीवित्पुत्रिका व्रत, जानिए इसकी कथा और महत्व
जीवित्पुत्रिका व्रत 2019 (Photo Credits: Facebook)

Jivitputrika Vrat 2019: सनातन धर्म में संतान, पति, पत्नी, समृद्धि एवं सुखमय जीवन की कामनाओं को लेकर तमाम व्रत एवं उपासनाएं हैं. इसमें कुछ धर्म से जुड़े हैं तो कछ क्षेत्रीय़ रीति रिवाजों से. इन्हीं में एक है जिवित्पुत्रिका व्रत (Jivitputrika Vrat), जिसे जिउतिया व्रत (Jjiutiya Vrat) भी कहते हैं. यह व्रत अधिकांशतया पूर्वी उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) एवं बिहार (Bihar) में रखा जाता है. जिवित्पुत्रिका व्रत वस्तुतः पुत्र के दीर्घायु के लिए निर्जला उपवास एवं भगवान शिव (Lord Shiva) एवं पार्वती (Mata Parvati) जी की पूजा के साथ सम्पन्न होता है.

व्रत का महात्म्य

जिवित्पुत्रिका व्रत अश्विन माह के कृष्णपक्ष की सप्तमी से शुरू होकर नवमी तिथि को पारण के साथ सम्पन्न किया जाता है. यह बहुत कठिन व्रत होता है. व्रत रखने वाली महिलाएं सप्तमी की रात से अन-जल ग्रहण करना बंद कर देती हैं. अष्टमी के पूरे दिन निर्जल व्रत रखने के बाद तीसरे दिन व्रत का पारण किया जाता है. मान्यता है कि यह व्रत एवं उपासना करने से संतान को लंबा एवं स्वस्थ जीवन प्राप्त होता है. मान्यता यह भी है कि इस दिन जिवतिया व्रत रखने एवं इसकी कथा सुनने वाली माता कभी भी संतान वियोग का दंश नहीं झेलना पड़ता.

पूजा विधि

आश्विन माह की कृष्ण अष्टमी को प्रदोषकाल में महिलाएं जीमूतवाहन की पूजा करती है. प्रातःकाल स्नान-ध्यान के बाद विवाहित महिलाएं निर्जल व्रत का संकल्प लेती है. इसके पश्चात शुभ मुहूर्त पर जीमूतवाहन की कुशा से निर्मित प्रतिमा को धूप-दीप, चावल, पुष्प आदि अर्पित करते हुए पूजा करती हैं. पूजन समाप्त होने के बाद जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुनी जाती है. पुत्र की लंबी आयु, आरोग्य तथा कल्याण की कामना से स्त्रियां इस व्रत को करती हैं. कहते है जो महिलाएं पूरे विधि-विधान से निष्ठापूर्वक कथा सुनकर ब्राह्मण को दान-दक्षिणा देती है, उन्हें पुत्र-सुख एवं उनकी समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होती है.

शुभ मुहूर्त जीवित्पुत्रिका

अष्टमी तिथि प्रारंभ- प्रातःकाल 8.21 बजे (21 सितंबर 2019)

अष्टमी तिथि समाप्त- सायंकाल 07.50 (22 सितंबर 2019)

पौराणिक कथा

प्राचीनकाल में गन्धर्वों के राजकुमार थे जीमूतवाहन. वे बड़े उदार और परोपकारी थे. वे काफी कम उम्र के थे, तभी उनके पिता वानप्रस्थ आश्रम प्रस्थान करने से पूर्व राजकाज की जिम्मेदारी उन्हें सौंपकर वन प्रस्थान कर गये. जीमूतवाहन को इस छोटी सी उम्र में राजसिंहासन रास नहीं आया. अंतत: राज्य की सारी जिम्मेदारी अपने भाइयों को सौंपकर वह पिता की सेवा करने वन की ओर प्रस्थान कर गये.

एक दिन जीमूतवाहन वन में भ्रमण करते-करते काफी आगे चले गए. तभी उन्हें किसी के सिसकने की आवाज़ सुनाई दी. थोड़ा आगे बढ़ने पर उन्होंने देखा कि एक वृद्धा विलाप कर रही थी. जिमूतवाहन उसके पास पहुंचे और रोने की वजह पूछी. वृद्धा ने बताया कि वह नागवंश की स्त्री है. दरअसल पक्षीराज गरुड़ अकसर हम सांपों को आहार बना लेते थे. तब नागराज और गरुड़ के बीच एक संधि हुई कि नागराज प्रतिदिन एक सांप गरुड़ के पास भेज देंगे. उस संधि के अनुसार आज मेरे पुत्र शंखचूर्ण की बलि का दिन है. मेरा एक ही पुत्र है. अगर वह भी गरुड़ का शिकार हो गया तो मैं किसके सहारे अपना जीवन व्यतीत करूंगी. यह भी पढ़ें: Navratri 2019 Colours List: शारदीय नवरात्रि के 9 दिन पहने इन रंगों के कपड़े, मां दुर्गा के नौ स्वरुपों की करें आराधना

वृद्धा की बात सुनकर परोपकारी जीमूतवाहन ने कहा, हे माता, डरो मत, आज तुम्हारे पुत्र की जगह मैं उसके कपडे ओढ़कर वध्य शिला पर लेट जाऊंगा. इस तरह तुम्हारा बेटा बच जायेगा. इसके बाद उचित समय पर जिमूतवाहन वध्य शिला पर शंखचूर्ण का लाल कपड़ा ओढ़कर लेट गये. ठीक समय पर पक्षीराज गरुड़ पहुंच गए. लाल कपड़े में ढके जीमूतवाहन को अपने पंजे में दबोचकर वह एक ऊंची पहाड़ी के शिखर पर जा बैठे. लेकिन उन्होंने महसूस किया कि उनके चंगुल में फंसे प्राणी की आंख में न आंसू हैं ना ही आह निकल रही है. गरुड़ दुविधा में पड़ गए.

अंतत: उन्होंने कपड़े में छिपे जीमूतवाहन से पूछा, -तुम कौन हो. जीमूतवाहन ने गरूड़ को वृद्धा की सारी कहानी बताते हुए कहा कि गरूड़ राज आप मुझे अपना आहार बनाइये. पक्षीराज को विश्वास नहीं हो रहा था कि कोई परायों के लिए भला कैसे इतनी बड़ी कुर्बानी कैसे दे सकता है. उऩ्होंने जीमूतवाहन के त्याग से प्रसन्न होकर उन्हें जीवनदान दिया, साथ ही वचन भी दिया कि आगे से वे किसी भी नाग की बलि नहीं लेंगे. इस तरह जीमूतवाहन के साहस से नाग-जाति की रक्षा हुई, और उनके कारण एक मां के पुत्र को जीवनदान मिला. कहा जाता है कि इसके बाद से ही महिलाएं अपने पुत्र की रक्षा के लिये जीमूतवाहन की पूजा एवं व्रत रखने लगीं.

इस संदर्भ में भगवान शिव ने माता पार्वती को यह त्याग और बलि की यह कथा सुनाने के बाद बताया कि आश्विन कृष्ण अष्टमी के दिन उपवास रखकर जो भी स्त्री सायं प्रदोषकाल में जीमूतवाहन की पूजा करती है और कथा सुनने के बाद ब्राह्मण को दक्षिणा देती है, वह पुत्र-पौत्रों का पूर्ण सुख भोगने के बाद उसे स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है.